The Story of Friedrich Nietzsche – Greatest Philosopher Ever – Ecce Homo

दोस्तों फिलॉसोफी की पिछली 25 हज़ार साला तारीख में बेशुमार फिलॉसोफर्स ऐसे आए हैं जिन्होंने अपनी सोच से अपने फलसफे से पूरी दुनिया को सोचने का एक नया एंगल दिया नया अंदाज दिया तो चाहे वो सोक्रेटीस हो प्लेटो हो एिस्टोटलल हो मार्कसरेलियस हो डेविड ह्यूम हो स्पिनोजा हो हेगल हो या फिर यन पॉल सा्रा लेकिन माय डियर बुक बडीज ये सारे फिलॉसफर्स एक तरफ एंड द ब्रेथ टेकिंग फ्रीड्रिक विलहम नीचा एक तरफ नीचा जैसा फिलॉसफर ना तो तारीख में कभी आया था और ना कभी आएगा। ही वास अ मैन पोज़ेस्ड। उसकी फिलॉसफी अनकन्वेंशनल है, अर्थ शटरिंग है और ग्राउंड ब्रेकिंग है जो इंसान को
ऐसी उड़ान देती है जो कोई और फलसफा नहीं दे सकता। आजकल बाय द वे फ्रीड्रिक नेचर के अगेंस्ट बहुत सी वीडियोस बन रही है और कभी-कभी मेरा दिल भी करता है कि मैं इनका रिसोंड भी करूं। लेकिन आई एम सो हेड ओवर हील्स इन लव वि द ग्रेट मैन कि मैं इसकी फिलॉसफी से निकलूं तो फिर किसी बंदे का रिसोंड करूं। फेड्रिक नीचा ने अपनी फिलॉसफी के जरिए ज़रा थूसरा का कांसेप्ट दिया। Uber मेंस का द ग्रेटेस्ट आईडिया दिया। विल टू पावर जैसा ऐसा कांसेप्ट दिया जो आपकी जिंदगी ट्रांसफॉर्म कर सकता है। ट्रांसवैल्यूएशन ऑफ़ वैल्यूस के आईडिया के जरिए पूरी दुनिया को बताया कि जो
एकिस्टिंग मोरल फ्रेमवर्क है वो बेकार है। वो बोसीदा है। उसे तबाह बर्बाद करो और अपना एक नया मोरल फ्रेमवर्क एस्टैब्लिश करो। एमो और फाति के जरिए उसने समझाया कि जो भी आपकी जिंदगी में होता है उसे खुले बाजुओं से एमब्रेस करो। मैंने पिछले दो सालों में फ्रीड्रिक नेचा के ऊपर बहुत बात की है। बहुत गुफ्तगू की है। उसका फलसफा आपको समझाने की कोशिश की है। आज भी उसी की कड़ी की एक वीडियो है जिसमें हम उसकी ऑटोबायोग्राफी एचई होमो के बारे में बात करेंगे। [संगीत] अच्छा दोस्तों ये किताब उसने लिखी थी इन द ईयर 1888 जस्ट बिफोर ही बिकम इनसेन। नीचा
की जो इंसैनिटी की कहानी है वो फिर कभी डिस्कस करेंगे। लेट्स कम बैक टू एची होमो। एची होमो एक्चुअली में लैटिन जबान का एक लफ्ज है जिसका मतलब है बिहोल्ड द मैन। जैसी उसकी कमाल की शख्सियत थी वैसा ही उसकी किताब का टाइटल है। इस किताब के टाइटल के जरिए ना उसने एक बोल्ड स्टेटमेंट दी है। जैसे वो दुनिया को कह रहा हो कि मुझे देखो ये हूं मैं नीचा। वो शख्स जो तुम्हारी सोच को हमेशा के लिए ट्रांसफॉर्म करके रख देगा, बदल के रख देगा। यही वजह है कि यह कोई नॉर्मल ऑटोबायोग्राफी नहीं है। इस बुक में उसने अपनी सोच, अपनी फिलॉसोफी, अपनी जिंदगी और अपने मिशन की एक फाइनल
समरी दी है। जैसे कि वो अपनी लाइफ का अकाउंट क्लोज कर रहा हो। अच्छा एक बात बुक बडीज आपने याद रखनी है कि फ्रीड्रिक नीचा ना सारी उम्र बीमार रहा। उसके सर में बहुत दर्द हुआ करता था। यही वजह है कि उसकी बिनाई भी आहिस्ता-आहिस्ता जाती रही। वो किताबों को ना इतना करीब करके पढ़ा करता था क्योंकि उसे नजर ही नहीं आता था। जब क्लास में बोर्ड पे लिखता तो उसके और बोर्ड के दरमियान फासला इतना कम होता कि स्टूडेंट्स उसके ऊपर हंसा करते थे। लेकिन द ग्रेट मैन सर्वाइव्ड एंड नॉट ओनली सर्वाइव्ड बट ही थ्राइव्ड। इस बीमारी के अंदर कुछ ही हफ्ते हुआ करते थे जिसमें वो
नॉर्मल हुआ करता था। और इसमें वो इतना रिगरसली काम करता था। उसके अंदर ऐसा इंटेलेक्चुअल स्टिमुलेशन होती थी कि वो सब कुछ लिख लिया करता था। उसके अंदर ना एक इंटेलेक्चुअल वोल्केनो था। वो अल्फाज़ थे जिन्होंने फिलॉसफी का मतलब ही बदल के रख दिया। इसका प्रूफ यह है कि ये जो किताब है ना एची होमर ये सिर्फ उसने तीन वीक्स में लिखी। 15 अक्टूबर 1888 यानी कि 1888 को उसने लिखना शुरू की और 4 नवंबर तक कंप्लीट भी कर ली। यह जो साल 1888 था ना यह नेचा के लिए बहुत ज्यादा प्रोडक्टिव था। उसने द केस ऑफ वैगनर, ट्वाइलाइट ऑफ द आइडल्स, द एंटीक्राइस्ट और फिर एची होमो लिखी। अगले
ही साल यानी कि 1889 में नीचा का मेंटल ब्रेकडाउन हो गया। यही वजह है कि कुछ लोग समझते हैं कि अपनी बीमारी के आखिरी दिनों में उसकी जो राइटिंग्स हैं, जो किताबें हैं ना उसमें कहीं ना कहीं मैडनेस है। मी बीइंग अ नीचा लवर। मैं इस बात से एग्री करता हूं। लेकिन दोस्तों, यही मैडनेस तो दुनिया को चाहिए थी। यही मैडनेस तो इंडिविजुअल को ज्यादा दूसरा बनाती है। इसी मैडनेस के अंदर तो वो एनलाइटनमेंट है जो आपको Uber मेंस के दर्जे तक लेके जा सकती है। लोग जिसको मैडनेस कहते हैं मेरे लिहाज से वो नीचा की इंटेलेक्चुअल पीक थी। और याद रखें दोस्तों जो क्रिएटिव लोग होते
हैं ना वो अपनी जिंदगी के आखिरी आयाम में सबसे बेहतरीन सबसे हाईली विज़डम वाला काम करते हैं। इकबाल की भी अगर आप आखिरी के पांच छ सालों की राइटिंग्स देखें ना तो वो सबसे ज्यादा रिवोलशनरी है। अक्सर लोग नीचा और इकबाल साहब का भी कंपैरिजन करते हैं। दैट हु इज द बेस्ट। एक्चुअली मेरे पॉइंट ऑफ व्यू से देयर इज नो कंपैरिजन। इकबाल की जो शायरी की मेन थीम्स है ना वो सारी नीचा से ही इंस्पायर्ड हैं। वो अलग बात है कि शायरी में इकबाल का कोई सानी नहीं। एनीवेज किताब पर वापस आते हैं। अब सवाल यह बनता है कि यह जो बुक है एची होमो इसमें क्या
हमें कोई नया फ्रीड्रिक नीचा मिलता है? तो इस सवाल का जवाब है नो। यह वही नीचा है जो हमें थस पोक जरा थुसरा में मिला था। उसकी सोच, उसकी रिबेलियसनेस, उसकी क्रिश्चियनिटी, रोमांटिसिज्म और आइडियलिज्म के खिलाफ नफरत अब भी वैसे ही कायम है। उसका यस टू लाइफ यानी जिंदगी के हर पहलू चाहे वो तकलीफ दे हो या सुकून भरा। खुशियां हो या गम सब कुछ को कबूल करने का जज्बा अब भी उतना ही पावरफुल है। और जर्मनी जिसे वह यूरोप का फ्लैटलैंड कहता था उसका क्रिटिसिज्म भी उतना ही शिद्दत के साथ मौजूद है। इस किताब में अगर कुछ नया है तो उसकी सर्टेनिटी उसका
कॉन्फिडेंस, उसके नजर की गहराई। मीचा की हर किताब कहीं ना कहीं आपको डिस्टर्ब करती है, प्रोवोक करती है। आपके एकिस्टिंग बिलीफ सिस्टम को चैलेंज करती है। एची होमो भी ऐसी एक किताब है। यह बुक हमें बताती है कि इंसान अगर कोलैप्स होने के करीब भी हो तब भी अपने इरादों की इंतहा पर पहुंच सकता है। अपने आइडियाज को सबसे ज्यादा रोशन और सबसे ज्यादा बोल्ड करके प्रेजेंट कर सकता है। और आप पूछते हैं ना मुझसे कि आप मीचा को इतना पसंद क्यों करते हैं? व्हाई डू यू लव हिम सो मच? तो जनाब देखिए अपनी जिंदगी के आखिरी आयाम में है। अपनी इंसानिटी के
करीब है। लेकिन बुलंद नजर ही देखें। इतनी तकलीफ के बावजूद भी अपनी जिंदगी को सेलिब्रेट कर रहा है और दुनिया को कॉल टू एक्शन दे रहा है। अब देखिए इसके चैप्टर्स के टाइटल कितने यूनिक हैं। उसका पहला चैप्टर है व्हाई आई एम सो वाइस। यानी कि मैं इतना दाना क्यों हूं? मेरे अंदर इतना विज़डम क्यों है? वो लिखता है कि उसका विज़डम किसी बुकिश नॉलेज या सोसाइटल या ट्रेडिशनल नॉर्म्स की वजह से पैदा नहीं हुआ। बल्कि उसकी जिंदगी के एक्सपीरियंसेस, उसकी अपब्रिंगिंग, सेंसिटिविटी और उसके इंस्टिंक्ट्स की वजह से पैदा हुआ है। वो लिखता है कि मैं वाइस इसलिए हूं क्योंकि
मैंने अपने जिस्म और दिल के सिग्नल्स को सुनना सीख लिया है। मेरे अंदर की जो आवाज है ना जो हमेशा इंसान को सही पाथ पे गाइड करती है। मैं उसको पहचान गया हूं। नीचा के लिए विज़डम का मतलब यह नहीं कि इंसान अपने प्रॉब्लम्स को पहचाने और उसका सशन निकाले। बल्कि नीचा के लिए विज़डम का मतलब है कि अपने आप को जानना। अपनी स्ट्रेंथ, अपने पोटेंशियल को पहचानना और फिर उस पोटेंशियल को अपनी जिंदगी में मैक्सिमम लिमिट तक ऑप्टिमाइज करना। वो कहता है कि मैं अपनी जिंदगी में हमेशा अपनी बॉडी और अपने माइंड के साथ ऑनेस्ट रहूं। अगर मेरा जिस्म थक
गया तो मैंने रेस्ट किया। अगर मेरा दिल किसी चीज को रिजेक्ट करता है तो मैं उसे कभी एक्सेप्ट नहीं करता। यही सोच उसके फलसफे की फाउंडेशन है, बुनियाद है। जो यह सिखाती है कि लोग अक्सर औकात सोसाइटी के प्रेशर में अपने इंस्टिंक्ट्स को दबा लेते हैं। लेकिन नेचा ने ऐसा कभी ना होने दिया। वो लिखता है कि मेरी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ यह है कि मेरे लिए जो सबसे हार्मफुल चीजें हैं ना मैं उनको आइडेंटिफाई कर लेता हूं और उससे दूर हो जाता हूं। जिंदगी का असल चैलेंज यह नहीं कि आपको अच्छी चीजें मिले बल्कि रियल चैलेंज यह है कि जो बुराइयां है वो चीजें जो आपको हार्मफुली इंपैक्ट कर
सकती हैं आप उससे दूर हो जाएं। वो इस पहले चैप्टर में ना अपनी हसास तबीयत का भी जिक्र करता है। वो कहता है कि मैं एक बहुत सेंसिटिव इंसान हूं। मुझे छोटी-छोटी बातें इंपैक्ट कर जाती हैं। यह हसासियत आम लोगों को ना वीकनेस लगती है। लेकिन मेरे लिए यह मेरी एक ताकत बनी। क्योंकि इसी सेंसिटिविटी की वजह से मैं किसी भी एक्सपीरियंस को डीपली ऑब्जर्व करता हूं और उससे सीखता हूं। जो लोग डल हैं, जो हर चीज को सिर्फ सतई यानी सुपरफिशियल लेवल पर समझते हैं, वह कभी भी मेरी गहराई को नहीं पहुंच सकते। नीचा लिखता है कि मेरे अंदर एक ऐसा बैलेंस है जो मुझे सब लोगों से अलग
बनाता है। मैं ना तो एक्सट्रीम्स का बंदा हूं और ना मुझे सेल्फ डिस्ट्रक्शन का शौक है। मैं जानता हूं कि अपने अंदर की स्ट्रेंथ को कैसे यूज करना है और अपनी वीकनेस को कैसे मैनेज करना है। यह बैलेंस ही दरअसल मेरे अंदर असल दाना ही लेकर आता है। वो लिखता है कि बहुत से लोग ना अपने इमोशंस के गुलाम बन जाते हैं। उनके सामने सरेंडर कर देते हैं। लेकिन मैंने सीख लिया है कि किस तरह इमोशंस को सप्रेस करना है और उसे अपने लिए इस्तेमाल करना है। एक और इंपॉर्टेंट पॉइंट जो वो अपनी इस किताब के पहले चैप्टर में लिखता है वो है सेल्फ लव के हवाले से। वह कहता है कि सबसे पहले ना
मुझे अपने आप से मोहब्बत करनी आती है। मैं अपने साथ दोस्ती करता हूं। अपनी जरूरतों को समझाता हूं और अपनी जिंदगी को अपने लिए गिफ्ट की तरह ट्रीट करता हूं। याद रखें वह यह कहता है कि यह सेल्फिश नहीं है बल्कि यह दरअसल सेल्फ लव है। क्योंकि जो लोग अपनी केयर नहीं करते ना वह दुनिया की स्ट्रगल्स के सामने, हार्डशिप्स के सामने टूट जाते हैं। आगे देखें क्या कमाल बात लिखता है और कहता है कि मेरी जो बीमारी है, मेरी जो इलनेस है, मेरी लाइफ की जो सफरिंग है ना, मेरा विज़डम दरअसल वहीं से जन्म लेता है। जब मैं बीमार था और फिजिकली वीक था, तब मैंने अपने अंदर के सिस्टम को
ज्यादा गहराई से समझा। सफरिंग ने मुझे पेशेंस और इनसाइट दी। मैंने देखा कि हर दर्द अपने साथ एक नया लेसन लाता है। इस सेंस में मेरी बीमारी मेरे लिए एक टीचर बन गई। इसी सोच से नीचा की फिलॉसफी का एक और पावरफुल आईडिया निकलता है कि आपकी जिंदगी में जितनी भी सफरिंग है ना उसको आपने एंब्रेस करना है और उसको ओवरकम करते हुए अपनी ग्रेटनेस को अचीव करना है। इसकी वो एग्जांपल देता है कि जब वो यूनिवर्सिटी ऑफ़ बाज़ल से रिजाइन करके आया तो उसकी आईसाइट बहुत वीक हो गई थी और उसे हर चीज ब्लर नजर आती थी। उसी दौरान उसने द वेंडरर एंड हिस शैडो लिखी। फिर जिनोआ की विंटर्स में उसने
द डॉन ऑफ डे लिखी। उसने कहा कि यह किताब मैंने एक्सट्रीम फिजियोलॉजिकल वीकनेस और सफरिंग के दौरान लिखी। उसे तीन दिन कंटीन्यूअस हेडेक्स और वायलेंट नजिया रहा और इसी दौरान उसे वो इंटेलेक्चुअल क्लेरिटी मिली जो उसके हेल्दी मोमेंट्स में बिल्कुल भी पॉसिबल नहीं थी। इसीलिए वो लिखता है कि उसने अपनी इलनेस और सफरिंग को अपनी स्ट्रेंथ में कन्वर्ट किया। पहले चैप्टर के एंड में वो लिखता है कि मैं इसलिए सबसे वायस हूं कि मैंने अपनी जिंदगी के हर लम्हे को भरपूर जिया है। मैंने कभी अपनी इंडिविजुअलिटी को कॉम्प्रोमाइज नहीं किया। मैंने सोसाइटी के रूल्स को अंधाधुंध
फॉलो नहीं किया और मैंने अपनी बॉडी और सोल को समझने की कोशिश की। यही वो एक्सपीरियंस है जो मुझे दुनिया के बाकी लोगों से अलग करता है। इस बुक का दूसरा चैप्टर है व्हाई आई एम सो क्लेवर। यह चैप्टर दरअसल उसके लाइफस्टाइल और उसकी फिलॉसफी का एक बहुत ही पर्सनल रिफ्लेक्शन है। यहां वो अपने एक्सपीरियंसेस को ऐसे शेयर करता है जैसे वो अपनी जिंदगी के हिकमत का फार्मूला सारी दुनिया के सामने प्रेजेंट कर रहा हो। उसके लिए क्लेवर यानी अकलमंदी कोई थ्योरेटिकल बात नहीं थी बल्कि एक प्रैक्टिकल चीज थी जो इंसान की चॉइससेस, टेस्ट और सेल्फ कंट्रोल से आती है। सबसे पहले तो वो लिखता
है कि मैं कभी भी अपना टाइम बेमकसद के सवालों में वेस्ट नहीं करता। जैसे कि मेरा असल नेचर क्या है? मेरा असल मिशन क्या है? या मेरी असली जिंदगी कहां है? उसके लिए यह सब पॉइंटलेस और बेईमानी सवाल थे। उसने सारी जिंदगी अपना फोकस और एनर्जी उस चीज पर रखा जिसका डायरेक्ट इंपैक्ट उसकी लाइफ पर होता है। जैसे कि हेल्थ, न्यूट्रिशन, क्लाइमेट और उसकी डेली हैबिट्स। नीचा कहता है कि जिस तरह इंसान खाता है, जहां रहता है, उसका कल्चर, उसकी हैबिट्स उसके सोचने की ताकत को डायरेक्टली इफेक्ट करती हैं। यहां तक कि वो लिखता है कि अगर आपकी डाइजेशन खराब है, खाना खराब है, तो फिर
आपकी सोचने की ताकत भी मर जाती है। इसी को एक्सप्लेन करते हुए वो अपने जर्मनी के खाने और कल्चर के एक्सपीरियंस को भी शेयर करता है। नीचा के नजदीक जर्मनी का खाना और उसका ओवरऑल कल्चर दोनों बहुत ज्यादा पोइजन की तरह है। जो इंसान की बॉडी और माइंड दोनों को खत्म कर देते हैं। हैवी डाइट, ऑयली और स्टार्ची फूड, बियर, अल्कोहल यह सब उसके इंटेलेक्ट के लिए ज़हर थे। इसीलिए उसने सारी उम्र बड़ी ही डिसिप्लिन से गुजारी और उन्हीं चीजों का इंतखाब किया जिससे उसकी सेहत बेहतर रह सके। उसकी जिंदगी का ना एक बहुत ही सिंपल और प्रोफाउंड उसूल था। जो चीज उसके लिए
हार्मफुल हो उसको अवॉइड करना है और जो चीज उसे एनर्जी दे उसको एक्सेप्ट करना है। शराब के बारे में ना वो बहुत स्ट्रिक्ट था। वो कहता था कि इस शराब ने ना पूरे यूरोप को तबाह कर दिया क्योंकि यह जो अल्कोहल है ना यह इंसान की एनर्जी को आहिस्ता-आहिस्ता ड्रेन कर देती है और उसे स्लेवरी की तरफ ले जाती है। वो ना एक्चुअली में टी लवर था और कहता था कि चाय ने उसे दरअसल हमेशा जिंदा रखा है और उसे काम करने की स्ट्रेंथ दी है। इसके अलावा पानी पीना, साफ और ठंडा क्लाइमेट चूज़ करना और चलना उसकी जिंदगी का हिस्सा था। वो कहता था कि चलना और सोचना दरअसल दोनों एक
ही चीज है। जब वो वॉक कर रहा होता है ना तो उसका माइंड बेस्ट आइडियाज प्रोड्यूस करता है। इसके बाद वो रीडिंग और कल्चर के बारे में बात करता है। वो कहता है कि रीडिंग के मामले में वो बहुत सिलेक्टिव रहा है। उसने कभी बहुत ज्यादा किताबें नहीं पढ़ी बल्कि उसकी अप्रोच थी कि बस उन्हीं ऑथर्स को पढ़ा जाए जो एनर्जी देते हैं जो सोच को एक्सपेंड करते हैं और जो उन हथकड़ियों को तोड़ देते हैं जिनमें इंसान जकड़ा हुआ है। नीचा ना जर्मन लिटरेचर और जर्मन कल्चर को तकरीबन रिजेक्ट कर देता है क्योंकि उसके लिए वह करप्शन और डेडेंस का सिंबल थे। आप उसकी रूथलेसनेस देखेंगे वह
कहता है कि जर्मनी का जो कल्चर है ना वो इंसान को मिडकर और बेकार बना देता है। म्यूजिक ने भी नीचा की जिंदगी में बहुत अहम रोल प्ले किया। ही वाज़ एन एब्सोल्यूट म्यूजिक लवर। उसने अपने बचपन से पियानो और कंपोजिशन सीखी थी। उसकी फिलॉसोफी में भी म्यूजिक का स्ट्रांग इन्फ्लुएंस था। इसी चैप्टर में वो द ग्रेट वार्गनर की भी बात करता है जो एक जमाने में उसका आइडियल म्यूजिशियन था। लेकिन बाद में ना नीचा वाकनर से उलझ गया। उससे नाराज हो गया। क्योंकि उसके मुताबिक वाकनर जर्मन और क्रिश्चियन सिंबलिज्म में उलझ गया था। उसके लिए ना म्यूजिक एक थेरेपी थी। एक
इंटेलेक्चुअल और इमोशनल बैलेंस था जो उसके आइडियाज को डेवप करने में मदद करता था। मीचा बार-बार एक पॉइंट को एम्फसाइज करता है कि उसकी जो क्लेवरनेस या अकलमंदी है ना उसका मोरालिटी या मजहब से कोई ताल्लुक नहीं है। उसने कभी भी कॉन्शियस या गुनाह के प्रेशर को फील नहीं किया। इनफैक्ट उसने हमेशा गॉड के कांसेप्ट को रिजेक्ट कर दिया था। उसके लिए विज़डम का मतलब था अपने इंस्टिंक्ट्स पर ट्रस्ट करना। अपनी लाइफ को डिसिप्लिन के साथ चलाना और उन चीजों से बचाना जो डेंजरस और एनर्जी डिस्ट्रइंग हो। यहां ना वो एक और इंटरेस्टिंग पॉइंट डिस्कस करता है। वो कहता है कि फिलॉसफी का
ना इंसान की फिजियोलॉजिकल कंडीशन से भी गहरा ताल्लुक है। यानी कि इंसान की सोच और उसके आइडियाज उसके बॉडी और हेल्थ के साथ कनेक्टेड हैं। अगर बॉडी वीक है तो आइडियाज भी वीक होंगे। अगर डाइजेशन खराब होगी तो सोच भी खराब होगी। इसीलिए वह कहता था कि फिलॉसफर्स को ना अपनी हेल्थ का बहुत ख्याल रखना चाहिए। क्योंकि अगर उनकी हेल्थ सही नहीं होगी ना तो उनके आइडियाज भी लाइफलेस और फ्यूटाइल होंगे। इस चैप्टर के एंड में वो अपने आप को एक सेलेक्टिव प्रिंसिपल के तौर पर प्रेजेंट करता है। वो कहता है कि जिंदगी में ना केयरफुल चॉइससेस का बहुत ही
इंपॉर्टेंट रोल है। उसके लिए क्लेवरनेस दरअसल सिलेक्शन का आर्ट था। आपने कौन सा खाना खाना है, कौन सा म्यूजिक सुनना है, कौन सी किताबें पढ़नी है, कहां पर रहना है। हर चीज को ब्लाइंडली एक्सेप्ट करना और रैंडमली बगैर किसी रडर के जिंदगी गुजारना उसके करीब एक स्टुपिडिटी थी। वो लिखता है कि उसने अपनी जिंदगी में अपने इंस्टिंक्ट्स और अपने टेस्ट की मदद से एक ऐसी लाइफ क्रिएट की जहां वो अपनी स्ट्रेंथ्स और अपनी क्रिएटिविटी को मैक्सिमम पर ले जा सका। और इसी वजह से वो कहता है कि आई एम सो क्लेवर। तीसरे चैप्टर में वो कहता है व्हाई आई राइट सच
एक्सीलेंट बुक्स। इस चैप्टर के स्टार्ट में वो क्या कमाल की लाइन लिखता है। आई एम वन थिंग माय क्रिएशंस आर अनदर। लेकिन लोग इसको समझने और अप्रिशिएट करने में गलती करते हैं। दोस्तों यहां पर यह बात याद रखें कि नीचा अपनी जिंदगी में इतना पॉपुलर नहीं हुआ जितना आज है। लेकिन यह बात भी दुरुस्त है कि जैसे-जैसे वो इंसैनिटी की तरफ बढ़ रहा था ना वैसे-वैसे उसकी फेम भी ऊपर जा रही थी। वो किताबें तो लिखता था लेकिन उसके खरीदार बहुत कम थे। लेकिन बंदे की ग्रेटनेस देखें कि वो जानता था कि जो कुछ भी उसने अपनी किताबों में लिखा है ना उसको एक दिन ऐसी उड़ान मिलेगी जो किसी
फिलॉसफर को ना मिली। वो मानता है कि उसका वक्त अभी नहीं आया। उसकी किताबें उन लोगों के लिए हैं जो अभी पैदा नहीं हुए। यह लोग अगले दौर में आएंगे और वही उसके आइडियाज को समझ पाएंगे। वो लिखता है कि मुझे ना अक्सर लोग समझते ही नहीं है। इनफैक्ट वो कहता है कि यह मेरे लिए बेहतर है। मैं चाहता भी नहीं हूं कि मुझे आज का इंसान समझे क्योंकि मैं उनके लिए तो लिखता ही नहीं हूं। और फिर वो अपनी ब्रेथ टेकिंग और सबसे बेहतरीन किताब के बारे में कुछ ऐसी बातें लिखता है जो सबसे ज्यादा दुरुस्त है और जो मैं आपको बता-ब बता के थक चुका हूं। वो लिखता है कि मेरी जो किताब है ना जरा
धुस्तरा अगर किसी ने इस किताब के सिर्फ छह जुमले भी समझ लिए और उन्हें अपनी जिंदगी में इंप्लीमेंट कर लिया तो वो बाकी आम इंसानों से अलग हो जाएगा। लेकिन ज्यादातर लोग इसको समझने की बजाय उल्टा अपने ही कांसेप्ट्स इंपोज करने लगते हैं। इसकी मिसाल के लिए वो उबरेंच का लफ्ज इस्तेमाल करता है। वो कहता है कि उबरेंच को ना लोग गलत समझ लेते हैं। उसे वो आइडियल, सेंट या जीनियस बना देते हैं। जबकि असल में जाराथुस्तरा का सुपरमैन एक ऐसा इंसान है जो क्रिश्चियन मोरालिटी, नायलिज्म और गुड मैन के अगेंस्ट खड़ा है। कुछ क्रिटिक्स ने इसे डार्वनिज्म या कारलाइल के हीरो कल्ट
से जोड़ दिया। जो नीचा को बिल्कुल गलत और फनी लगता था। अब जरा नीचा की एोगेंस, उसकी वैनिटी, उसके कॉन्फिडेंस को देखें। वो कहता है कि मैं इस बात को बिल्कुल एक्सेप्ट करता हूं कि मैं एक प्रिविलेज राइटर हूं। मेरी किताबें पढ़ने के बाद दूसरी सारी किताबें इंसान को बोर लगती हैं। मेरी किताबें एक नोबल और सल वर्ल्ड क्रिएट करती हैं। जहां तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं। जो रीडर मुझे समझ जाता है ना वो उन ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है जहां पर मैं उन्हें देखना चाहता हूं। लेकिन जो लोग बुदिल हैं, कावड़ हैं, जिनके अंदर जिंदगी की रियलिटीज को फेस करने की
ताकत नहीं, वह मेरी किताबों को सरासर रिजेक्ट कर देते हैं। वो कहता है कि मेरा एक परफेक्ट रीडर ना एडवेंचरर और एक्सप्लोरर होगा जिसमें हिम्मत हो, क्यूरियोसिटी हो, प्रूडेंस हो और वो इंसान डेरिंग हो। इसी वजह से ज़ाराथुस्त्रा भी कहता है कि मेरी बात सिर्फ उन्हीं के लिए है जो डेरिंग एक्सप्लोरर्स हैं और रिडल्स को एंजॉय करते हैं। वो लोग जिन्होंने फ्रीड्रिक नीचा के लिटरेचर को पढ़ा है वो जानते हैं कि वो सिंबलिज्म का बड़ा इस्तेमाल करता है। बात वो सूरज की कर रहा होगा, माउंटेन की कर रहा होगा, सांप की कर रहा होगा। लेकिन दरअसल वो डिनोट किसी और
बात को कर रहे होते हैं और इंसान को डिकोड करना होता है कि दरअसल उसका मतलब क्या है। फिर ना वो अपने आर्ट ऑफ स्टाइल का जिक्र करता है। वो कहता है कि मेरा स्टाइल मेरे अंदर के स्टेट्स और पैथोस को कम्युनिकेट करता है। मेरे अंदर जो इमोशंस और टेंशंस हैं वो इतनी वैरायटी में है कि मैं हर तरह का स्टाइल यूज़ कर सकता हूं। मैंने जर्मन लैंग्वेज में वो चीज प्रूव की जो पहले लोग समझते थे इंपॉसिबल है। यानी मैंने जर्मन लैंग्वेज को एक ग्रैंड रिदमम और पोएटिक डेप्थ दी। जरास्तरा के द सेवन सील्स जैसे पैसेजेस इस बात का एविडेंस है। इसके बाद
वो अपनी जो सारी इनफ्लुएंशियल किताबें हैं ना उनकी रीज़ंस बताता है कि वो उसने क्यों लिखी। इसके बारे में अगर आपने जानना है तो आपने यह बुक जरूर पढ़नी है। अब हम उसका नेक्स्ट चैप्टर डिस्कस करेंगे जो कि है व्हाई आई एम अ डेस्टिनी। वो लिखता है कि आई नो माय डेस्टिनी। देयर विल कम अ डे व्हेन माय नेम विल रिकॉल द मेमोरी ऑफ़ समथिंग फॉरमिडेबल। अ क्राइसिस द लाइक ऑफ व्हिच हैस नेवर बीन नोन ऑन अर्थ। आई एम नॉट अ मैन। आई एम डायनामाइट। इन अल्फाज में जो कॉन्फिडेंस है वो आपको बताता है कि नीचा अपनी एबिलिटीज को कितनी अच्छी तरह जानता था। देखिए दोस्तों नीचा का मकसद था
मोरल और रिलीजियस जो डॉग्माज़ है ना उन्हें लॉजिकली क्रिटिसाइज़ करना और वो उसमें भरपूर कामयाब रहा। वो यह बात भी क्लेरिफाई करता है कि वह किसी नबी, पैगंबर या रिलीजन का बनाने वाला नहीं है। मजहब उसके नजदीक सिर्फ मॉब्स के लिए है। उसे डर यह था कि लोग उसे एक दिन सेंट समझकर ग्लोरिफाई ना करने लगे। इसीलिए वो कहता है कि मैं सेंट बनने से बेहतर क्लाउन बनना पसंद करूंगा। लेकिन क्लाउन होते हुए भी वो अपने आप को माउथ पीस ऑफ ट्रुथ समझता है। क्योंकि उसके मुताबिक सेंट सब ड्रामेबाजी है। वो लिखता है कि उसकी डेस्टिनी है ट्रांस वैल्यूएशन
ऑफ ऑल वैल्यूस। यानी वो तमाम पुरानी वैल्यूस जिसको क्रिश्चियनिटी या सोसाइटी ने सही समझा उनको उखाड़ कर नई वैल्यूस को प्रेजेंट किया जाए। वो कहता था कि इंसानियत की हजारों सालों की हिस्ट्री में मैं पहला शख्स हूं जिसने झूठ को पहचाना है और वो कहता था कि इस झूठ के पीछे सबसे बड़ा रोल है मेरी नाक का। क्योंकि मेरी नाक झूठ की बू को पहचान लेती है। तो वो लिखता है कि जो इंसान क्रिएटर बनना चाहता है ना उसे पहले डिस्ट्रयर बनना पड़ता है। इसीलिए वो अपने आप को पहले इमोरलिस्ट डिक्लेअ करता है। यानी वो पूरी मोरालिटी स्पेशली क्रिश्चियन मोरालिटी को तोड़ देता
है। और इस तोड़फोड़ में भी वो अपनी डायनेसिस नेचर को मैसेज देता है कि हर डिस्ट्रक्शन के अंदर भी एक क्रिएशन होती है। यहां पर वो यह सवाल भी उठाता है कि लोगों ने तो कभी उससे पूछा ही नहीं कि भाई उसने ज़राथोस्तरा का नाम क्यों सेलेक्ट किया? जराथोस्तरा एक पर्शियन थिंकर था जिसने सबसे पहले मोरालिटी को मेटाफिजिक्स बनाया। गुड और इवल को एक कॉस्मिक स्ट्रगल के तौर पर समझाया। नीचा कहता है कि क्योंकि जराथोस्तरा ने सबसे पहले मोरालिटी बनाई थी। लिहाजा अब उसी के ऊपर रिस्पांसिबिलिटी है कि वो इस मोरालिटी को तबाह बर्बाद करे। यानी जिसने वो पोइजन
बनाया था अब उसी के ऊपर जिम्मेदारी है कि वो अब इसी का एंटीडोट बनाए। और यह जिम्मेदारी नीचा अपने आप के ऊपर लेता है। इसके बाद वो क्रिश्चियन मोरालिटी पर सबसे रूथलेस अटैक करता है। जो ना सिर्फ क्रिश्चियन मोरालिटी के ऊपर बल्कि ऑलमोस्ट सारे मज़ाहिब के ऊपर उसका एक विशियस अटैक है। वो कहता है कि क्रिश्चियन मोरालिटी असल में मोरालिटी ऑफ़ डेकडेंस है। यानी ये जो मजहब है ना यह कमजोरी, डिजीज और डिक्लाइन को सेलिब्रेट करता है। गुडनेस, काइंडनेस, चैरिटी वगैरह असल में वीकनेस के सिम्टम्स हैं। रियलिटी यह है कि दुख, तकलीफ, स्ट्रगल और विल टू पावर ही लाइफ को
ग्रो करते हैं। लेकिन क्रिश्चियन मोरालिटी ने इंसान को ना भेड़ बकरियां बना दिया है। जो एक अथॉरिटी के सामने सर झुका देते हैं और सवाल उठाने की जुर्रत नहीं करते। वो कहता है कि जो गुड मैन है ना वो असल में ह्यूमैनिटी के लिए सबसे डेंजरस है। क्योंकि वो अपनी फॉल्सनेस के जरिए फ्यूचर को सैक्रिफाइस कर देते हैं। वो नई वैल्यूस बनाने वाले को क्रुसिफाई करते हैं। इसीलिए वो कहता है द गुड दे आर एवर द बिगिनिंग ऑफ द एंड। और इसके बाद वह अपने आप को एक प्राउड इमोरलिस्ट कहता है जिसने पहली बार क्रिश्चियन हर्ड मोरालिटी को तोड़ा। वो कहता है कि सब फिलॉसफर्स पहले इस
क्रिश्चियन मोरालिटी के स्लेव थे। किसी में हिम्मत नहीं थी इसे तोड़ने की। इसके बाद वह क्रिश्चियन मोरालिटी को और रूथलेसली एक्सपोज करता है। वह कहता है कि यह जो क्रिश्चियन मोरालिटी है ना यह एंटी नेचर है क्योंकि इसने इंसान के नेचुरल इंस्टिंक्ट्स को करप्ट कर दिया है। इसी वजह से इंसान ने अपने जिस्म को रिजेक्ट कर दिया है। सेक्स को एक गुनाह बना दिया है। आफ्टर लाइफ जैसे फेक कांसेप्ट्स के जरिए इस दुनिया की जो जिंदगी है ना उसको वर्थलेस करार दे दिया है। नीचा के लिए ये जो आखिरत का आईडिया है ना यह बिल्कुल बेकार था। क्योंकि वो कहता था कि इट इज अ
क्राइम अगेंस्ट लाइफ। जब लोग आखिरत के इंतजार में रहते हैं ना तो वह इस दुनिया को शन कर देते हैं। वो हमेशा सवाब और गुनाह के चक्कर में लगे रहते हैं कि जिंदगी के बाद उसे उनका सिला मिलेगा। ईचा नेवर लाइक दिस। वो कहता था कि भाई यह जो लाइफ है ना इसी को वर्थ फाइल बनाना है। इसी को ऑप्टिमाइज करना है। इसी के अंदर अपने ऑप्टिमम पोटेंशियल तक पहुंचना है। इस चैप्टर के एंड में नीचा फिर एक और बड़ा धमाका करता है। वो कहता है कि मेरी डिस्कवरी के बाद इंसानियत की तारीख दो हिस्सों में तकसीम हो गई है। मेरे से पहले और मेरे बाद क्रिश्चियन मोरालिटी का होली
मास्क उतर चुका है। अब असल में सब समझ सकते हैं कि गॉड का कांसेप्ट, सोल का कांसेप्ट, सीन और फ्री विल का कांसेप्ट ये सब लाइफ के खिलाफ एक कांस्परेसी थे। वो कहता है कि यह जो मजहब इंसान को आईडिया ऑफ गॉड देता है ना उसे हमेशा सवाब और गुनाह के कांसेप्ट्स में उलझा के रखता है। यह सब एक कास्परेसी है लाइफ के अगेंस्ट। यह जिंदगी के खिलाफ एक साजिश है। उसके मुताबिक मोरालिटी एक वैंपायर की तरह है जो उसका खून चूसकर उसे कमजोर कर देती है। मजहब ने सब कुछ जो वीक है, इल है, सिक है, बीमार है, उसे अच्छा बनाकर प्रमोट किया। जबकि जो स्ट्रांग, हेल्दी और लाइफ
अफर्मिंग था उसे इवल कहकर रिजेक्ट कर दिया। और फिर वो लिखता है कि इस तरह का जो मोरल फ्रेमवर्क है ना इसे जड़ से उखाड़ दो। सो दोस्तों यह तो थी एची होमो की कहानी। नीचा आपको पसंद हो या ना हो लेकिन मेरी यह बात लिख लीजिएगा कि अगर आपने इसके फलसफे को समझ लिया ना तो आपकी लाइफ वाकई में ट्रांसफॉर्म हो जाएगी। आपके इरादे इतने बुलंद हो जाएंगे। आपकी उड़ान इतनी ऊंची हो जाएगी कि आप मेडक्रेटी से उठकर टू द लेवल ऑफ एक्सीलेंस चले जाएंगे। हम लोग अक्सर बात करते हैं ना कि इस शख्स की सोच इंकलाबी थी, रेवोल्यूशनरी थी। अगर आपने सही मानों में किसी रेवोल्यूशनरी फिलॉसफर
को पढ़ना है ना तो इट हैस टू बी द ग्रेट फ्रीड्रिक नेचर। इस डायनामाइट की सोच और कहानी आपको कैसी लगी मुझे कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा। डोंट फॉरगेट टू प्रेस द लाइक बटन। एंड इन ऑर्डर टू इंश्योर दैट नेचर की सोच आवाम तक पहुंचे। इस वीडियो को शेयर करना मत भूलिएगा। अंटिल नेक्स्ट टाइम गुड बाय।


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