What are Jinns – Concept of Jinnat in Religion, Research & Science

दोस्तों 1980 में पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन के सीनियर डायरेक्टर बशीरुद्दीन महमूद ने एक ऐसा रिसर्च पेपर लिखा जिसने सबको हिला के रख दिया। इस रिसर्च पेपर में उनका एक अजीबोगरीब दावा यह था कि चूंकि पाकिस्तान में एनर्जी का क्राइसिस है इलेक्ट्रिसिटी का शॉर्टफॉल है। लिहाजा इस शॉर्टफॉल से निपटने के लिए पाकिस्तान को जिन्नात आई रिपीट जिन्नात को पकड़ कर उनसे एनर्जी जनरेट करनी चाहिए। उनसे बिजली पैदा करनी चाहिए। उनका अम्यूजिंग किस्म का क्लेम यह था कि चूंकि जिन्नात आग से बनते हैं लिहाजा वो एनर्जी है और इस एनर्जी को हम इलेक्ट्रिसिटी में ट्रांसफॉर्म कर सकते

हैं। अगर इस रिसर्च पेपर के क्लेम ने आपको हैरान परेशान ना किया तो शायद यह बात आपको लाजमी कर दे। डॉक्टर सफदर जंग राजपूत जिनका ताल्लुक डिफेंस इंजीनियरिंग एंड साइंस टेक्नोलॉजी ऑर्गेनाइजेशन से है। उन्होंने एक रिसर्च पेपर लिखा। अपने इस रिसर्च पेपर में उन्होंने एक ऐसी साइंस लोगों को समझाने की कोशिश की व्हिच वाज़ आउटरेजियस एंड एक्स्ट्राऑर्डिनरी। उन्होंने जिन्नात की केमिकल कंपोजिशन के ऊपर रिसर्च की और बिल आखिर नतीजा यह निकाला कि जिन मिथेन गैस से बनते हैं। इसके पीछे उनकी लॉजिक ये थी कि किसी भी जिन से धुआं नहीं निकलता। हालांकि वो आग

से बनते हैं और चूंकि मिथेन भी स्मोकलेस है। लिहाज़ा जिन मिथेन से ही बनते हैं। दोस्तों इन रिसर्च पेपर्स की क्वालिटी पे तो मैं क्या ही कमेंट करूं। लेकिन इन दोनों में एक बात कॉमन है। और वो है जिन्नात। लेकिन दोस्तों आखिर इस लफ्ज़ का मतलब क्या है? जिन कौन होते हैं? क्या जिन्नात वाकई में एक्सिस्ट करते हैं? और अगर एक्सिस्ट करते हैं तो इनका हमारी जिंदगी में क्या रोल है? क्या जिनों में इतनी पावर है कि वो हमें कंट्रोल कर सकते हैं? हमें बीमार कर सकते हैं। हमें साइकोलॉजिकली चैलेंज कर सकते हैं? इस्लाम के अंदर जिन्नात का क्या कांसेप्ट है?

क्या बाकी मज़ाहिब में भी इस तरह के कांसेप्ट्स पाए जाते हैं? बहुत से लोग हमारे मुआशरे में जिन्नात के हवाले से बात करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि जितना वो इन जिनों के बारे में बात करेंगे उतने ही यह जिन्नात उन्हें तंग करेंगे। लेकिन दोस्तों आज की हमारी बहुत ही इंपॉर्टेंट वीडियो में मैं इन सारे सवालात के जवाब दूंगा। आज हम मजहब साइंस और रिसर्च का सहारा लेंगे इस कांसेप्ट को एक्सप्लेन करने के लिए। जिसके बाद वंस एंड फॉर ऑल जिन्नात की हकीकत आप पर वाज़ हो जाएगी। [संगीत] मुस्लिम सोसाइटी स्पेशली साउथ एशिया में

रहने वाले मुसलमानों का इस बात पर भरपूर ईमान है कि इंसानों की तरह इस दुनिया में एक और मखलूक भी जिंदा है। लेकिन यह मखलूक हमें आंखों से नजर नहीं आती। हमारे यहां अक्सर गांव देहात में जब किसी शख्स को कोई साइकोलॉजिकल ट्रबल होती है तो लोगों को यह लगता है कि इस शख्स को जिन चिमड़ गए हैं। होती शायद उस शख्स को हेलुसिनेशंस हो। लेकिन हम कहते हैं कि यह सब जिन का काम है। लेकिन बुनियादी सवाल फिर वही है कि जिन्नात की आखिर असल हकीकत क्या है? रिलीजियस स्कॉलर्स की बात की जाए तो उनके मुताबिक जिन का मतलब है कोई छुपी हुई चीज। समथिंग हिडन और कवर्ड। यानी कोई ऐसी चीज

जिसे हम आंख से देख नहीं सकते। उनके मुताबिक जिन एक ऐसी मखलूक है व्हिच लिव्स इन अ पैरेलल वर्ल्ड और जिसको देखना मुमकिन ही नहीं। आप अपने आसपास, अपने फैमिली मेंबर्स, अपने फ्रेंड से बात करेंगे तो किसी ना किसी के पास जिनों से रिलेटेड इंसिडेंट या वाक्या जरूर होगा। अक्सर औकात लोगों ने एक सफेद रंग की बूढ़ी औरत रात को देखी होती है और वो गुमान करते हैं कि वो औरत दरअसल जिन्न है। मगर इस तरह की जो सैकड़ों कहानियां लोगों के पास है, इसमें सच्चाई कितनी है? लेट्स ट्राई टू डिकोड इट। देखिए दोस्तों, जिन्नात से रिलेटेड जो लोगों के अकीदे हैं ना वह सैकड़ों हजारों

साल पुराने हैं। इनमें से कुछ अकीदों का ताल्लुक इंसान के डर और खौफ से है। कुछ का ताल्लुक इंसान की थॉट्स और सीक्रेट डिजायर से है। और इनमें से बहुत सी कहानियां झूठे, पीरों और जादूगरों ने घड़ी हुई हैं। ताकि लोगों को इसके जरिए डरा सकें और अपना काम करवा सकें। कुछ लोग समझते हैं कि जिन्नात मुख्तलिफ शक्लें इख्तियार कर सकते हैं। जैसे कभी वो सांप बन जाएंगे, कभी काली बिल्ली या कभी किसी बकरी की शक्ल इख्तियार कर लेंगे। कुछ लोग तो इस बात का भी गुमान करते हैं कि जिन्नात इंसानों की शक्ल भी इख्तियार कर सकते हैं और उनकी पहचान होती है उनके पैरों से। इस तरह

जिनों से रिलेटेड मैं आपको बेतहाशा कहानियां मिथ सुना सकता हूं। आपने शायद लोगों को यह कहते हुए भी सुना होगा कि जिन भेड़ियों से डरते हैं। लिहाजा उनकी शक्ल इख्तियार नहीं करते। लोग यह भी समझते हैं कि जिन अगर इंसान की शक्ल में आए तो भेड़िया उनको मार कर खा भी सकता है। इसीलिए कुछ दूर दराज के इलाकों के लोग भेड़िए के बाल, दांत और हड्डियों को तावीज़ के तौर पर इस्तेमाल करते हैं ताकि जिनों से बचा जा सके। इसी तरह कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जिन्नात की उम्र बहुत लंबी होती है। वो हजारों साल तक जिंदा रहते हैं और लोगों को तंग करते हैं। लोग

इस बात पर भी ईमान रखते हैं कि कुछ जिन मुसलमान होते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं और कुछ जिन काफिर होते हैं और अल्लाह को नहीं मानते। इसी तरह जिनों के हवाले से कई अकीदे इस्लामिक टीचिंग से भी आते हैं जो अक्सर औकात गलत इंटरप्रिटेशन की वजह से लोगों को कंफ्यूज कर देते हैं। देखिए दोस्तों अरेबिक यानी अरबी ना बहुत ही गहरी जुबान है जहां एक लफ्ज के कई लेयर्ड मीनिंग्स होते हैं। इन तमाम मीनिंग्स को समझने के लिए हमें अरेबिक डिक्शनरी को उठाना पड़ता है। हर चीज को उसके कॉन्टेक्स्ट में समझना होता है। ना सिर्फ लुगत बल्कि कुरान शरीफ में आपने जो भी

वाक्यात पढ़ने हैं ना उसको कभी भी आपने आउट ऑफ कॉन्टेक्स्ट नहीं समझना। अब अगर इस लफ्ज जिन का हम लोग मुतालिया करें तो अरबी लुगत के मुताबिक इसका मतलब हर वो चीज है जो निगाहों से ओझल रहती है। यानी आपकी नजरों से दूर। अब मैं आपको जिन की वो डेफिनेशन बता रहा हूं जो शायद आज से पहले आपको किसी ने ना बताई हो। देखिए दोस्तों उस जमाने का जो अरब कल्चर था ना उसमें दूर दराज के इलाकों में लोगों की आबादीियां मौजूद होती थी। यह लोग शहर से बिल्कुल कटके रहते थे। लोगों से दूर और ओझल। अरब मुआशरे में इन आबादियों में रहने वाले लोगों को जिन कहा जाता था क्योंकि वह आम

इंसानों की नजर से पोशीदा और सोशल रिलेशन से दूर थे। कुरान हकीम की बात करें तो उसमें तकरीबन 32 दफा इस लफ्ज जिन का जिक्र है और अक्सर औकात आपने देखा होगा कि जब भी कुरान जिन की बात करता है ना तो वो कहता है जिन्नो और इंस यानी के जिन और इंसान। कुरान में जहां भी जिन और नास का वर्ड आया है, उसका मतलब यह दो किस्म की आबादीियां हैं। जिन्न से मतलब बद्दू और खानाबदोश थे और नास वो थे जो शहरों में आबाद थे। अब कुछ लोग तो यह कहते हैं कि कुरान में यह बात वाज़ लिखी गई है कि जिन्नात को आग से बनाया गया है। यह बात भी बिल्कुल दुरुस्त

है। यह कुरान का है चैप्टर 15 वर्स 27 और हमने इससे पहले जिन को बगैर धुएं वाली आग से पैदा किया। देखिए दोस्तों, यह जो बात है ना, इसकी अलग-अलग इंटरप्रिटेशंस हो सकती हैं। और याद रखें कुरान की जो जुबान है ना वह एलगोरिकल है, मेटाफोरिकल है, तमसीली है। कुरान में जो वाक्यात होते हैं ना, काफी हद तक सिंबॉलिक होते हैं। आपने अपनी अकल का इस्तेमाल करके उन वाक्यात का जो असल मीनिंग है ना उसको दरियाफ्त करना होता है। कुरान हकीम की ये जो आयत है ना, इसकी तफसीर या इंटरप्रिटेशन मेरे ख्याल में थोड़ी गलत की गई है। आप सब लोगों ने साइंस की बिग बैंग थ्योरी सुनी हुई है

जिसमें यह बताया गया है कि हमारी जो जमीन है वो पहले एक फायर बॉल थी। इस आयत में जो बात की जा रही है वह ऐसी मखलूक की है जो उस जमाने के हाई टेंपरेचर में एक्सिस्ट करती थी और जो इंसान से पहले मौजूद थी इंसान की क्रिएशन के बाद ऐसी कोई मखलूक मौजूद नहीं है। मैं यह बात जानता हूं कि इस तरह की बात को एक्सेप्ट करना डाइजेस्ट करना आप लोगों के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि बचपन से जिन और जिन्नात को लेकर आपके ज़हनों में एक मखसूस किस्म की पिक्चर को बिठाया गया है। लेकिन इस कांसेप्ट को क्लियर करने के लिए मैं आपको कुरान हकीम से एक और रेफरेंस देता हूं। यह है चैप्टर

नंबर सिक्स वर्स 130. ए जिनों और इंसानों की जमात क्या तुम्हारे पास तुम में से ही पैगंबर नहीं आते रहे? जो मेरी आयतें तुमको पढ़-पढ़ कर सुनाते हैं। अगर आप इस आयत की ट्रांसलेशन को गौर से पढ़े तो इसमें एक बहुत ही इंपॉर्टेंट फ्रेज है तुम में से पैगंबर आए हैं। अब यह बात बताएं कि क्या कोई पैगंबर जिनों की जो हमारी डेफिनेशन है कि वो आंखों से ओझल होते हैं वो नजर नहीं आते। क्या इस डेफिनेशन पे वो पूरा उतरते हैं? क्या कोई ऐसे पैगंबर थे जो दिखाई नहीं देते थे? नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। यहां पर अक्सर लोग हजरत सुलेमान अली सलाम

का भी जिक्र करते हैं कि उनके कब्जे में जिन्नात थे और वो उनसे महल तामीर करवाते थे और वो उनको बांध कर रखते थे ताकि वह कहीं वापस ना चले जाएं। यह जो हजरत सुलेमान के जिन्नात या जिनों की बात है ना इनका कोई भी ताल्लुक सुपर नेचुरल फोर्सेस से नहीं है। यह वही जिन है जिनके बारे में मैंने आपको बताया। द पीपल लिविंग इन द रिमोट एरियाज। यह इंसान ही थे। यह जिन दरअसल इंसान थे जो दूर पहाड़ी इलाकों से आते थे और जिनके पास महल तामीर करने की स्किल्स मौजूद थी। यह कोई पैरासाइकोलॉजिकल या सुपर नेचुरल फोर्सेस नहीं थे। यह इंसान ही थे। शायद मेरी यह सब बातें आप लोगों के

लिए हजम करना थोड़ी मुश्किल हो। लिहाजा अब मैं आपको जिन्नात की हिस्ट्री की तरफ लेकर जाऊंगा। देखिए माय डियर बुक बडीज हमारे जहनों में जो जिन्नात का कांसेप्ट है ना वह दरअसल एक सोशल कंस्ट्रक्ट है जो ज्यादातर मूवीज और टीवी शोज़ से हमारे जहनों में बिठाया गया है। जब भी हम जिनों के बारे में सोचते हैं हमारे सामने खौफनाक चेहरा सामने आ जाता है और हम इस बात पर यकीन रखने लगते हैं कि जिन्नात ऐसे ही होते हैं। लेकिन दोस्तों ये सोशल कंस्ट्रक्ट आज का नहीं यह आज से हजारों साल पुराना है और इसका आगाज होता है मेसोपोटेमिया से। मेसोपोटेमिया दुनिया की

सबसे पुरानी और फेमस सिविलाइजेशन का घर था। यह जगह टाइगरस और यूफ्रेटीज दरियाओं के दरमियान थी जिसे फर्टाइल क्रिस्टन भी कहा गया। यहां 14,000 बीसी तक लोग आबाद हो गए थे। लेकिन शहर तकरीबन 10,000 साल बाद सुमेरियन हुक्मरानों के दौर में सामने आए। इन्हीं सिविलाइजेशन से जिन का पहली दफा कांसेप्ट सामने आया। मेसोपोटेमियन ट्रेडिशन को तीन स्टेजेस में डिवाइड किया जाता है और इन तीन स्टेजेस में जिन का कांसेप्ट भी उनके रिलीजियस प्रैक्टिससेस के साथ इवॉल्व हो जाता है। पहली स्टेज फोर्थ मिलेनियम बीसी के आसपास एकिस्टेंस में आई। इस दौर में जो नेचुरल डटीज जो नॉन

ह्यूमन फॉर्म्स में थी वो एक्सिस्टेंस में आई। इस दौर के लोग अलग-अलग नेचुरल डर्टीज की पूजा करते थे। और यहीं से जिनों के कांसेप्ट का आगाज हुआ। इन लोगों के मुताबिक जिन्नात हवास, स्मू और आग से बने हैं। सबका अलग-अलग कांसेप्ट था क्योंकि उस वक्त के लोग एक से ज्यादा खुदाओं की इबादत करते थे। इसीलिए उन्होंने जिन्नात को लेकर भी अलग-अलग तसवुर कायम कर लिए। अक्सर लोग इन स्पिरिट्स को फॉर्मलेस भी समझते थे। यानी कि इनका कोई भी फिक्स शेप नहीं है। ट्रेड और जंगों की वजह से ये सारे कांसेप्ट्स अरेबियन पेनजुला तक पहुंचे। जहां जिन्नात का कांसेप्ट मजीद इवॉल्व

होना शुरू हुआ। लोगों को जो भी बात उनकी अक्ल से परे लगती या समझ ना आती उन्हें लगता कि इसके पीछे कोई ना कोई जिन मौजूद है और क्योंकि इस तरह का फिनोमिना लोगों की अकल से परे था लिहाजा उन्होंने इन जिन्नात से डरना शुरू कर दिया। सेकंड फेज तकरीबन थर्ड मिलेनियम बीसी के अराउंड इवॉल्व हुआ जिसमें खुदाओं को इंसानों के तौर पर विजुअलाइज किया जाने लगा। इस दौर में हर गॉड के लिए एक अलग ऑफिस था और कुछ सेट ऑफ ड्यूटीज थी जो उस खुदा को परफॉर्म करनी होती थी। इसी दौर में जिन्नात को एनिमलिस्टिक फीचर्स दिए जाने लगे क्योंकि उनके सामने जो खुदा थे वो तो इंसान थे।

लिहाजा जिन्नात को अलेदा करने के लिए उन्होंने जानवरों के कैरेक्टरिस्टिक्स का सहारा लिया और फाइनल फेज ऑफ एववोल्यूशन का आगाज आहिस्ता-आहिस्ता सेकंड और फर्स्ट मिलेनियम बीसी में हुआ। इस दौर में लोगों ने पर्सनल रिलजन पर फोकस करना शुरू किया। लोगों के अंदर सीन और फॉरगिवनेस के कांसेप्ट्स इंट्रोड्यूस होने लगे। इस दौर में जिन्नात के रोल्स एंड रिस्पांसिबिलिटीज भी चेंज हो जाते हैं। कोई इनको डेमेनिक स्पिरिट के तौर पर डिफाइन करता है। या फिर कोई यह समझना शुरू कर देता है कि इंसानों में बीमारियां पैदा करने की ड्यूटी जिन्नात की है। लोग यह भी
समझना शुरू कर देते हैं कि जिस साल फेमिन या कैद साली होती है तो इसके पीछे भी जिनों का काम है। सुमेरियंस इन्हें कदम कहते थे। यानी क्रिएचर्स ऑफ डार्कनेस। तारीख मखलूक। यह वो मखलूक है जो अपना घर अंडरवर्ड में बनाते हैं। ये लोग इन्हें अंधेरों की रूहें मानते थे। दूसरी तरफ जिन्नात का एक और इंटरेस्टिंग रोल भी था। उस जमाने के जो लोग थे ना वह समझा करते थे कि यह जो जिन है ना यह इंसान और खुदा के दरमियान एक इंटरमीडियरी का रोल प्ले करते हैं। जिसे हम लोग उर्दू में वसीला कहते हैं। यानी लोगों को अगर खुदा से कुछ मांगना है ना तो इन जिन्नात के जरिए मांग

सकते हैं। ये लोग समझते थे कि जिनों के पास ना पर होते हैं। लिहाजा वो उड़ सकते हैं और उड़कर खुदा तक उनकी बात डायरेक्टली पहुंचा सकते हैं। इसके बाद आपको जिनों की बहुत सी एग्जांपल्स, बहुत से वाक्यात क्रिश्चियनिटी में भी मिलेंगे। स्पेशली कैथोलसिज्म में जहां सेंट्स इंसानों और गॉड के दरमियान इंटरमीडियरीज का रोल प्ले करते हैं। इसी तरह क्रिश्चियनिटी में भी यह समझा जाने लगा कि ये जो जिन है ना यह खुदा और इंसान के दरमियान एक ब्रिज का रोल प्ले करते हैं। लिहाजा इन जिनों को क्रिश्चियन मजहब में भी बहुत ज्यादाेंस दी जाने लगी। अगर अरेबिया को इस्लाम से पहले

एनालाइज किया जाए तो वहां डेजर्ट्स में कई आबादियां मौजूद थी जहां से कई काफिले गुजरते थे। इन काफिलों के जरिए अरेबिया का ताल्लुक मेसोपोटेमिया से बढ़ना शुरू हो गया। और यह जो जिन्नात से रिलेटेड सारी कहानियां, सारे मिथ्स, सारे इंसिडेंट्स हैं ना, यह आहिस्ता-आहिस्ता लोगों के बिलीफ सिस्टम का हिस्सा बनने लगे। जिन्नात की कहानियां भी इन तक इसी तरह पहुंची जिन्हें इन लोगों ने अपने कल्चर का हिस्सा बना दिया। इस्लाम के आने के बाद जिन का कांसेप्ट भी रिीडिफाइन हो गया। इस्लामिक कॉन्टेक्स्ट में अक्सर जिन का वर्ड यूज़ होता है। जिसका वही मीनिंग है जो मैंने
आपको पहले बताया। समथिंग हिडन और कवर्ड। कुरान शरीफ में कई जगह जिनों के हवाले से बात की गई है। सूर जिन और सूर एहकाफ में जिक्र है जिनों के ग्रुप का जिन्होंने हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तिलावत सुनी और वो बहुत इंस्पायर हुए और उनमें से कुछ ईमान भी ले आए और ऐ हबीब याद करो जब हमने तुम्हारी तरफ जिनों की एक जमात फेरी जो कान लगाकर कुरान सुनती थी। फिर जब वो नबी की बारगाह में हाजिर हुए तो कहने लगे खामोश रहो और सुनो। फिर जब तिलावत खत्म हो गई तो वह अपनी कौम की तरफ डराते हुए पलट गए। और फिर इसी से अगली आयत में कुछ यह मेंशंड है। कहने लगे ए हमारी

कौम हमने एक किताब सुनी है जो मूसा के बाद नाजिल की गई। वो पहली किताबों की तस्दीक फरमाती है। हक और सीधे रास्ते की तरफ रहनुमाई करती है। और यही सूरह जिन्न की जो पहली आयत है उसमें कोट की गई है। ऐ हबीब तुम फरमाओ मेरी तरफ वही की गई है कि जिन्नात के गिरोह ने मेरी तिलावत को गौर से सुना। तो उन्होंने कहा बेशक हमने एक अजीब कुरान सुना। दोस्तों इन आयात में जिन जिन्नात के ग्रुप का जिक्र किया गया है ना यह दरअसल वही बद्दू आबादी और कबीले से आए हुए लोग थे। जिन्होंने पहली बार कुरान सुना और वापस जाकर बताया कि उन्होंने ऐसा कलाम सुना है जो सच्ची बातें करता है जो

मूसा के कलाम से मिलताजुलता है। यानी वो लोग हजरत मूसा के कलाम से भी वाकिफ थे। लिहाजा इस बात का भी इमकान है कि शायद वो लोग यहूदी हो। लेकिन यह वो वाले जिन नहीं थे जिन्हें हम अपनी जुबान में जिन कहते हैं। यह दरअसल इंसान ही थे। दूसरी यह बात कि कुरान में बार-बार यह बात कही गई है कि हमने हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इंसानों की तरफ रसूल बनाकर भेजा है। कहीं भी यह बात नहीं की गई कि आपको इंसानों और जिनों की तरफ रसूल बनाकर भेजा गया है। इसका रेफरेंस भी आपको कुरान में मिलेगा। कह दो ऐ नबी मैं तमाम इंसानों के लिए रसूल बनाकर भेजा गया हूं। यहां भी

अन्नास के लफ्ज का जिक्र है। इसी तरह कुरान का चैप्टर नंबर 34 और वर्स नंबर 28 की ट्रांसलेशन कुछ यूं है। और हमने आपको तमाम लोगों के लिए खुशखबरी देने वाला और डर सुनाने वाला बनाकर भेजा है। लेकिन बहुत लोग नहीं जानते। अगर आप इसी कांसेप्ट को सामने रखते हुए पूरी सूरह जिन्न पढ़ेंगे ना तो आपको अंदाजा होगा कि कितनी जबरदस्त और इंटेलेक्चुअल डिस्कशन हो रही है। जिन जो आपस में बात कर रहे हैं वो कितनी जबरदस्त और लॉजिकल है। लेकिन जब आप तफासीर को पढ़ते हैं तो उसमें अक्सर लिखा जाता है कि जिन एक ऐसी मखलूक है जो गंदगी में एक्सिस्ट करते हैं। वो हड्डियां खाते हैं

उन्हें पकड़ने के लिए। के पीरों और आमिलों को 40-40 दिन के चिल्ले काटने पड़ते हैं। देखिए दोस्तों यहां पर आपने एक बात याद रखनी है कि उस जमाने के अरब के सेहराओं में जो बद्दू या खाना बदोश थे ना वो तोहम परस्ती पर बहुत यकीन रखते थे। इन लोगों का सुनी सुनाई बातों पर बहुत ईमान होता था। उस जमाने में इन कबीलों के जो लीडरान थे वो उनको अजीबोगरीब और हवाई कहानियां सुनाया करते थे। लेकिन जब इस्लाम आया और कुरान की टीचिंग्स अरब में फैलने लगी तो उनको अंदाजा हुआ कि यह जो दीन है यह काफी लॉजिकल और रैशन है। इसीलिए बड़ी तादाद में लोगों ने इस्लाम को एज अ दीन एक्सेप्ट

करना शुरू किया और इसमें सबसे बड़ा रोल प्ले किया हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अजीम शख्सियत ने। यह तो थी दोस्तों इस्लाम की बात। अगर साइंस की बात की जाए तो आपको पता है कि साइंस बिलीव्स इन ऑब्जरवेशन एंड मेजरमेंट। जो चीज ना मेजर हो सके, ना वे हो सके, ना टेलिस्कोप या माइक्रोस्कोप से नजर आ सके साइंस उसे एविडेंस बेस्ड कैटेगरी में नहीं रखती। इसीलिए इल्म गैब, जिन, जिन्नात का जो मॉडर्न कांसेप्ट है जो हमारे ज़हनों में बसा हुआ है ना साइंस उसको बिल्कुल एक्सेप्ट नहीं करती। साइंस के नजदीक ये सारे सब्जेक्टिव एक्सपीरियंसेस हैं जो
हमारे न्यूरल एक्टिविटी का नतीजा है। अगर साइकोलॉजी को एज अ डिसिप्लिन देखें तो इसकी भी जर्नी बड़ी ही इंटरेस्टिंग है। आज हम जानते हैं कि स्किजोफ्रेनिया क्या है? स्लीप पैरालिसिस क्या होता है? एपिलेप्सी में इंसान को किस तरह से दौरा पड़ता है? लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। यूरोप की डार्क एजेस यानी 5 से 15वीं सदी के दरमियान अगर कोई शख्स हिस्टीरिया का पेशेंट होता या किसी को फिट्स पड़ते या किसी शख्स को अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देती या किसी शख्स को विजुअल हेलुसिनेशंस होती तो लोग समझते थे कि इसके ऊपर डीमंस या इविल का अटैक हो गया है। यह शख्स इविल

स्पिरिट्स के कब्जे में है। उस वक्त की जो अनपढ़ सोसाइटी थी ना वो इस तरह के फिनोमिना को समझ ही नहीं पाती थी। लिहाजा दे बिलीव्ड इन सुपर नेचुरल फोर्सेस। खासतौर पर औरतों को लेकर ना इनका एटीट्यूड बहुत ही रूथलेस था। किसी औरत को अगर हिस्टीरिया होता तो उसके बारे में कहा जाता कि यह विचक्राफ्ट करती है। यह चुड़ैल है और ऐसे ही इल्जाम लगाकर अक्सर औकात औरतों को मार दिया जाता था। कैथोलिक चर्च में एक्सोरसिज्म के रिचुअल्स परफॉर्म किए जाते। एग्जॉरसिज्म जिन निकालने के प्रोसेस को कहा जाता है। लेकिन थैंकफुली वेस्ट ने बिलिखिर यह रियलाइज कर लिया कि यह सब

इलॉजिकल और बेकार बातें हैं। रेनसों्स की मूवमेंट ने लोगों को शोर दिया। एनलाइटनमेंट की मूवमेंट साइंटिफिक रेवोल्यूशन लेकर आई और आहिस्ता-आहिस्ता यूरोप इन जिन जिन्नात के चक्करों से निकल कर कामयाबी की राहों पर गामजन हो गया। फाइनली जब साइकोलॉजी डेवप होनी शुरू हुई ना तो इवेंचुअली ये जो जिन जिन्नात के कांसेप्ट्स थे दे स्टार्टेड डाइंग। पहले जमाने में किसी शख्स को जब कुछ आवाजें आती तो लोग समझते थे कि इसको जिन्नात पुकार रहे हैं। लेकिन साइकोलॉजी ने साबित कर दिया कि यह कोई जिन जिन्नात नहीं बल्कि ये ऑडिटरी हेलुसिनेशंस हैं। ऑडिटरी

हेलुसिनेशंस में दोस्तों होता यह है कि इंसान को ना आवाजें आती हैं जो आवाजें दरअसल होती नहीं है। इन आवाजों का जिन्नात से कोई ताल्लुक नहीं बल्कि इट इज अ रिजल्ट ऑफ केमिकल इमंबैलेंस इन द बॉडी। आपने देखा होगा कि जिन जिन्नात की कहानियां सुनाते हुए लोग कहते हैं कि यार मैंने किसी जिन को देखा है जबकि दरअसल वो विजुअल हेलुसिनेशंस होती हैं। विजुअल हेलुसिनेशंस में भी इंसान को कुछ ऐसी चीजें नजर आना शुरू हो जाती हैं जो वाकई में मौजूद नहीं होती। यह भी एक साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो यूजली स्किफ्रेनिया के पेशेंट्स में नजर आता है। मैंने आज से बहुत साल पहले

स्किफ्रेनिया के ऊपर वीडियो बनाई थी। वो वीडियो आप जरूर देखिएगा। इसी तरह एपिलेप्सी या मिर्गी की बात की जाए तो वह भी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें इंसान को फिट्स पड़ना शुरू हो जाते हैं। पहले जमाने के लोग समझते थे कि यार इसको जिन चिमड़ गए हैं। जबकि दरअसल यह एक मेडिकल कंडीशन है जिसका इलाज मौजूद है। इंडिया और पाकिस्तान में आज भी बहुत से लोग जिन्नों और जिन्नात की कहानियों पर यकीन रखते हैं। आज भी लोग जिनों के जरिए अपने महबूब को हासिल करना चाहते हैं। आज भी लोग मौकलों के जरिए कामयाब होना चाहते हैं। लेकिन दोस्तों याद रखें यह सारे

कांसेप्ट्स इंसान की कमकली का नतीजा है। अगर जिंदगी में आप वाकई कामयाब होना चाहते हैं ना तो आपको किसी भी जिन की जरूरत नहीं है। आप मेहनत करें, ईमानदारी से काम करें और लाइफ में सही डिसीजंस लें तो आप जरूर कामयाब हो जाएंगे। आपको रात चलते हुए रात को किसी जिन से भी डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं। क्योंकि सफेद कपड़ों में मलबूस वो जो औरत है वो रियलिटी में नहीं बल्कि सिर्फ आपकी सोच में मौजूद है। लिहाजा उससे डरने का कोई फायदा नहीं। लेकिन होल्ड ऑन क्या पता आपके सामने बैठा हुआ यह बुक बड़ी जिसने आपसे यह सारी बातें कही है। वो भी
एक चिन्ह हो।


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *