Aankhain by Manto (Urdu/Hindi)- ایک اجنبی عورت کی پراسرار آنکھیں

हेलो बुक बडीज। कैसे हैं आप लोग सब? आई होप ऑल ऑफ यू आर डूइंग ग्रेट। दोस्तों, आज फिर बारी है मंटो के एक जबरदस्त अफसाने की। देखिए बुक बडीज, मंटो के जो अफसाने है ना उनकी कुछ थीम्स होती हैं। सबसे पहले यह कि मंटो की जो शॉर्ट स्टोरीज होती है ना वो लेयर्ड होती है। यानी दिखने में वो आपको एक खातून, एक जिस्मश औरत, एक तवाइफ़ या कोई शख्स नजर आएगा। लेकिन उस औरत या उस तवाइफ़ होने के साथ-साथ उसके अंदर एक और मैसेज भी छुपा होगा। मंटों की कहानियों के किरदारों के अंदर किरदार होते हैं और आपने अपनी अकल से, अपने इंटेलेक्ट से, अपने फहम

से उनका मतलब निकालना होता है। लिहाजा उनकी जो बेशतर स्टोरीज है ना वो खत्म होने के बाद भी कई दिन तक आपके साथ रहती हैं। दूसरी ग्रेट बात मंटो की यह है कि वो एक जीनियस राइटर था। लिहाजा वो सिंबलिज्म का भी बहुत इस्तेमाल करता है। दिखने में आपके लिए वो एक मामूली काली शलवार होगी। लेकिन उस काली शलवार के पीछे एक कमाल की कहानी है। मंटो सिर्फ एक काली शलवार के जरिए जो हमारे मुशरे की डार्क साइड है वो आपके सामने रख देता है। जब मंटो ब की बात करता है तो वो सिर्फ जिस्म की ब नहीं है बल्कि वो ब है उस खुशगवार याददाश्त की जो कहीं आपके ज़हन में खो के रह गई है। इसी तरह इस

ग्रेट राइटर की शॉर्ट स्टोरीज की एक और जबरदस्त चीज होती है इसकी सडन एंडिंग्स। मंटो की कहानियों की जो ट्विस्टेड एंडिंग्स होती है ना वो तो इंसान को हिला के रख देती है। आज की जो कहानी मैं आपको सुनाना चाह रहा हूं वो भी कुछ इसी तरह की है और इसका नाम है आंखें। मैंने जब मंटों के अफसानों पे दोस्तों वीडियोस बनानी शुरू करी ना तो शुरू-शुर में मेरा तरीकाकार यह था कि मैं कहानी सुनाकर वीडियो खत्म कर दिया करता था। लेकिन लोगों ने कहा कि क्योंकि मंटों की कहानी लेयर्ड होती है उसके अंदर बहुत सारे मीनिंग्स छुपे होते हैं। लिहाजा आप कहानी को डिकोड भी किया

करें। अपना एनालिसिस भी प्रेजेंट किया करें। लिहाजा अब मैंने ऐसा करना शुरू कर दिया है। लेकिन आज की जो कहानी है उसमें किसी भी किस्म के एनालिसिस की जरूरत नहीं है। क्योंकि इस अफसाने का एंड आपको सब कुछ समझा देगा। लेकिन कहानी सुनाने से पहले मैं आपसे एक सवाल करना चाहूंगा। सवाल यह है कि क्या आपको भी कभी किसी लड़की की आंखों से प्यार हुआ है? इसके सारे जिस्म में मुझे इसकी आंखें बहुत पसंद थी। यह आंखें बिल्कुल ऐसी ही थी जैसी अंधेरी रात में मोटर कार की हेडलाइट्स जिनको आदमी सबसे पहले देखता है। आप यह ना समझिएगा कि वो बहुत खूबसूरत आंखें थी। हरगिज़ नहीं।

मैं खूबसूरती और बदसूरती में तमीज कर सकता हूं। लेकिन माफ कीजिएगा इन आंखों के मामले में सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि वो खूबसूरत नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें बेपनाह कशिश थी। मेरी और इन आंखों की मुलाकात एक अस्पताल में हुई। मैं इस अस्पताल का नाम आपको बताना नहीं चाहता। इसलिए कि इससे मेरे सफसाने को कोई फायदा नहीं पहुंचेगा। बस आप यही समझ लीजिएगा कि एक अस्पताल था जिसमें मेरा एक अजीज ऑपरेशन कराने के बाद अपनी जिंदगी की आखिरी सांसे ले रहा था। यकीन मानिए कि मुझे सख्त कोफ्त हो रही थी। अस्पताल के नाम ही से मुझे नफरत है। मालूम

नहीं क्यों। मैं इन आंखों का जिक्र कर रहा था जो मुझे बेहद पसंद थी। पसंद का मामला इनफरादी हैसियत रखता है। बहुत मुमकिन है अगर आप यह आंखें देखते तो आपके दिलो दिमाग में कोई रद्दे अमल पैदा ना होता। यह भी मुमकिन है कि अगर आपसे इनके बारे में राय तलब की जाती तो आप कह देते निहायत वाहियात आंखें हैं। लेकिन जब मैंने इस लड़की को देखा तो सबसे पहले मुझे इसकी आंखों ने अपनी तरफ मुतवजा किया। वो बुर्का पहनी हुई थी। मगर नकाब उठा हुआ था। इसके हाथ में दवा की एक बोतल थी और वह जनरल वार्ड के बरामदे में एक छोटे से लड़के के साथ चली आ रही थी।

मैंने इसकी तरफ देखा तो इसकी आंखों में जो बड़ी थी ना छोटी स्या थी ना भूरी नीली थी ना सब एक अजीब किस्म की चमक पैदा हुई मेरे कदम रुक गए वो भी ठहर गई उसने अपने साथी लड़के का हाथ पकड़ा और बौखलाई हुई आवाज में कहा तुमसे चला नहीं जाता लड़के ने अपनी कलाई छुड़ाई और तेजी से कहा चल तो रहा हूं मैंने यह सुना तो इस लड़की की आंखों की तरफ दोबारा देखा इसके सारे वजूद में सिर्फ सिर्फ इसकी आंखें ही थी जो मुझे पसंद आई थी। मैं आगे बढ़ा और इसके पास पहुंच गया। इसने मुझे पलकें ना झपकने वाली आंखों से देखा और पूछा एक्सरे कहां लिया जाता है? इत्तेफाक की बात है कि इन दिनों

एक्सरे डिपार्टमेंट में मेरा एक दोस्त काम कर रहा था और मैं इसी से मिलने के लिए आया था। आओ मैं तुम्हें वहां ले चलता हूं। मैं भी इधर ही जा रहा हूं। लड़की ने अपने साथी लड़के का हाथ पकड़ा और मेरे साथ चल पड़ी। मैंने डॉक्टर सादिक का पूछा तो मालूम हुआ वह एक्सरे लेने में मशरूफ हैं। दरवाजा बंद था और बाहर मरीजों की भीड़ लगी थी। मैंने दरवाजा खटखटाया। अंदर से तेजुंद आवाज आई। कौन है? दरवाजा मत ठोको। लेकिन मैंने फिर दस्तक दी। दरवाजा खुला और डॉक्टर सादिक मुझे गाली देते रह गया। तेरी ओह तुम हो। हां भाई मैं तुमसे ही मिलने आया था। दफ्तर में गया तो

मालूम हुआ तुम यहां हो। आ जाओ आ जाओ अंदर आ जाओ। मैंने लड़की की तरफ देखा और उससे कहा आओ लेकिन लड़के को बाहर ही रहने दो। डॉक्टर सादिक ने हौले से मुझसे पूछा कौन है यह? मैंने जवाब दिया मालूम नहीं कौन है? एक्सरे डिपार्टमेंट का पूछ रही थी तो मैंने कहा चलो मैं ले चलता हूं। डॉक्टर सादिक ने दरवाजा और ज्यादा खोल दिया और वो लड़की अंदर दाखिल हो गई। चार पांच ही मरीज थे। डॉक्टर सादिक ने जल्दी-जल्दी इनकी स्क्रीनिंग की और इन्हें रुखसत किया। इसके बाद कमरे में हम सिर्फ दो रह गए। मैं और वो लड़की। डॉक्टर सादिक ने मुझसे पूछा, इन्हें क्या बीमारी है?

मैंने लड़की से पूछा, क्या बीमारी है तुम्हें? एक्सरे के लिए तुमसे किस डॉक्टर ने कहा था? अंधेरे कमरे में लड़की ने मेरी तरफ देखा और जवाब दिया, “मुझे मालूम नहीं क्या बीमारी है।” हमारे मोहल्ले में एक डॉक्टर है। इसने कहा था कि एक्सरे करा लो।” डॉक्टर सादिक ने इससे कहा कि मशीन की तरफ आए। वो आगे बढ़ी तो बड़े जोर के साथ इससे टकरा गई। डॉक्टर ने तेज लहजे में इससे कहा, “ओ भाई, क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता?” लड़की खामोश रही। डॉक्टर ने इसका बुर्का उतारा और स्क्रीन के पीछे खड़ा कर दिया। फिर इसने स्विच ऑन किया। मैंने शीशे में देखा तो मुझे इसकी पसलियां

नजर आ रही थी। इसका दिल भी एक कोने में काले से धब्बे की सूरत में धड़क रहा था। डॉक्टर सादिक 5 6 मिनट तक इसकी पसलियं और हड्डियों को देखता रहा। इसके बाद इसने स्विच ऑफ कर दिया और रोशनी करके मुझसे मुखातिब हुआ। छाती बिल्कुल साफ है। लड़की ने मालूम नहीं क्या समझा। उसने अपनी छातियों पर जो काफी बड़ी-बड़ी थी, दुपट्टे को दुरुस्त किया और बुर्का ढूंढने लगी। बुर्का एक कोने में मेज पर पड़ा था। मैंने बढ़कर इसे उठाया और इसके हवाले कर दिया। डॉक्टर सादिक ने रिपोर्ट लिखी और इससे पूछा, तुम्हारा नाम क्या है? लड़की ने बुर्का ओढ़ते हुए जवाब दिया, “जी, मेरा

नाम? मेरा नाम हनीफा है। हम हनीफा। डॉक्टर सादिक ने इसका नाम पर्ची पर लिखा और उसको दे दी। जाओ, यह अपने डॉक्टर को दिखा देना।” लड़की ने पर्ची ली और कमीज के अंदर डाल ली। जब वो बाहर निकली, तो मैं गैर इरादी तौर पर इसके पीछे पीछे था। लेकिन मुझे इसका पूरी तरह एहसास था कि डॉक्टर सादिक ने मुझे शक की नजरों से देखा था। इसे जहां तक मैं समझता हूं इस बात का यकीन था कि इस लड़की से मेरा ताल्लुक है। हालांकि जैसा आप जानते हैं कि ऐसा कोई मामला नहीं था सिवाय इसके कि मुझे इसकी आंखें पसंद आ गई थी। मैं इसके पीछे-पीछे था। इसने अपने साथी

लड़के की उंगली पकड़ी हुई थी। जब वो तांगों के अड्डे पर पहुंचे तो मैंने हनीफा से पूछा। तुम्हें कहां जाना है? इसने गली का नाम लिया तो मैंने इससे झूठ-मूठ कहा। मुझे भी इधर ही जाना है। मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा। मैंने जब इसका हाथ पकड़ कर इसे तांगे में बिठाया तो मुझे यूं महसूस हुआ कि मेरी आंखें एक्सरेज का शीशा बन गई हैं। मुझे इसका गोश्त पोस्ट दिखाई नहीं देता था। सिर्फ ढांचा नजर आता था। लेकिन इसकी आंखें वो बिल्कुल साबित और सालिम थी। जिनमें बेपनाह कशिश थी। मेरा जी चाहता था कि मैं इसके साथ बैठूं। लेकिन यह सोच कर कि कोई देख लेगा मैंने इसके साथी

लड़के को इसके साथ बिठा दिया और आप अगली निशिस्त पर बैठ गया। तांगा चला तो हनीफा मुझसे मुखातिब हुई। तुम कौन हो? मैं मैं सादत हसन मंटो हूं। यह मंटो क्या है? कश्मीरियों की एक जात है। हम भी कश्मीरी हैं। अच्छा हम किंग वाइस हैं। मैंने मुड़कर इससे कहा यह तो बहुत ऊंची जात है। वो मुस्कुराई और इसकी आंखें और ज्यादा पुरकशिश हो गई। मैंने अपनी जिंदगी में बेशुमार खूबसूरत आंखें देखी थी। लेकिन वो आंखें जो हनीफा के चेहरे पर थी, बेहद पुरकशिश थी। मालूम नहीं इनमें क्या चीज थी जो कशिश का बायस थी। मैं आपको पहले भी बता चुका हूं कि वो

कतन खूबसूरत नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद मेरे दिल में घूब रही थी। मैंने जसारत से काम लिया और उसके बालों की एक लट जो उसके माथे पर लटक कर इसकी एक आंख को ढांप रही थी। उंगली से उठाया और इसके सर पर चिस्मा कर दी। इसने बुरा ना माना। मैंने और जसारत की और उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। इस पर भी उसने कोई मजामत ना की और अपने साथी लड़के से मुखातिब हुई। तुम मेरा हाथ क्यों दबा रहे हो? मैंने फौरन इसका हाथ छोड़ दिया और लड़के से पूछा तुम्हारा मकान कहां है? लड़के ने हाथ का इशारा किया इस बाजार में। तांगे ने इधर का रुख किया। बाजार में बहुत

भीड़ थी। ट्रैफिक भी मामूल से ज्यादा था। तांगा रुक-रुक के चल रहा था। सड़क में चूके गड़े थे इसलिए बड़े जोर के धजके लग रहे थे। बार-बार इसका सर मेरे कंधों से टकराता था और मेरा जी चाहता था कि इसे अपने जानों पर रख लूं और इसकी आंखें देखता रहूं। थोड़ी देर के बाद इनका घर आ गया। लड़के ने तांगे वाले से रुकने के लिए कहा। जब तक तांगा रुका तो वो नीचे उतरा। हनीफा बैठी रही। मैंने उससे कहा तुम्हारा घर आ गया है। हनीफा ने मुड़कर मेरी तरफ अपनी अजीबोगरीब आंखों से देखा। बदरू कहां है? मैंने इससे पूछा कौन बद्रू? वो लड़का जो मेरे साथ था। मैंने लड़के की तरफ देखा जो

तांगे के पास ही था। यह खड़ा तो है? अच्छा यह कहकर उसने बद्रू से कहा, बद्रू मुझे उतार तो दो। बदरू ने इसका हाथ पकड़ा और बड़ी मुश्किल से नीचे उतारा। मैंने हैरान होकर इस लड़के से पूछा, क्या बात है? यह खुद क्यों नहीं उतर सकती? बदरू ने जवाब दिया, “जी नहीं, इनकी आंखें खराब हैं। इन्हें दिखाई नहीं देता। इन्हें दिखाई नहीं देता। इन्हें दिखाई नहीं देता।


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