The Stranger by Albert Camus (Hindi/Urdu) – Nihilism vs Existentialism

मामा डाइड टुडे और मे बी यस्टरडे। आई डोंट नो। इस अजीबोगरीब स्टेटमेंट से आगाज होता है एक ऐसी किताब का जिसने फिलॉसफी को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। दोस्तों, जब से इंसान ने होश संभाला है, कुछ ऐसे सवालात हैं जो वो पिछले हजारों लाखों सालों से अपने आप से पूछता हुआ आया है। आखिर मेरी जिंदगी का मकसद क्या है? हम इस दुनिया में क्यों आए हैं? क्या हमारा काम पूरी उम्र अपनी जरूरतें पूरी करना है या लाइफ एज अ डीप एंड प्रोफाउंड मीनिंग? क्या हमारी लाइफ, हमारी फैमिली, ये दुनिया, ये कायनात, ये यूनिवर्स किसी सेट प्लान का हिस्सा है या फिर यह सब कुछ

मीनिंगलेस है जिसका कोई अंजाम नहीं। इस तरह के सवालात ऑलमोस्ट हर शख्स के ज़हन में कभी ना कभी जरूर आते हैं। और इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश की है अल्बर्ट केमू ने अपने पाथ ब्रेकिंग नवेल 10 ड्रेंजर में। अल्बर्ट केमो हमें अपनी इस किताब में एक ऐसे किरदार से मिलाता है जो लाइफ की एब्सोर्डिटी और एक्सिस्टेंशियल डलेमास को फेस कर रहा है। एब्सोर्डिटी एक्सिस्टेंशियल डलेमास बुक बडी इतने हैवी ड्यूटी वर्ड्स आप क्यों यूज़ कर रहे हैं? घबराएं नहीं इनका मतलब मैं आगे जाके आपको समझा दूंगा। अल्बर्ट केमू एक फ्रेंच अल्जेरियन नोवेलिस्ट और राइटर थे

जिन्होंने वर्ल्ड वॉर वन और टू के दौरान इंपॉर्टेंट टॉपिक्स पर लिखा। अल्बर्ट केमू की प्रेस्टीज का आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं दैट ही वॉन द नोबेल प्राइज फॉर लिटरेचर। इस किताब द स्ट्रेंजर के अलावा उनकी और भी बड़ी जबरदस्त किताबें हैं। जैसे कि द प्लेग, द रिबेल और एक कमाल का फिलोसोफिकल एस्से द मिथ ऑफ सिसफस। यह नवेल द स्ट्रेंजर दो पार्ट्स में डिवाइडेड है। और कहानी का नैरेटर इसका मेन कैरेक्टर है जिसका नाम है मेकस। वो एक फ्रेंच अल्जेरियन क्लर्क है और अल्जेस में रहता है। यह जो कैरेक्टर है ना मेकसोंग यह एक अजीबोगरीब शख्सियत है। और उसकी पर्सनालिटी

की सबसे अजीबोगरीब ट्रेट यह है कि ही इज़ अनइफेक्टेड बाय द इवेंट्स ऑफ द वर्ल्ड। वो इस दुनिया से इमोशनली डिटच्ड है। बड़ी से बड़ी ट्रेजडी हो जाए इस शख्स के ऊपर कोई फर्क ही नहीं पड़ता। यह जो कहानी है द स्ट्रेंजर इसका आगाज एक टेलीग्राम से होता है जो मेक्स को रिसीव होता है। उस टेलीग्राम में सिर्फ यह लिखा होता है कि उसकी मां जो एक ओल्ड एज होम में मौजूद थी उसकी डेथ हो गई है। मदर डिसीज्ड फ्यूनरल टुमारो फेथफुली योर्स। दुनिया के किसी भी शख्स को अपनी मां से रिलेटेड इस तरह की न्यूज़ मिले तो वो फौरन रोने लगेगा, परेशान हो जाएगा, डिप्रेस हो जाएगा, सैड

हो जाएगा। लेकिन मैक्सों का रिएक्शन बिल्कुल उलट था। ना वो टेंस हुआ, ना वो रोया और ना वो परेशान हुआ। इनफैक्ट ही वास अबब्सोलुटली अनइफेक्टेड। यहां पर वो ऐसी लाइंस कहता है जो इस नवेल द स्ट्रेंजर की पूरी दुनिया में पहचान बन गई है। मम्मा डाइड टुडे और मे बी यस्टरडे। आई डोंट नो। यह जो पूरे नवेल का क्रक्स है ना यह इसी एक स्टेटमेंट में मौजूद है। इसको जरा अनफोल्ड करते हैं। मेथ्स बस लेकर ओल्ड एज होम जाता है ताकि अपने मां के फ्यूनरल को अटेंड कर सके। वहां भी उसका बिहेवियर बिल्कुल ही नॉर्मल होता है। ना वह परेशान है, ना उसको कोई दुख है और ना उसको रोना

आता है। उसका इस तरह का रवैया देखकर लोग हैरान परेशान हो जाते हैं। इनफैक्ट जब वार्डन उसे अपनी मां का आखिरी दफा चेहरा दिखाने लगती है तो वो उसे मना कर देता है और कह देता है कि इसकी कोई जरूरत नहीं। वह सिगरेट लेता है, कॉफी पीता है और बिल्कुल कैजुअल बिहेव करता है। उसे फर्क ही नहीं पड़ता कि उसकी मां अब इस दुनिया से जा चुकी है। अगले ही दिन वह वापस अपनी रूटीन पर आ जाता है। अपनी दोस्त मैरी के साथ बीत जाता है। उसे फ्लर्ट करता है। दोनों मूवी देखते हैं और खूब एंजॉय करते हैं। यह सब देखकर मैरी भी हैरान परेशान हो जाती है कि

अभी कल ही तो इसकी मां का इंतकाल हुआ है। और आज यह बिल्कुल नॉर्मल बिहेव कर रहा है। मां के फ्यूनरल के अगले ही दिन रोमांस करना और एंटरटेनमेंट तलाश करना यह किसी नॉर्मल शख्स की पहचान नहीं है। फिर कहानी में एक नया कैरेक्टर ऐड होता है जिसका नाम है रेमंड। यह शख्स मेक्स का नेबर है। रेमंड एक शेडी और वायलेंट शख्स है जो अपनी मिस्ट्रीस से किसी बात का रिवेंज यानी कि बदला लेना चाहता है। और मेक्स से एक लेटर लिखने में हेल्प लेता है कि एक ऐसा लेटर लिखो जिसे पढ़कर मेरी मिस्ट्रेस वापस आ जाए और मैं उसे टॉर्चर कर सकूं। मेक्सो क्योंकि वैसे ही एक इमोशनलेस शख्स है।

लिहाजा वो उस लेटर को लिखने में उसकी मदद कर देता है। इस लेटर के बाद रेमंड और उसकी जो मिस्ट्रीस है ना उसका कॉन्फ्लिक्ट बढ़ जाता है। और वो मिस्ट्रिस जो एक अरबी खातून थी उसका भाई भी इस कॉन्फ्लिक्ट में इन्वॉल्व हो जाता है। फिर एक दिन मेक्सो रेमंड और मैरी बीच पर जाते हैं। वहां पर उनकी दो अरबी लोगों से मुलाकात होती है। उनमें से एक अरबी शख्स रेमंड की मिस्ट्रेस का भाई है। उनके दरमियान फाइट होती है और रेमंड इंजर्ड हो जाता है। लेटर जब मैगसम बीच पर अकेला वॉक कर रहा होता है तो दोबारा उसकी उस अरबी शख्स से मुलाकात होती है। वह उसे गोली मार देता है। वह कहता है

कि सूरज की गर्मी इतनी इंटेंस हो गई थी। मुझे पसीना आ रहा था और लाइट की इरिटेशन की वजह से मुझ पे साइकोलॉजिकल प्रेशर हो गया। जिसकी वजह से मेरे हाथ से गोली चल गई और वो शख्स मर गया। इस स्टोरी के पार्ट टू में अल्बर्ट कमो मेक्स के कोर्ट ट्रायल और जेल के फेस को प्रेजेंट करता है कि कैसे उसके कोर्ट ट्रायल्स में उसको एक हार्टलेस मॉन्सर के तौर पे पेंट किया गया। उसकी कैरेक्टर अससिनेशन की गई। कोर्ट को यह बात दिल पर लग जाती है कि जो शख्स अपनी मां की मौत पर भी अफसोरदा ना हो इस तरह का साइको शख्स सोसाइटी के लिए खतरा है। इसीलिए जरी

उसे गिल्टी करार देकर डेथ सेंटेंस सुना देती है। और जब उससे उसकी आखिरी विश पूछी जाती है तो वो कहता है कि उसे फांसी लगाने की बजाय गिलोटीन से उसका गला काट दिया जाए। जेल जाने के बाद मेक्स का सबसे पहला चैलेंज होता है जेल के एनवायरमेंट को लेकर जहां पर कनफाइंड स्पेस है और लिमिटेड मूवमेंट है। शुरू-शुर में तो उसे नींद ही नहीं आती थी क्योंकि वो एक इंडिपेंडेंट लाइफ का आदि था। उसके माइंड में बार-बार यह थॉट्स आते कि आखिर उसने उस शख्स का मर्डर क्यों किया? लेकिन जब वह इस सवाल का जवाब ढूंढने लगता तो उसे किसी भी किस्म का रिग्रेट नहीं होता था। शुरू-शुर में तो वो

अपने प्रजन अपने जेल में परेशान हुआ। लेकिन बिल आखिर वो यह बात समझ गया कि इंसान किसी भी चीज की आदत डाल सकता है। चाहे वो इंडिपेंडेंस हो या फिर एक छोटे से कमरे में अपनी पूरी जिंदगी गुजारना हो। इंसान के पास ऐसी मैजिकल सुपर पावर्स हैं कि वह हर कंडीशन में एडप्ट कर सकता है। पहले वह दिन गिनता था फिर महीने और बाद में उसने टाइम का हिसाब रखना ही छोड़ दिया और यहीं पर उसे एक बहुत बड़ी रियलाइजेशन हुई। उसने यह रियलाइज़ किया कि अगर हम हर चीज के मीनिंग को छोड़ दें तो जिंदगी सिर्फ एक सीक्वेंस ऑफ़ डज़ बन जाती है जिसमें सिर्फ सर्वाइवल काम आता है। जेल के

अंदर अपनी एग्जीक्यूशन का वेट करते हुए वो रिलजन का सहारा लेने से भी इंकार कर देता है। उसे कन्वर्ट करने की कोशिश की जाती है लेकिन वो मना कर देता है और यही वो मौका होता है जब अपनी मौत से परेशान होने की बजाय उसे जिंदगी में वो क्लेरिटी मिलती है जो पहले कभी ना थी। लेकिन यह क्लेरिटी ना दोस्तों थोड़ी सी आपको परेशान कर सकती है। उसे रियलाइज होता है कि लाइफ मीनिंगलेस है। हमारी जिंदगी का कोई मकसद नहीं। डेथ इनविटेबल है। यानी कि मौत आके ही रहेगी। और ये जो पूरी इतनी बड़ी लामहदूद इनफिनिट कायनात है यूनिवर्स है। ये इंसान को लेकर

इनडिफरेंट है। इसे फर्क ही नहीं पड़ता कि इंसान जिंदा रहे या मर जाए। इसी सोच इसी कांसेप्ट को फिलॉसफी में दोस्तों कहते हैं एब्सर्डिज्म। एब्सोर्डिज्म का फलसफा यह कहता है कि यह दुनिया इररैशनल और मीनिंगलेस है। अगर आप इसके अंदर कोई ऑर्डर, कोई सिमिट्री, कोई मीनिंग, कोई पर्पस तलाश करने की कोशिश करेंगे तो आप खुद कॉन्फ्लिक्ट का शिकार हो जाएंगे। एब्सोर्डिज्म का जो बेसिक फलसफा है ना वो हमें यह बताता है कि ये जो दुनिया है ना यह केटिक है, पर्पसलेस है। इसके अंदर अगर आप मकसद तलाश करने की कोशिश करेंगे तो आप खुद घूम के रह जाएंगे। लेकिन इंसान की खास

बात यह है कि ये सारे एब्सोर्डिज्म होने के बावजूद वो कहीं ना कहीं कोशिश करता है अपनी लाइफ को मीनिंग देने के लिए। इसी पैराडॉक्स को एब्सर्ड कहते हैं। अगर हम इस वर्ड एब्सर्ड के लिटरल मीनिंग को डिकोड करें तो इसका मतलब होता है रेडिकुलस, नॉनसेंस या फिर इलॉजिकल। कैमू के इस नवेल द स्ट्रेंजर की एक थीम यह भी है कि आप अपनी जिंदगी को एंजॉय करो। चाहे दुनिया कितनी ही एब्सर्ट क्यों ना हो। यहां पर अक्सर लोग एब्सर्टिज्म को नाइलिज्म के कांसेप्ट से कंफ्यूज कर देते हैं। ये दोनों अलग-अलग आइडियाज हैं। नायलिज्म के अकॉर्डिंग भी यूनिवर्स मीनिंगलेस है।

लेकिन वो सारी मोरालिटी और एथिक्स को रिजेक्ट कर देता है और कभी-कभी जिंदगी को भी। लेकिन यहां भी नालिज्म की दो कैटेगरीज हैं। एक है पैसिव नाइलिज्म और दूसरा एक्टिव। पैसिव नालिज्म वही है जो अभी मैंने आपको बताया। लेकिन एक्टिव नाइलिज्म वो है जिसको द ग्रेट द मस्ट्रो द लेजेंड्री फ्रीडिक नेचा ने प्रोपगेट किया। एक्टिव नायलिज्म ये कहता है कि यह दुनिया मीनिंगलेस है ना। आपकी लाइफ का कोई पर्पस नहीं है। लिहाजा यह आपके लिए ओपोरर्चुनिटी है कि आप अपनी जिंदगी को खुद मीनिंग दो। यू आर एट द ड्राइवर सीट ऑफ योर लाइफ। एक्टिव नायलिज्म डिस्ट्रक्टिव भी है,

कंस्ट्रक्टिव भी है और क्रिएटिव भी है। पहले वो आपको कहता है कि सारी एकिस्टिंग वैल्यूस को मोरल स्ट्रक्चर को तबाह बर्बाद कर दो, डिस्ट्रक्ट कर दो। और फिर वो आपको कहता है कि इसको दोबारा रिकंस्ट्रक्ट करो अपने हिसाब से। जबकि एब्सर्टिज्म में इंसान को हर चीज का सामना करने के बावजूद जिंदा रहना चाहिए और खुद को मोरली और एथिकली सीधे रास्ते पर रखना चाहिए। एब्सर्टिज्म का आईडिया आपको फ्रांस काफका की राइटिंग्स में भी मिलेगा। इस नवेल में भी मेक्स के जरिए अल्बर्ट कमूर ने यह बात कम्युनिकेट करने की कोशिश की है कि इंसान सोसाइटी से जितना ही इमोशनली डिटच हो जाए,

डिस्कनेक्टेड हो जाए, लेकिन फिर भी वो अपनी लाइफ जी सकता है। जिस तरह मैक्स हो, उसके ऊपर कोई भी एक्सटर्नल फोर्स असर ही नहीं करती। ही इज कंप्लीटली अनफेक्टेड बाय द आउटर वर्ल्ड। उसके नजदीक डेथ एक एब्सोल्यूट रियलिटी है। हर एक ने इस दुनिया से एक दिन चले जाना है। तो किसी के जाने पे रोने धोने का क्या फायदा? बल्कि कमू इस नवेल के जरिए हमें यह बताना चाहता है कि डेथ की रियलिटी को इंसान जितनी जल्दी एक्सेप्ट कर ले उतना ही उसके लिए बेहतर होता है। सिंस वी आर ऑल गोइंग टू डाई इट्स ऑब्वियस दैट व्हेन एंड हाउ डोंट मैटर। जब उसकी गर्लफ्रेंड मैरी उससे शादी

करने की बात करती है तो मेक्स उसे बहुत ही स्ट्रेट फॉरवर्ड जवाब देता है। वो कहता है कि उसके लिए शादी जैसे बंधन की कोईेंस नहीं। इसी तरह मेक्स जब इंप्रज़ होता है, जेल में होता है, तो इस पीरियड में भी अल्बर्ट केमू ने एब्सर्टिज्म को सही तरीके से प्रेजेंट किया है। जहां वो इतने टफ और अनकंफर्टेबल सरकमस्ट्ससेस में भी इमोशनली रिएक्ट नहीं करता और अपने आप को इजीली एडजस्ट कर लेता है। एस फॉर द रेस्ट ऑफ द टाइम आई मैनेज्ड क्वाइट वेल। रियली? इफ आई हैड बीन कंपल्ड टू लिव इन द ट्रंक ऑफ अ डेड ट्री। आई हैड हैव गॉट यूज्ड टू इट बाय

डिग्रीज। इस स्टेटमेंट का मतलब यह है कि लाइफ में चाहे जितने ही बुरे सरकमस्ट्ससेस हो जाए इंसान के पास यह पावर है कि वो अपने आप को माहौल के हिसाब से सिचुएशन के हिसाब से एडजस्ट कर सकता है। एक और बात आपने याद रखनी है कि जिस वक्त अल्बर्ट कैमू ने ये नवेल लिखा था ना द स्ट्रेंजर इन 1942 उस वक्त फ्रांस में एक जबरदस्त फिलोसोफिकल मूवमेंट चल रही थी जो कि थी एक्सिस्टेंशियलिज्म। एक्सिस्टेंशियलिज्म के ऊपर भी मैं डिटेल्ड वीडियोस बहुत दफा बना चुका हूं। आप उनको जरूर देखिएगा। बेसिकली एक्सिस्टेंशियलिस्ट थॉट ये कहती है कि जिंदगी का ना कोई पर्पस नहीं है।

लिहाजा इंसान के पास भरपूर अथॉरिटी है। उसके पास फ्री विल है कि वो अपनी जिंदगी के साथ जो करना चाहे कर ले। ये इतना पावरफुल, इतना जबरदस्त फलसफा है, इतना लिबरेटिंग फलसफा है कि यह मेरी जिंदगी का एक इंटेग्रल हिस्सा है। हम लोग 14 अगस्त को आजादी तो मनाते हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि इंडिविजुअल फ्रीडम क्या चीज है? अगर आप एकिस्टेंशलिस्ट के फलसफे को समझ गए ना, तो यू विल एंजॉय ट्रू फ्रीडम इन लाइफ। इस नवेल द स्ट्रेंजर में भी आपको एक्सिस्टेंशियलिज्म के कुछ एस्पेक्ट्स नजर आते हैं। एग्ज़िस्टेंशियलिस्ट के मुताबिक इंसान अपनी पहचान बनाता है अपनी चॉइससेस

से। यानी आपकी आइडेंटिटी डिपेंडेंट है आपके ऊपर। आपकी चॉइससेस के ऊपर। यहीं पर मैं आपको इंट्रोड्यूस करवाना चाहूंगा यॉर्न पॉल सा की एक्सिस्टेंशियलिज्म के फलसफे को लेकर सबसे पावरफुल लाइन। एग्जिस्टेंस प्रसीड्स एसेंस। यानी कि इंसान का वजूद पहले है और उसका एसेंस बाद में है। यानी कि पहले इंसान एक्सिस्ट करता है और उसके बाद जो भी लाइफ में आप डिसीजंस लेते हैं, दरअसल आपकी बर्थ उसके बाद होती है। है ना कमाल का आईडिया? अगर आप लोगों ने लाइफ में स्टेटमेंट से जान छुड़ानी है ना कि यार किस्मत में नहीं था, मेरी तकदीर में नहीं था, अल्लाह चाहे तो यह हो जाएगा,

तो फिर आप एक्सिस्टेंशलिज्म को जरूर एक्सप्लोर कीजिएगा। इस नवेल में भी एकिस्टेंशलिज्म की तकरीबन छह थीम्स को एक्सप्लोर किया गया है। जिसमें सबसे पहली है फ्रीडम। फ्रीडम का मतलब यह है कि आपके पास्ट, आपके माजी में जो कुछ भी हो गया वो हो गया। वो आपकी फ्यूचर लाइफ, आपके मुस्तकबिल पर इंपैक्ट नहीं करेगा। इस कहानी में मैक्सों का जो दिल आता है वो करता है। इवन अपनी मां की फ्यूनरल पे भी वो अपनी फ्री विल का भरपूर इस्तेमाल करता है। ही सजेस्टेड आई शुड गो टू द रिफैक्ट्री फॉर डिनर। बट आई वाजंट हंग्री। देन ही प्रपोज्ड ब्रिंगिंग मी अ मग ऑफ

कॉफी। एज आई एम वेरी पार्शियल टू कॉफी। आई सेड थैंक्स एंड अ फ्यू मिनट्स लेटर ही केम बैक विथ द ट्रे। आई ड्रैंक द कॉफी एंड देन आई वांटेड अ सिगरेट। बट आई वाज़ंट श्योर इफ आई शुड स्मोक अंडर द सरकमस्ट्ससेस इन मदर्स प्रेजेंस। आई थॉट इट ओवर। रियली? इट डिडंट सीम टू मैटर। सो आई ऑफर्ड द कीपर अ सिगरेट एंड वी बोथ स्मोक्ड। एक्सिस्टेंशियलिज्म की दो और थीम्स एक्सिस्टेंस और पैशन भी मर्स के कैरेक्टर में रिफ्लेक्ट होती हैं। जब वो कैद में होता है और किसी चीज की कंप्लेंट करने की बजाय उसे अपनी जिंदगी में एक्सेप्ट कर लेता है। मर्स को कोई फर्क नहीं पड़ता कि

आफ्टर लाइफ है इस मौत के बाद भी कोई जिंदगी है या नहीं। ही फोकसेस ऑन द प्रेजेंट एंड मेक्स द बेस्ट ऑफ इट। एकिस्टेंशियलिज्म की फोर्थ थीम है कंटिंजेंसी। यानी जिंदगी का अनप्रिडिक्टेबल होना या लाइफ में अनएक्सेक्टेड इवेंट्स का होना। ओवरऑल इस पूरे नवेल में मेक सॉन्ग के साथ अनएक्सेक्टेड इवेंट्स हो रहे हैं। मदर की डेथ, मैरी के साथ अफेयर, अपने नेबर के मसलों में इतना इन्वॉल्व हो जाना और अपने हाथों से किसी का मर्डर कर देना। इन सब इवेंट्स को तो चाहे वो फेवरेबल हो या परेशानक। मेक सो एक्सेप्ट करता है और अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाता है। पांचवी थीम है

इंडिविजुअलिटी। एक इंडिविजुअल एक सोसाइटी के अंदर कलेक्टिवली जिंदा तो रहता है लेकिन याद रखें उसकी अपनी एक पहचान अपनी एक शनाख्त होती है। मक्सों की इंडिविजुअलिटी पूरे नवेल में नजर आती है। स्पेशली इसके एंड में वो चाहता है कि उसकी डेथ के वक्त एक बहुत बड़ा क्राउड हो और वो उसे रोते हुए मिले मगर नफरत के साथ। वो लिखता है आई हैड ओनली विश दैट देयर बी अ लार्ज क्राउड स्पेक्टेटर्स द डे ऑफ़ माय एक्सजीक्यूशन। एंड दैट दे ग्रीट मी वि क्राइस ऑफ हेट। मक्सवा इस बात को एक्सेप्ट कर लेता है कि लोग उससे नफरत करें। इसी बात में बेहतरी है क्योंकि अगर उसने लोगों

से माफी मांग ली तो वह भी बाकियों जैसा ही हो जाएगा। एकिस्टेंशनिज्म की आखिरी थीम है रिफ्लेक्शन। इसका मतलब है अपनी लाइफ को, अपने बिहेवियर को एनालाइज करना और उसके बारे में सोचना और अपने आप को अवेयर करना। शायद कहानी के आगाज में मैक्सों को अपने आप को एनालाइज करने का मौका नहीं मिला। लेकिन जैसे-जैसे स्टोरी आगे बढ़ती है और वो जेल में कनफाइन होता है तो स्लोली वो अपनी लाइफ का एनालिसिस करता है। उसके ऊपर रिफ्लेक्ट करता है और अपने आप को अवेयर करने की कोशिश करता है। मक्सों की रिस्पांसिबिलिटी की बात करें तो उसकी एग्जीक्यूशन एक सिंबॉलिक मोमेंट है जहां

पर वो अपनी नथिंगनेस को फेस करता है। उसे यह रियलाइज होता है कि उसकी जिंदगी कंटिंजेंसी पर चल रही थी और उसने खुद अपने हाथों से अपनी एकिस्टेंस को अवॉइड कर दिया है। क्योंकि याद रखें दोस्तों एकिस्टेंशियल फ्रीडम के साथ आती है रिस्क और रिस्पांसिबिलिटी। लेकिन मेक्स इसके लिए तैयार ना था। अल्बर्ट कमू का मर्स एक इंटरेस्टिंग और अजीबोगरीब कैरेक्टर है। शुरू-शुर में शायद आपको उसकी बातें गलत लगे। लेकिन जैसे ही चीजों को आप उसके पर्सेक्टिव से देखना शुरू करेंगे तो आपको कहीं ना कहीं लॉजिक और मीनिंग नजर आना शुरू हो जाएगा। जैसे कि यह बात बिल्कुल

दुरुस्त है कि डेथ एक एब्सोल्यूट रियलिटी है जिसे हम जितनी जल्दी एक्सेप्ट कर लें उतना ही अच्छा है। दूसरी यह बात भी बिल्कुल ठीक है कि लाइफ अनप्रिडिक्टेबल है। इसमें अनएक्सेक्टेड इवेंट्स भरे हुए हैं। और जितना जल्दी हम अपने आप को इस सोच के लिए तैयार कर लें उतने ही बेहतर तरीके से हम इन अनएक्सेक्टेड इवेंट्स के साथ डील कर सकते हैं। आखिरकार मैक्सो ने इस बात को कबूल कर लिया कि यह कायनात खामोश है। और इस खामोशी के अंदर ही दुनिया की सबसे बड़ी रियलिटी है। शायद यही खामोशी वो दरवाजा है जो हमें अपने अंदर झांकने पर मजबूर करती

है। सवाल मेरा यह है कि जब मौत की दहलीज पर यह खामोशी हमें आ गिरेगी तो क्या मैक्सों की तरह हम लोग मुतम होंगे या फिर हमारे हालात उससे मुख्तलिफ होंगे। इस सवाल का जवाब आपने देना