Psychology of Middle Class – What Makes People Middle Class

दोस्तों, आप लोगों ने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में एक लफ्ज मिडिल क्लास जरूर सुना होगा। यह मिडिल क्लास कौन लोग होते हैं? किस इनकम ब्रैकेट के लोगों को मिडिल क्लास कहा जाता है? किसी भी मुल्क की इकॉनमी में इनका क्या रोल होता है? एंड मोस्टेंटली इंडिया और पाकिस्तान की मिडिल क्लास की क्या साइकोलॉजी है? क्या नफसियात है, क्या सोच है? वो क्या ज़हनी बंदिश है? जो एक मिडिल क्लास शख्स को सारी उम्र मिडिल क्लास रखती है। आज इसी टॉपिक के बारे में बातचीत करेंगे। अगर पाकिस्तान के कॉन्टेक्स्ट में बात की जाए तो वो लोग जो रोजाना $10 कमाते हैं वो मिडिल क्लास में

काउंट होते हैं। जबकि 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक वो लोग जो एनुअली यानी कि सालाना 6 लाख से 15 लाख कमा रहे हैं वो पाकिस्तान की मिडिल क्लास में शामिल है। इस हिसाब से एक मिडिल क्लास की मंथली इनकम लगभग 500 से ₹1,25,000 बनती है। इंडिया की बात करें तो वो लोग जो सालाना यानी कि एनुअली 3 लाख से 6 लाख इंडियन कमा रहे हैं वो लोअर मिडिल क्लास का हिस्सा बनते हैं। कोर मिडिल क्लास में वो लोग आते हैं जिनकी एनुअल इनकम 6 लाख से 18 लाख के दरमियान होती है और अप्पर मिडिल क्लास में वो लोग आते हैं जिनकी एनुअल इनकम होती है 18 लाख से 50 लाख के दरमियान जिसकी मंथली रेंज

बनती है 1.5 लाख से 4 लाख पाकिस्तान और इंडिया की जो मिडिल क्लास है ना उसमें ज्यादातर लोग गवर्नमेंट के मुलाजिम या फिर प्राइवेट नौकरी पेशा लोग होते हैं। यही वो लोग होते हैं जो सबसे ज्यादा टैक्सेस का बर्डन बर्दाश्त करते हैं। यही वजह है कि आज पाकिस्तान में मिडिल क्लास का साइज सिर्फ 15 से 20% रह गया है। जबकि 1990 में ये तकरीबन 35 से 40 फीस था। बहुत से लोग जो मिडिल क्लास में शामिल थे वो अब लोअर मिडिल क्लास का हिस्सा बन चुके हैं। और इसकी एक बहुत बड़ी वजह है इन्फ्लेशन यानी कि महंगाई। देखिए दोस्तों, हर मुल्क में महंगाई होती है, लेकिन उसके साथ-साथ इनकम

भी बढ़ती है। पाकिस्तान का मसला यह है कि यहां पर इनकम उस लेवल पर नहीं बढ़ती जितनी महंगाई बढ़ जाती है। जो आज से 5 साल पहले 1000 के नोट की वैल्यू थी, आज उससे डिटेरेट हो गई है। देखिए ये रेंटिंग और रेविंग तो चलती रहेगी कि महंगाई बहुत ज्यादा है लेकिन इनकम उसके मुकाबले में बहुत कम है। लेकिन इससे पहले कि हम लोग इस ख्ते के मिडिल क्लास लोगों की साइकोलॉजी को समझे जरा इस फिनोमिना की हिस्ट्री को जान लेते हैं। मिडिल क्लास की जो रूट्स हैं ना वह हमें 19 सेंचुरी में मिलती हैं जब यूरोप में लिबरल रेवोलशंस आई। इन रेवोलशंस ने नोबल्स और लैंड ओनर्स की

प्रिविलेज पोजीशंस को चैलेंज किया। उस दौर में ना सोसाइटी दो मेजर ग्रुप्स में डिवाइडेड थी। एक तरफ थी बोजवाजी यानी कि वेल्थी बिज़नेस क्लास और दूसरी तरफ थी वर्किंग क्लास यानी कि मजदूर तबका। इन दोनों क्लासेस के दरमियान इकोनॉमिक कंडीशंस और इंटरेस्ट बिल्कुल मुख्तलिफ थे। बोजवाजी के पास ज्यादा पैसा और रिसोर्सेज जमा हो गए। जबकि वर्किंग क्लास एक्सट्रीम पावर्टी में चली गई। इस वजह से बहुत सी जगहों पर प्रोलिटेरियन अप्राइिंग्स हुई जो बाद में सोशल रेवोलशंस में कन्वर्ट हो गई। इस प्रोसेस ने बिल आखिर एक नए सोशल स्ट्रक्चर को डेवप किया जिसमें मिडिल

क्लास का जन्म हुआ। मिडिल क्लास ने ना दोस्तों सोसाइटी में एक बफर का रोल प्ले किया। एक तरफ यह वर्किंग क्लास की तरह स्ट्रगल कर रही थी और दूसरी तरफ बोझ की तरह ओपोरर्चुनिटीज अेल कर रही थी। यह क्लास एजुकेशन और कॉमर्स की वजह से ग्रो हुई और देखते ही देखते सोशल स्टेबिलिटी का एक बहुत क्रूशियल फैक्टर बन गई। 20वीं सदी में इंडस्ट्रियलाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन ने मिडिल क्लास को और ज्यादा स्ट्रांग किया। अर्बनाइजेशन के साथ इस मिडिल क्लास ने डेमोक्रेसी में, कल्चर में और पॉलिटिक्स में बहुत ही अहम रोल प्ले करना शुरू किया। इन लोगों ने कंज्यूमर डिमांड को क्रिएट

किया। नए बिनेसेस को सपोर्ट किया और पॉलिटिकल स्टेबिलिटी के लिए एक स्ट्रांग आवाज बने। आज भी माय डियर बुक बबडीज आप किसी भी मुल्क, किसी भी सोसाइटी को देखें ना तो उसका जो सोशल फैब्रिक है उसमें सबसे इंपॉर्टेंट रोल मिडिल क्लास लोग ही प्ले कर रहे होते हैं। अगर मिडिल क्लास स्ट्रांग है ना तो आपकी सोसाइटी में स्टेबिलिटी है, प्रोग्रेस है। और अगर यही लोग वीक हो जाए तो मुआशरे में इनकलिटी और इनस्टेबिलिटी बढ़ जाती है। यही पाकिस्तान के साथ हुआ है। अगर पाकिस्तानी मिडिल क्लास की बात करें तो इनका भी हिस्ट्री में बहुत इंपॉर्टेंट कंट्रीब्यूशन रहा है।

कॉलोनियल इंडिया के दौर में ज्यादातर मिडिल क्लास के जो लोग थे ना वो अंग्रेजों के लिए काम करते थे। यह लोग उस वक्त असल में अंग्रेज हुक्मरानों और आम इंडियंस के दरमियान एक ब्रिज का काम किया करते थे। 1947 के बाद जब पाकिस्तान का कयाम हुआ तो यही मिडिल क्लास ब्यूरोक्रेसी और स्टेट अपराटिस का हिस्सा बन गई। 1950 और 60ज में मिडिल क्लास सिर्फ पॉलिटिक्स तक लिमिटेड नहीं थी बल्कि सोशल कॉजेस में भी बहुत ज्यादा एक्टिव थी। फॉर एग्जांपल 1967 में मिडिल क्लास के स्टूडेंट लीडर्स ने भट्टा मजदूर महाज के नाम से एक ऑर्गेनाइजेशन बनाई जो गुलामी की जिंदगी गुजारने वाले

भट्टा मजदूरों और उनके घर वालों की रिहाई के लिए कोशिश कर रही थी। बाद में यह तहरीक बॉन्डेड लेबर लिबरेशन फ्रंट बन गई जो सिविल सोसाइटी का एक इंपॉर्टेंट पार्ट बनकर सामने आई। हालांकि मार्शल लॉ के दौर में हुकूमत ने इसे बार-बार दबाने की बहुत कोशिश की। उसके बाद जब भुट्टो साहब की बारी आई तो उनका जो सोशलिस्ट और इगिलिटेरियन स्लोगन थे ना उन्होंने पाकिस्तान की मिडिल क्लास को बहुत अट्रैक्ट किया। इस मिडिल क्लास ने भुट्टो का भरपूर साथ दिया क्योंकि वो एजुकेशन और हेल्थ केयर जैसे सोशल रिफॉर्म्स में काम कर रहा था। लेकिन पाकिस्तान के जो एलट थे

ना जो आज भी मुल्क को चलाते हैं वो इस बात से खफा हो गए। क्योंकि उनको लगा कि अगर भुट्टो इसी तरह चलता रहा तो उनका सोशल स्टेटस चैलेंज हो जाएगा। भुट्टो के दौर के बाद बारी आई जियाउल हक की और उसने मजहब का इस तरह से इस्तेमाल किया जिसकी वजह से पाकिस्तान आज भी सफर कर रहा है। मिडिल क्लास का एक बड़ा हिस्सा इस इस्लामाइजेशन प्रोजेक्ट का सपोर्टर बन गया। सोवियत अफगान वॉर के दौरान भी मिडिल क्लास यूथ जिहाद का हिस्सा बने। इसी वजह से पाकिस्तान में सेक्टेरियन और मिलिटेंट ग्रुप्स उभर के सामने आए जो आज तक सोसाइटी को डिवाइड किए हुए हैं। जिया के बाद

पाकिस्तान में सूडो डेमोक्रेसी आई और मुशरफ का दौर आया। पिछले 20-30 सालों में पाकिस्तान की मिडिल क्लास अपने ही मसलों में उलझ के रह गई है। लेकिन आखिर यह मसले हैं क्या? पाकिस्तान की मिडिल क्लास का ये जो साइकोलॉजिकल मेकअप है ना आज की हमारी इस गुफ्तगू में मैं इसी को डिकोड कर दूंगा। देखिए पाकिस्तान और इंडिया की जो मिडिल क्लास है ना वो फंडामेंटली अपनी जिंदगी दो एक्सट्रीम्स के दरमियान गुजारते हैं। जिसमें एक एक्सट्रीम है फियर यानी कि डर और दूसरा एक्सट्रीम है डिजायर्स यानी के ख्वाहिशात। यह जो मिडिल क्लास है ना यह सारी उम्र अपनी फाइनेंशियल सिक्योरिटी को

लेकर परेशान होती रहती है। एशियस होती रहती है। सारी उम्र इन लोगों ने पैसे जमा करने होते हैं क्योंकि यही पैसा उनके फ्यूचर की सिक्योरिटी की अलामत है। शायद इस पैसे से फ्यूचर तो सिक्योर हो जाए लेकिन ऐसे लोग कभी भी रिस्क नहीं ले पाते। मिडिल क्लास बहुत ही सोच समझ के अपने महाना एक्सपेंसेस प्लान करते हैं। उनका एक-एक खर्चा कैलकुलेटेड होता है। उन्हें एक सेफ जॉब यानी कि आइडियली गवर्नमेंट की जॉब चाहिए होती है ताकि फायर होने का डर ना हो। और इस मिडिल क्लास का जो अल्टीमेट ड्रीम होता है ना जो जिंदगी का सबसे बड़ा ख्वाब होता है जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद

सबसे बड़ा पर्पस होता है वो ये कि उनके सर पर अपनी छत हो और उस छत के लिए वो अपनी जवानी अपना बुढ़ापा सब जाया कर देते हैं। मैं इसको जाहिया इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जो लोग मेरी पर्सनालिटी को जानते हैं, मेरे पॉइंट ऑफ व्यू को जानते हैं, दे नो दैट आई एम स्ट्रिक्टली अगेंस्ट रियलस्टेट। पाकिस्तान का मेरे हिसाब से सबसे बड़ा मसला ही यह है कि वी आर हेड ओवर हील्स इन लव विद रियलस्टेट। पूरी जिंदगी हम लोग जाया कर देते हैं कि अपनी छत हो। ओ भाई जिंदगी एक ही दफा मिलती है। इसमें ट्रैवल करो, अपने ऊपर इन्वेस्ट करो, अपनी हॉबीज के ऊपर खर्चा करो। लेकिन मिडिल क्लास

प्राइममेरली अपनी इनकम की वजह से नहीं। आई रिपीट अपनी इनकम की वजह से नहीं, अपनी सोच की वजह से सफर करती है। आगे बढ़े तो जो मिडिल क्लास है ना उनका सोर्स ऑफ इनकम ज्यादातर उनकी सैलरी होती है। अनफॉर्चूनेटली सारी उम्र इस तनख्वाह को बैलेंस करने में ही निकल जाती है। अच्छा ये बात भी याद रखें कि ऐसा नहीं है कि ये लोग अपनी जिंदगी बदलना नहीं चाहते। उनकी एस्पिरेशंस एलट्स वाली होती हैं। वो अपर क्लास से ही इंस्पिरेशन लेते हैं। लेकिन मसला यह है कि रिस्क टेकिंग एबिलिटी ना होने की वजह से वो जिस ट्रेडमल पर भागना शुरू करते हैं उसी पर अपनी जिंदगी खत्म कर

देते हैं। पाकिस्तान की मिडिल क्लास पर आसिम सज्जाद अख्तर ने एक जबरदस्त किताब लिखी है। द स्ट्रगल फॉर हेजमनी इन पाकिस्तान। इस बुक में वो मिडिल क्लास को सिर्फ एक इकोनॉमिक तबके के तौर पर नहीं बल्कि इन्हें एक आइडियोलॉजिकल कैटेगरी के तौर पर देखते हैं। आसान अल्फाज़ में ये कि आप लोगों ने आजकल नोटिस किया होगा कि सोशल मीडिया होने की वजह से आज का जो पाकिस्तान की यूथ है जो पाकिस्तान का बच्चा है ना वो दूसरों की जिंदगी को देखकर अपनी जिंदगी बदलना चाहता है ताकि वो एक पावरफुल पोजीशन में आके दूसरों को इन्फ्लुएंस कर सके। पाकिस्तान में मौजूद मिडिल क्लास तबका

अपना सोशल स्टेटस इसलिए बेहतर करना चाहता है ताकि वो दूसरों को इन्फ्लुएंस कर सके। दूसरों को कंट्रोल कर सके। पाकिस्तान की मिडिल क्लास की अगर आप डीप डार्क साइकोलॉजी को अंडरस्टैंड करने की कोशिश करें ना तो वह दरअसल अपना सोशल स्टेटस इसलिए बदलना चाहते हैं ताकि वो दूसरों को इन्फ्लुएंस कर सके कंट्रोल कर सके क्योंकि सारी उम्र वो खुद दूसरों से कंट्रोल हुए हैं। अपनी इसी किताब में आसिम सज्जाद ने एक और बहुत ही पावरफुल कांसेप्ट को इंट्रोड्यूस किया जिसके बारे में मैंने पहले जिक्र किया जो कि है फियर एंड डिजायर डलेक्टिक। देखिए, यह जो पाकिस्तानी मिडिल

क्लास है ना इसके जेहन में बेतहाशा डर, बेतहाशा फियर, सारी उम्र बैठे रहते हैं। टेररिज्म का थ्रेट, सेकटेरियन वायलेंस का डर, इकोनॉमिक इनकलिटी का प्रेशर, और फ्यूचर की सिक्योरिटी का खौफ। और दूसरी तरफ सारी उम्र इस मिडिल क्लास का ज़हन डिजायर्स के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। क्योंकि वो अपने आसपास लग्जरी को देखते हैं। वो लोगों के बड़े-बड़े घर, गाड़ियां, घड़ियां, वेकेशंस के ऊपर नजर रखते हैं। लेकिन अनफॉर्चूनेटली ग्लास सीलिंग होने की वजह से वो उन चीजों को देख तो सकते हैं, लेकिन हासिल नहीं कर सकते। अच्छा ऐसा भी नहीं है कि ये मिडिल क्लास डीमोटिवेटेड

है। ये पूरी जिंदगी जान भरपूर मारते हैं। लेकिन सिस्टम हमारा ऐसा है, हमारा सोशल फैब्रिक ऐसा है कि ये मिडिल क्लास ज्यादातर इसी साइकिल के अंदर घूमती रहती है विदाउट एनी सोशल अपवर्ड मोबिलिटी। अच्छा म्यूजिंगली एंड इंटरेस्टिंगली ये जो साइकोलॉजिकल मैकेनिज्म है ना इसका ज्यादातर फायदा एलट्स उठाते हैं। उसकी वजह यह है कि मिडिल क्लास जो है वो सारी उम्र कंफ्यूज रहता है, डरा रहता है और वो सिस्टम का हिस्सा बने रहने की भरपूर कोशिश करता है। चाहे सिस्टम अच्छा हो या ना हो। एक तरफ उनका डर उन्हें रिस्क नहीं लेने देता और दूसरी तरफ जो उनकी डिजायर्स हैं,

जो उनकी ख्वाहिशात हैं, उन्हें आगे बढ़ने पर सारी उम्र उकसाती रहती हैं। यही लीथल कॉम्बिनेशन तो एलिट्स को चाहिए क्योंकि मिडिल क्लास ना तो बगावत करने के गट्स रखते हैं और ना सिस्टम को छोड़कर अपना रास्ता बनाने की करज होती है उनमें। इस किताब में आसिम सज्जाद लिखते हैं कि फियर और डिजायर का यह जो कॉम्प्लेक्स ब्लेंड है ना यह सिर्फ इकोनॉमिक और पॉलिटिकल पॉलिसीज तक लिमिटेड नहीं है बल्कि कल्चर, मीडिया और कंज्यूमर लाइफस्टाइल भी इस क्लास को सबसे ज्यादा इन्फ्लुएंस करता है। पाकिस्तान की जो रूलिंग क्लास है, जो एलट है ना उनके लिए सबसे बेहतरीन, सबसे

मैनेजेबल लोग ये मिडिल क्लास ही होते हैं। क्योंकि ना तो ये रैडिकल चेंज ला पाते हैं और ना सिस्टम को चैलेंज कर सकते हैं। इस बुक में मिडिल क्लास को एक कैप्टिव कंज्यूमर क्लास कहा गया है। यह एक ऐसा लफ्ज़ है जिसका मतलब जब मैं आपको समझाऊंगा तो शायद आपको गुस्सा आ जाए। देखिए दोस्तों पाकिस्तान के जो पावरफुल इंस्टीटशंस है ना जैसे कि मिलिट्री और ब्यूरोक्रेसी वो इस मिडिल क्लास के लिए एक लिमिटेड ऑप्शंस ही रखते हैं। ये एलट्स एक ऐसी कंट्रोल मार्केट क्रिएट करते हैं जिसके अंदर लिमिटेड ऑप्शंस हैं। लिमिटेड प्रोडक्ट्स हैं, लिमिटेड सर्विसेज हैं। लिहाजा मिडिल

क्लास को हुक्म ये है कि इन्हीं लिमिटेड ऑप्शंस के अंदर अपनी लाइफ को गुजारें। और अगर इससे बाहर निकलने की कोशिश की तो तुम्हारे हाथ काट दिए जाएंगे। इसकी मिसाल आप यूं समझे कि मिडिल क्लास लोगों का जैसे कि मैंने आपको बताया सबसे बड़ा ख्वाब होता है कि अपना घर हो। एक ऐसी जगह जहां पर वो सुकून से अपनी जिंदगी अपने बच्चों के साथ गुजार सके। यही वजह है कि पाकिस्तान में जो हाउसिंग सोसाइटीज का बिज़नेस है ना दैट इज ऑन अ बूम। जहां पर शायद मिडिल क्लास को सारी उम्र घिस के एक छोटा सा घर तो मिल जाए। लेकिन इन सोसाइटीज का असल फायदा इस

रूलिंग क्लास इन एलट्स को ही होता है। मिडिल क्लास वो घर ले तो लेता है और उसे लगता है कि अब उसका फ्यूचर सिक्योर है। वो खुश भी हो जाता है। लेकिन दरअसल वो एक मोनोपोली का शिकार है। अगर आपको दास कैपिटल का रिव्यु याद है तो उसमें मैंने आपको बताया था कि किस तरह ये रूलिंग क्लास ये एलट्स वर्किंग क्लास को एक्सप्लइट करते हैं। यहां भी ऐसा ही होता है। मिडिल क्लास 30-40 साल नौकरी करके घिस घिस के पूरी उम्र मेहनत करके कुछ पैसे जमा करता है। और वह पैसे इन रियलस्टेट डेवलपर्स के हाथ में थमा देता है। एक ऐसी प्रॉपर्टी जो शदीद तरीके से ओवरप्राइड है जिसकी वैल्यू

कौड़ियों की है और उसे हम करोड़ों के बदले खरीद रहे हैं। यह मिडिल क्लास मिनरल वाटर खरीद के, पैकेज्ड मिल्क खरीद के और इंपोर्टेड फूड्स खरीद के समझता है कि यह उसका एक सोशल स्टेटस है। उसे लगता है कि उसका बच्चा अब गवाले का दूध नहीं बल्कि पैकेज्ड मिल्क पीता है। जब उसे पानी पीना होता है तो उसके सामने जबरदस्त मिनरल वाटर मौजूद होता है। अब तो उसने अपने कुत्ते के लिए भी इंपोर्टेड डॉग फूड खरीदना शुरू कर दिया है। लेकिन मसला यह है कि यह सब कुछ मोनोपोलाइज्ड है। जिसे वो तरक्की और मॉडर्निटी समझता है। दरअसल वो एक सोशल ट्रैप है जिसमें वो फंस जाता है। मिडिल

क्लास का एक और मसला यह है कि सारी उम्र वो सेविंग्स और एक्सपेंडिचर के टग ऑफ वॉर में गुजार देते हैं। एक तरफ होता है उनका फियर ऑफ फॉलिंग बैक। यानी कि अगर पैसा सेव नहीं किया तो फ्यूचर सिक्योर नहीं रहेगा। और दूसरी तरफ होती है उनकी ख्वाहिशात। उन्हें ब्रांडेड कपड़े भी चाहिए, गाड़ियां भी चाहिए, घर भी चाहिए, वेकेशंस भी चाहिए। सोशल मेंटेनेंस के लिए Instagram पिक्चर्स भी चाहिए। इस सोशल स्टेटस को मेंटेन करने के लिए वो किसी भी हद तक चला जाएगा। ₹1000 का कॉफी का कप भी पी लेगा। तो चाहे वो इसे अफोर्ड ना ही कर सकता हो। क्योंकि मिडिल

क्लास ना एक और बीमारी का भी शिकार होती है जिसे कहते हैं सोशल कंपैरिजन। सारी उम्र ये लोग अपने फैमिली के प्रेशर में रहते हैं। कजिन प्रेशर में रहते हैं। रिश्तेदारों के प्रेशर में रहते हैं। असद नवे उन्हें नई गड्डी लाई है। अदनान नवे होते अमेरिका चला गया है। नबील दी गड्डी देखिए किनी चंगी है। ये स्टेटमेंट्स ये सोशल कंपैरिजन मिडिल क्लास को पागल कर देता है और वो अपने सोशल स्टेटस को बनाए रखने के लिए अपने लिमिटेड बजट होने के बावजूद अपनी स्पेंडिंग्स को नहीं रोकता। डर की बात करें तो मिडिल क्लास के अंदर सबसे बड़ा डर होता है गुरबत यानी पावर्टी

का। यह लोग हमेशा अपनी इज्जत, अपनी पहचान, अपने सोशल स्टेटस को बरकरार रखना चाहते हैं। इसीलिए वह अपना घर, अपनी गाड़ी, अपनी फैमिली के लाइफस्टाइल को इस तरह मेंटेन करते हैं कि लोग उन्हें गरीब या लोअर क्लास का लेबल ना दे सकके। ये जो सोशल मेंटेनेंस है ना, यह उनके ऊपर बहुत ज्यादा बर्डन डाल देती है। एक तरफ उनकी फाइनेंसियल स्ट्रगल और दूसरी तरफ सोसाइटी का प्रेशर। यानी उनकी फाइनेंसियल ए्जायटी सिर्फ पैसे की कमी नहीं बल्कि इज्जत, इमेज और सोशल स्टैंडिंग का भी मसला है। पाकिस्तान की जो रूलिंग क्लास है, जो एललीट्स हैं उनमें और मिडिल क्लास में

बहुत डिफरेंस है। बहुत फर्क है। कहने को तो हम इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान हैं। लेकिन यहां पर बेतहाशा इनकलिटी है। इसका सबसे बड़ा मुजायरा होता है इलेक्शंस में। हर 5 साल के बाद बड़ी तादाद में लोग अपने घरों से निकलते हैं। किसी पार्टी को वोट देते हैं और रिजल्ट्स का इंतजार करते हैं। लेकिन एक ही रात में यह रिजल्ट्स बदल दिए जाते हैं। लेकिन इन रिजल्ट्स को कौन बदलता है? इनको बदलती है वही एलट जो आपको ग्रो करते हुए नहीं देख सकती। कितनी दफा पाकिस्तान की मिडिल क्लास सड़कों पर निकली है। इन चीजों के खिलाफ एहतजाज किया है।

प्रोटेस्ट किया है। 1 दिन करेंगे, 2 दिन करेंगे, हफ्ता करेंगे, 10 दिन करेंगे, महीना करेंगे। उसके बाद उन्हें अपनी नौकरियों पर वापस जाना है और उसी रट उसी साइकिल का हिस्सा बनना है जिसके जरिए उनकी जिंदगी चलती है। एलट्स और रूलिंग क्लास इस बात को जानते हैं। लिहाजा दे नो दैट दिस मिडिल क्लास विल नेवर फाइट बैक। यहीं पर मैं अपनी गुफ्तगू का सबसे इंपॉर्टेंट टॉपिक इंट्रोड्यूस करना चाहूंगा क्योंकि मैं एक ऐसी चीज के बारे में बात कर रहा हूं जो मिडिल क्लास के लिए सेक्रेड है, सैक्रोसेंट है जो उनके लिए सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है और वो है उनके बच्चों की

तालीम। मिडिल क्लास फैमिली के लिए उनकी सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट होती है उनके बच्चों की एजुकेशन पे। वो जिस अपवर्ड मोबिलिटी का ख्वाब देखते हैं, जिन एलट्स में शामिल होना चाहते हैं, जिन गाड़ियों में घूमना चाहते हैं, उस तक पहुंचने का सबसे बड़ा टूल उनके लिए तालीम यानी कि एजुकेशन है। एक मिडिल क्लास बाप बेचारा सारी उम्र रगड़ा लगाता है, मेहनत करता है अपने बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन देने के लिए। क्योंकि उसे लगता है कि अगर उसके बच्चे पढ़ लिख गए तो वो अच्छी नौकरी पे चले जाएंगे, अच्छे पैसे कमा लेंगे। फॉर मिडिल क्लास एजुकेशन इज द टिकट टू सक्सेस।

मिडिल क्लास के लिए एजुकेशन सिर्फ एक लर्निंग नहीं बल्कि पावर्टी और इकोनमिक डाउनफॉल के अगेंस्ट एक इंश्योरेंस है। लेकिन मसला यह है कि इतने साल पढ़ने के बाद मेहनत करने के बाद जब वो मिडिल क्लास लड़का या लड़की जॉब मार्केट में जाते हैं तो उन्हें वो रिटर्न ही नहीं मिल पाता। वो किसी तरह मेहनत करके नौकरियां तो हासिल कर लेते हैं। लेकिन जो टॉप पेइंग जॉब्स होती है वो उन्हीं लोगों के हिस्से में जाती हैं जो एलट इंस्टीटश में पढ़ते हैं। जिनके बारे में मिडिल क्लास सोच भी नहीं सकता। मिडिल क्लास के लिए जॉब सिक्योरिटी भी एक बड़ा मसला है क्योंकि वही एक सोर्स ऑफ

इनकम है जिसकी बेसिस पर पूरा घर चलता है। ज्यादातर यह लोग ऐसी नौकरियों में होते हैं जो इतनी हाई पेइंग नहीं होती जहां पर प्रमोशनंस लिमिटेड होती है। सैलरी स्टैगेंट होती है और ग्रोथ ना होने के बराबर होती है। लिहाजा सारी उम्र ये मिडिल क्लास वो पंजाबी में कहते हैं ना 99 के चक्कर में लगे रहते हैं और यह 99 पूरे नहीं होते। अगर हम कल्चर की बात करें तो पाकिस्तान की मिडिल क्लास की कल्चरल साइकोलॉजी भी कंट्राडिक्टरी है। जहां पर एक तरफ शदीद कंजर्वेटिविज्म है और दूसरी तरफ मॉडर्निटी है। पाकिस्तान की एक आम मिडिल क्लास फैमिली अपने ट्रेडिशनल

वैल्यूस को रिलीजियसली फॉलो करती है। क्योंकि वही वैल्यू्यूज उनकी कोर आइडेंटिटी का पार्ट होती हैं। लेकिन साथ ही वो ग्लोबल मॉडर्निटी और सोशल मीडिया एक्सपोज़र की वजह से नए नॉर्म्स, लाइफस्टाइल और डिज़ायर्स को भी अडॉप्ट करना चाहते हैं। इसीलिए कभी तो वह अपनी वैल्यूज़ को रिजिडली डिफेंड करते हैं और कभी मॉडर्न एस्पिरेशंस के लिए कॉम्प्रोमाइज करते हैं। रिलजन की बात करें तो वह मिडिल क्लास के लिए सिर्फ एक स्पिरिचुअल फ्रेमवर्क नहीं बल्कि एक कल्चरल रेगुलेटर है। डेली लाइफ में जो सब डिसीजंस है ना उनकी कोर में, उनकी नेम में, उनकी फाउंडेशंस में हर जगह

मजा मौजूद है। इससे एक तरफ एक सेंस ऑफ बिलोंगिंग और स्टेबिलिटी तो आती है, लेकिन दूसरी तरफ रिजिड कंजर्वेटिज्म भी डेवलप होता है। जो अक्सो औकात मॉडर्निटी को एक्सेप्ट करने में एक बैरियर का काम करता है। मिडिल क्लास फैमिलीज़ में जेंडर रोल्स और फैमिली ऑनर की भी बहुत ज्यादाेंस है। आप नोटिस करें तो उनके लिए खवातीन का बिहेवियर फैमिली की इज्जत को डायरेक्टली रिफ्लेक्ट करता है। यानी जब एक फीमेल अपने घर से बाहर जाती है तो उसके ऊपर लाजिम है कि वो अपनी फैमिली की वैल्यूस को फॉलो करें। अगर वो ऐसा नहीं करती तो इसका मतलब यह है कि वो अपनी फैमिली की इज्जत नहीं

करती। यही वजह है कि अक्सर मिडिल क्लास फैमिलीज में खवातीन के ऊपर बहुत ज्यादा रिस्ट्रिकशंस होती हैं। ऐसा नहीं है कि लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता। उन्हें पढ़ाया भी जाता है, नौकरियां भी करवाई जाती हैं। लेकिन यह सब कुछ एक सेट फ्रेमवर्क एक लिमिटेड बाउंड्री के अंदर होता है। लेकिन जब से ये सोशल मीडिया रेवोल्यूशन आया है ना ये Instagram, ये Netflix, ये YouTube, ये TikTok इसने मिडिल क्लास के अंदर एक कल्चरल डुअलिटी डेवलप की है। एक तरफ ट्रेडिशन, रिलजन और फैमिली वैल्यूस और दूसरी तरफ ग्लोबलाइजेशन और मॉडर्निटी। पाकिस्तान की मिडिल क्लास

फैमिलीज़ में एक और बहुत बड़ी स्ट्रगल नजर आती है जो कि है जॉइंट फैमिली सिस्टम। मिडिल क्लास न्यूक्लियर की बजाय जॉइंट फैमिली सिस्टम को प्रेफरेंस देते हैं। क्योंकि जॉइंट फैमिली सिस्टम में फाइनेंसियल सपोर्ट, शेयर रिस्पांसिबिलिटीज और सोशल प्रोटेक्शन है। लेकिन यह बात भी दुरुस्त है। इसके ऊपर बहुत मीम्स बनती है कि जॉइंट फैमिली सिस्टम में इंडिविजुअल फ्रीडम और स्पेशली किसी भी किस्म की प्राइवेसी नहीं होती। आजकल के जो यूथ है ना उनके लिए न्यूक्लियर फैमिली का कांसेप्ट ज्यादा अट्रैक्टिव है। दे वांट टू बी इंडिपेंडेंट। वो अलेधा रहना चाहते

हैं। इंडिपेंडेंट डिसीजन मेकिंग करना चाहते हैं। अपनी फैमिली को इंडिविजुअली ग्रो करना चाहते हैं। लेकिन मिडिल क्लास फैमिलीज में सिर्फ मां-बाप का प्रेशर नहीं होता बल्कि चाचा, ताए, फूफा, खाला, मामू ये सब मिलकर आपके लिए डिसीजंस ले रहे होते हैं। लिहाजा इन फैमिलीज़ में ज्यादातर लोग स्पेशली लड़कियां इसी सोशल प्रेशर में अपनी लाइफ गुजारती हैं। मिडिल क्लास फैमिलीज़ में ना एक और इंटरेस्टिंग डायनामिक होता है। वो यह कि आपकी जो पर्सनल हैप्पीनेस है ना उससे ज्यादा कम्युनिटी अप्रूवल ज़्यादा इंपॉर्टेंट है। लोग अपनी लाइफ के मेजर

डिसीज़ंस इस बात पर लेते हैं कि लोग क्या कहेंगे। इसी वजह से बहुत सी शादियां, करियर, चॉइससेस और फाइनेंसियल डिसीजंस इंडिविजुअलिटी की बजाय कलेक्टिव, इज्जत और सोशल इमेज को मेंटेन करने के लिए जाते हैं। ये चीज जहां बिलोंगिंगनेस और सपोर्ट का एहसास देती है, वहीं इंडिविजुअल फ्रीडम को सप्रेस भी कर देती है। पाकिस्तान की मिडिल क्लास का अगर आप एनालिसिस करेंगे ना तो सबसे ज्यादा कंट्राडिक्शंस आपको इसी तबके में मिलेंगी। क्योंकि ना तो यह लोग एलट्स की तरह भरपूर प्रिविलेजेस एंजॉय करते हैं और ना ही वर्किंग क्लास की परेशानियों को समझ पाते हैं। इसीलिए इनकी

सोच और वैल्यूस एक अजीब सी ब्रेन रट का शिकार हो जाती हैं। जहां लोग अपनी जिंदगी को बेहतरीन बनाने की बजाय सिर्फ सर्वाइवल और सोशल स्टेटस के मेंटेनेंस के चक्कर में कंफ्यूज होके रह जाते हैं। मेंटल हेल्थ भी इस ब्रेन रट का हिस्सा है। स्ट्रेस, डिप्रेशन और ए्जायटी मिडिल क्लास में आम होता जा रहा है। लेकिन थेरेपी लेना इन लोगों के लिए एक स्टिग्मा है। लोग कहते हैं कि भाई तू साइकोलॉजिस्ट के पास जा रहा है यानी कि तू पागल हो गया है। इनके लिए कोपिंग मैकेनिज्म सिर्फ एक है। या तो एस्केपिज्म या फिर मजहब। इन्हें लगता है कि आपकी सारी डिप्रेशन, ए्जायटी और

स्ट्रेस इस वजह से है क्योंकि तुम दीन से दूर हो। तुम नमाज़ ही नहीं पढ़ते। लेकिन याद रखें दोस्तों, कैंसर का इलाज अगर आप डिसिप्लिन से करेंगे ना, तो वो इलाज कभी भी नहीं हो पाएगा। देखिए दोस्तों, आखिर में कंक्लूजन यह है कि मिडिल क्लास होना कोई गुनाह नहीं है। लेकिन मिडिल क्लास की सोच में ट्रैप हो जाना जरूर एक बड़ा मसला है। मैं यह समझता हूं कि इसमें पाकिस्तान की मिडिल क्लास का ज्यादा कसूर नहीं है। यहां पर अपपर सोशल मोबिलिटी है ही नहीं। लोगों के पास अपोरर्चुनिटीज ही नहीं है जिसकी वजह से वो एक ही साइकिल के अंदर अपनी पूरी जिंदगी गुजारते हैं। मेरा मैसेज

आपको यह है कि पाकिस्तान के एनवायरमेंट में आप एलट हैं, मिडिल क्लास हैं या लोअर क्लास हैं। आपने अपने मेंटल स्टेबिलिटी को मेंटेन रखना है। मेंटल सैनिटी को मेंटेन रखना है। अपनी इंडिविजुअलिटी पर काम करना है। अपने ऊपर मेहनत करनी है, कोशिश करनी है, स्ट्रगल करनी है। और किसी भी मेंटल कॉम्प्लेक्स का शिकार नहीं होना। अपने इंडिविजुअल फ्रीडम पे काम करें। अपने पैशन को तलाश करें। उस सेल्फ एक्चुअलाइजेशन स्टेट तक पहुंचने की कोशिश करें जिसके जरिए आप अपनी जिंदगी को जस्टिफाई कर सकें। मैं आपको बहुत दफा बता चुका हूं कि मेरे लिए सक्सेस की ये डेफिनेशन नहीं है कि

आपका बैंक बैलेंस कितना है या आप महाना कितने पैसे कमाते हैं? मेरी सक्सेस की जो इक्वेशन है वो मल्टीवेरिएंट है और उसमें आपकी जो इनकम है वो सिर्फ एक वेरिएबल है। आपकी फिजिकल हेल्थ कैसी है? आपकी मेंटल हेल्थ कैसी है? आपकी इमोशनल हेल्थ कैसी है? आपका सोशल कैपिटल कैसा है? आप कितने लोगों को इन्फ्लुएंस करते हैं? एंड मोस्टेंटली आप जिंदगी में कितने खुश हैं यही डिटरमिन करेगा कि आप मिडिल क्लास हैं या फिर एलट। किस्सा मुख्तसिर ये है कि दोस्तों असल एलट वही है, असल मालदार वही है जिसके अंदर आगे बढ़ने की क्यूरियोसिटी है जिसके अंदर

जज्बा है और जो जिंदगी में खुश है। फिर यह मैटर नहीं करता कि आपके बैंक के अंदर कितने पैसे पड़े हुए हैं। मेरी बातों के बारे में जरूर सोचिएगा। वीडियो पसंद आई हो तो लाइक बटन जरूर प्रेस कीजियेगा।


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