आज की वीडियो में बात करेंगे दुनिया की तारीख में लिखी जाने वाली 10 बेहतरीन किताबों के बारे में। डोंट मिस दिस वन। देखिए बुकबडी इस दुनिया में एज एन एस्टीमेट तकरीबन 2.1 मिलियन यानी कि तकरीबन 21 लाख किताबें हर साल पब्लिश होती हैं। सोचे 21 लाख योहानिस गुटिनबर्ग ने जब 15वीं सदी में पहली प्रिंटिंग प्रेस बनाई थी, उसकी वजह से दुनिया में एक रेवोल्यूशन आया था। यह इंकलाब था नॉलेज का। क्योंकि प्रिंटिंग प्रेस से पहले किताबों को हाथों से लिखा जाता था और उनकी लिमिटेड डिस्ट्रीब्यूशन होती थी। लेकिन प्रिंटिंग प्रेस ने हमेशा के लिए यह सब बदल के रख
दिया। अब किताबों में छुपा इल्म, नॉलेज और विज़डम आम आदमी तक पहुंचने लगा और लोगों ने किताबों के जरिए अपने इंटेलेक्ट को बढ़ाना शुरू किया। ऐसे में दोस्तों पिछले 5 600 सालों में लाखों करोड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं। लेकिन इनमें से कुछ ही ऐसी बुक्स हैं व्हिच हैव स्टुड द टेस्ट ऑफ टाइम। कुछ ही ऐसी किताबें होती हैं जो पूरी दुनिया पर छा जाती हैं। ना सिर्फ एक दो या 10 सालों के लिए बल्कि सैकड़ों सालों के लिए। आज की हमारी गपशप में मैं ऐसी ही 10 किताबों को डिस्कवर करूंगा। याद रखिएगा यह मेरा पर्सनल पॉइंट ऑफ व्यू है। लेकिन यह बात तय है कि इनमें से हर एक
किताब दुनिया में बेस्ट सेलर बनी है। सबसे ज्यादा इन्फ्लुएंशियल बनी है। सबसे ज्यादा इंपैक्ट किया है लोगों की जिंदगियों पर। यह दोस्तों वो बुक्स हैं जो आपकी पर्सनल लाइब्रेरी में जरूर होनी चाहिए। इनको आपने लाइफ में एक दफा जरूर पढ़ना है। क्योंकि कहीं ना कहीं दे हैव द पावर टू ट्रांसफॉर्म योर थिंकिंग एंड हेंस योर लाइफ। तो जनाब हमारी जो पहली किताब है वह आज से तकरीबन 2400 साल पहले लिखी गई थी और इसको लिखा था एक ऐसे फलसफी ने हु इस कंसीडर्ड वन ऑफ द ग्रेटेस्ट फिलॉसोफर्स ऑफ ऑल टाइम मैं बात कर रहा हूं प्लेटो यानी अफलातून की। दोस्तों मैं प्लेटो की जिस
किताब का जिक्र कर रहा हूं उसका नाम है द रिपब्लिक। यह बुक तकरीबन 375 बीसी में लिखी गई थी। वेस्टर्न फिलॉसफी में शायद इससे ज्यादा इन्फ्लुएंशियल कोई किताब नहीं। देखिए दोस्तों प्लेटो यानी अफलातून जो था ना वो सोक्रेटीस का शागिर्द था और उसने यह किताब सोक्रेटिक डायलॉग्स के शक्ल में लिखी है। लेकिन ये सोक्रेटिक डायलॉग्स क्या होते हैं? दोस्तों सोक्रेटीस वो जानलेवा फलसफी था जो लोगों को सवालों के जरिए उकसाया करता था। उन्हें कहता था कि तुम सवाल क्यों नहीं करते कि तुम क्यों पैदा हुए हो? वो सवालों के जरिए लोगों के बिलीफ सिस्टम को टेस्ट किया करता था। एक
मैला कुचैला मोटा सा फलसफी जो एथंस की सड़कों पर लोगों को रोक कर पूछा करता था कि क्या तुमने सोचा है कि तुम्हारी जिंदगी का मकसद क्या है? तुम जिन खुदाओं पर ईमान लाए हो वो क्यों लाए हो? तुम जिस चीज को जस्टिस समझते हो क्या वो इंसाफ है भी या नहीं? अक्सर ऐसे सवालों के जरिए वो लोगों को उन्हीं के बिलीफ सिस्टम में उलझा दिया करता था। जिसका इंपैक्ट ये होता था कि लोगों को अपने ही आर्गुमेंट के अंदर लूप होल्स खामियां नजर आने लगती थी। सॉक्रेटीस के ऊपर बाय द वे मैंने एक डिटेल वीडियो बनाई हुई है। आप मेरे YouTube आरकाइज में जाके उसे देख सकते हैं। एनीवेज लेट्स कम
बैक टू द रिपब्लिक। द रिपब्लिक भी ना दोस्तों एक डायलॉग की तरह लिखी गई है। और जैसे कि प्लेटो के ज्यादातर डायलॉग्स में सेंट्रल कैरेक्टर सोक्रेटीज ही होता है। इसी तरह इस बुक में भी मेन कैरेक्टर सोक्रेटीस ही है। याद रखें कि सोक्रेटीज ने कभी कोई किताब नहीं लिखी। आज दुनिया को सोक्रेटीज जानती है तो उसके शागिर्द प्लेटो की वजह से। द रिपब्लिक में भी सॉक्रेटीज अपने क्वेश्चंस के जरिए स्पेशली जस्टिस पे एक स्ट्रांग आर्गुमेंट डेवलप करता है। जस्टिस और यूडीमोनिया के कांसेप्ट के ऊपर बात करता है। यूमोनिया का मतलब होता है दोस्तों जिंदगी में एक ऐसी
स्टेज जिसमें आप बहुत खुश हो। आप बहुत ज्यादा फुलफिल्ड हो। इस बुक द रिपब्लिक में प्लेटो ने योमोनिया को लेकर बहुत ही सिंपल लेकिन बहुत ही गहरी बात कही है। उसने कहा कि आप जिंदगी में तब तक खुश नहीं हो सकते जब तक मुआशरे में जस्टिस ना हो, इंसाफ ना हो। इस किताब रिपब्लिक में जो डायलॉग्स है ना वो दो बेसिक क्वेश्चंस के इर्द-गिर्द घूमते हैं। पहला सवाल यह है कि व्हाट इज जस्टिस? इंसाफ क्या है? सॉक्रेटीज यानी सुकरात इस सवाल को दो एंगल से देखने की कोशिश करता है। एक पॉलिटिकल कम्युनिटी के हवाले से और दूसरा नॉर्मल इंसानों के हवाले से। और यह जो एनालिसिस
है ना यह एक्चुअली जो दूसरा बेसिक सवाल है उसका जवाब ढूंढने की एक कोशिश है। दूसरा सवाल यह है कि इज द जस्ट पर्सन हैप्पीियर देन द अनजस्ट पर्सन? यानी कि क्या इंसाफ पसंद इंसान क्या एक नाइंसाफ इंसान से ज्यादा खुश है? इन दोनों सवालों का जवाब तलाश करते हुए सोक्रेटीज और उसके साथी एक आइडियल सिटी की इमेजिनेशन को कंस्ट्रक्ट करना शुरू करते हैं। इस शहर को वह नाम देते हैं कलिपिलस का। इस शहर कलिप्लिस के जरिए ही वो जस्टिस के कांसेप्ट को समझते हैं। इस सफर में सोक्रेटीस बहुत से टॉपिक्स पर बात करता है। जैसे कि जस्टिस की अलग-अलग थ्योरीज, कमपीटिंग व्यूज ऑफ
ह्यूमन हैप्पीनेस, एजुकेशन, नेचर,ेंस ऑफ फिलॉसफी, नॉलेज, स्ट्रक्चर ऑफ रियलिटी, वर्च्यूस, वइससेस, गुड, बैड एंड द ब्रेथ टेकिंग थ्योरी ऑफ फॉर्म्स। थ्योरी ऑफ़ फॉर्म्स भी दोस्तों प्लेटो का माइंड बॉगलिंग आईडिया है। इसके ऊपर भी मैं वीडियो बना चुका हूं। जरूर देखिएगा। फिलॉसफी में दोस्तों अगर आपका इंटरेस्ट है और आपने द रिपब्लिक नहीं पढ़ी तो कुछ नहीं पढ़ा। प्लेटो की द रिपब्लिक ना सिर्फ आज बल्कि अगले हजारों साल तक भी जिंदा रहेगी। हमारी जो दूसरी किताब है वो भी पाथ ब्रेकिंग या इनफ्लुएंशियल है और बहुत कंट्रोवर्शियल है। इसको लिखा था द ग्रेट
चार्ल्स डार्विन ने और इस बुक का नाम है ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज। दोस्तों, ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज पब्लिश हुई थी इन द ईयर 1859 में और इस किताब ने हमेशा के लिए दुनिया को बदल के रख दिया था। इस बुक में डार्विन ने पहली दफा थ्योरी ऑफ़ एवोल्यूशन बाय नेचुरल सिलेक्शन के कांसेप्ट को समझाया। इस बुक ने हमारी लाइफ को, नेचर को, इंसान की हिस्ट्री को और ह्यूमन एक्सिस्टेंस के कांसेप्ट्स को हमेशा के लिए ट्रांसफॉर्म कर दिया। देखिए यह जो किताब है ना इसका सेंट्रल आईडिया यह है कि स्पीशीज आर नॉट फिक्स्ड और क्रिएटेड वंस एंड फॉर एवर। यानी कोई भी स्पीशीज हमेशा
के लिए सेम नहीं रहती। वक्त के साथ वो इवॉल्व होती है, चेंज होती है। डार्विन का कहना था कि नेचुरल सेक्शन के जरिए वो जानवर और पौधे जिनके ट्रेट्स बेहतरीन होते हैं वही जिंदा रहते हैं और अगली जनरेशन को वही ट्रेड्स ट्रांसफर होते हैं। ऐसे में जो स्पीशीज कमजोर होती है वो सफा हस्ती से मिट जाती है। इट इज एनहिलेटेड। इसी कांसेप्ट को सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट कहा जाता है। अपनी इस थ्योरी को सपोर्ट करने के लिए चार्ल्स डार्विन ने बेशुमार एविडेंसेस दिए। पिजंस की ब्रीडिंग, प्लांट्स और इंसेक्ट्स की स्टडीज और फॉसिल्स का एनालिसिस डिटेल से मेंशन किया।
हर चैप्टर में वह स्टेप बाय स्टेप एक्सप्लेन करता है कि वेरिएशंस कैसे होती हैं? लाइफ की स्ट्रगल क्या है? सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट कैसे काम करता है? और एवोल्यूशन किस तरह एक ब्रांचिंग पैटर्न पे चलती है। दोस्तों, चार्ल्स डार्विन की ये जो किताब है ना, ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज, ये मजहबी लोगों को बहुत परेशान करती है। उसकी वजह यह है कि डायरेक्टली अटैक्स द फाउंडेशन ऑफ रिलजन। रिलजन यह कहता है कि हर चीज खुदा ने, भगवान ने, अल्लाह ने एक ही मर्तबा बनाई और खुदा की बनाई हुई चीज बेहतरीन है, कंप्लीट है, फुल एंड फाइनल है। उसमें किसी भी किस्म का इरतका यानी
एवोल्यूशन की गुंजाइश नहीं है। लेकिन ये बात भी आपने याद रखनी है कि जब फेथ या मजहब की बात आती है ना तो फिर रैशन का इस्तेमाल बहुत कम होता है। यही वजह है कि चार्ल्स डार्विन की ये थ्योरी पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई। आज यही थ्योरी मॉडर्न बायोलॉजी, जेनेटिक्स, मेडिसिन और साइकोलॉजी की फाउंडेशन बन गई है। और उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चार्ल्स डार्विन ने एविडेंस दिए थे कि किस तरीके से कोई भी स्पीशीज इवॉल्व किया करती है। मॉडर्न दुनिया की सबसे इन्फ्लुएंशियल बुक की बात की जाए तो शायद चार्ल्स डार्विन की ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज। नंबर वन स्पॉटले।
हमारी जो तीसरी बुक है वो भी रेवोल्यूशनरी है। और इस बुक का नाम है द कॉम्युनिस्ट मैनिफेस्टो जिसको लिखा था कार्ल मार्क्स और फ्रीड्रिक एंगल्स ने। यह जो बुक है ना दोस्तों कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो यह दुनिया के सबसे पावरफुल पॉलिटिकल डॉक्यूमेंट्स में शामिल होती है। यह बुक सिर्फ एक थ्योरी नहीं है बल्कि वर्किंग क्लास के लिए एक कॉल टू एक्शन है। वर्कर्स ऑफ द वर्ल्ड यूनाइट। आसान जबान में कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो ने कैपिटलिज्म के खिलाफ एक नया फ्रेमवर्क दिया और सोशलिज्म और कम्युनिज्म के प्रिंसिपल्स को लोगों को समझाया। यह एक ऐसी किताब है जिसने मजदूरों को अपने हुकूक
के लिए खड़े होने का हौसला दिया। यह बुक कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगल्स ने तब लिखी थी जब यूरोप में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन अपने पीक पर था। फैक्ट्रीज बढ़ रही थी। एक से एक बढ़कर एडवांस मशीनरी आ रही थी। लेकिन इस सबके बावजूद मजदूर क्लास को वैसे ही एक्सप्लइट किया जा रहा था। वर्कर्स लॉन्ग आवर्स की शिफ्ट लगाते लो वेजेस पर काम करते। उनके राइट्स की बात की जाए तो वो तो एक्सिस्ट ही नहीं करते थे। यहां पे मार्क्स और एंगल्स ने इस किताब के जरिए एक ऐसी थ्योरी दी व्हिच इज एक्चुअली द रियल रियलिटी ऑफ़ द वर्ल्ड। उन्होंने कहा कि इंसान की जो पूरी हिस्ट्री है ना वो
एक्चुअली क्लास स्ट्रगल की है। जिसमें एक तरफ है रूलिंग क्लास और दूसरी तरफ है वर्किंग क्लास। रूलिंग यानी कैपिटलिस्टिक क्लास को बोझवासी कहा गया। ये वो लोग थे जिनके पास कैपिटल था, फैक्ट्रीज थी और यही मीन्स ऑफ प्रोडक्शन को कंट्रोल करते थे। और दूसरी तरफ थी वर्किंग क्लास यानी कि प्रोलिटेरियट। यह वो लोग होते हैं जो अपनी लेबर बेचते हैं ताकि जिंदा रहने के लिए पैसे कमा सकें। मार्क्स और एंगल्स का यह मानना था कि ये जो बोजवाजी है ना यह प्रोलिटेरियट को पूरी उम्र एक्सप्लइट करते हैं। मजदूरों का खून चूसते हैं और उन्हें उनके हुकूक नहीं देते। लेकिन जो सबसे
रेवोल्यूशनरी बात थी ना वो ये कि ये जो कैपिटलिस्टिक सिस्टम है ना यह एक दिन अपने ही बोझ तले दब के मर जाएगा और यह वो दौर होगा जब पूरी दुनिया के वर्कर्स आपस में मिल जाएंगे। क्या खूब बात कही है कार्ल मार्क्स ने। द प्रॉलिटेरियंस हैव नथिंग टू लूज बट दे चेंज। दे हैव अ वर्ल्ड टू विन। यह बुक पूरी दुनिया में सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट मूवमेंट्स की फाउंडेशन बन गई। इसके जरिए यूरोप, रशिया, चाइना और कई मुल्कों में रेवोलशंस आए। दुनिया में तकरीबन हर जगह मजदूरों ने इस किताब को अपनी गाइडलाइन समझा। एंगल्स ने इस बुक में क्या ही खूबसूरत बात लिखी है। वो कहता है
कि सोसाइटी असल मानों में तभी ही फ्री और प्रोस्परस हो सकती है जब किसी भी एक इंडिविजुअल को ग्रोथ के लिए भरपूर ओपोरर्चुनिटी दी जाए। उसको अपने पोटेंशियल को रियलाइज करने का इक्वल चांस दिया जाए। द फ्री डेवलपमेंट ऑफ ईच इज द कंडीशन फॉर द फ्री डेवलपमेंट ऑफ ऑल। इस मेनिफेस्टो को क्रिटिसाइज भी बहुत किया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि कार्ल मार्क्स ने कैपिटलिज्म की फ्लेक्सिबिलिटी को अंडरएस्टीमेट किया है। क्योंकि जो भी मॉडर्न टेक्नोलॉजी आती है, इकॉनमी में ग्रोथ आती है, वो कैपिटलिस्टिक सिस्टम की वजह से ही आती है। कुछ लोग कहते हैं कि मार्क्स और एंगल्स का
ये जो मैनिफेस्टो है ना, यह दरअसल डिक्टेटोरियल है। देखिए आप मार्क्स और एंगल्स के कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो से एग्री करें या ना करें। लेकिन यह बात तो तय है दैट दिस बुक चेंज द वर्ल्ड ऑन इट्स हेड। जनाब जो चौथी किताब है इट इज वन ऑफ माय मोस्ट फेवरेट बुक्स ऑफ ऑल टाइम। और यह लिखी थी द लेजेंड्री सिमोन डिबोवार ने और इस बुक का नाम है द सेकंड सेक्स। द सेकंड सेक्स दोस्तों एक लैंडमार्क फेमिनिस्ट टेक्स्ट है जो आज तक जेंडर स्टडीज और फेमिनिज्म की फाउंडेशन समझी जाती है। इस बुक ने खवातीन की लाइफ को देखने का नजरिया ही बदल दिया। मेरे हिसाब से इस किताब में
एक ऐसी लाइन है, एक ऐसी स्टेटमेंट है व्हिच इज द मोस्ट इंपैक्टफुल एवर। वन इज नॉट बोर्न बट रादर बिकम्स अ वुमेन। इस स्टेटमेंट का मतलब यह है कि औरत पैदा होते ही औरत नहीं बनती बल्कि उसकी सोसाइटी, उसके जेंडर रोल्स, उसका कल्चर और पेट्रियाकी दरअसल उसे औरत बना देते हैं। यानी कि औरत होने का मतलब बायोलॉजिकल रियलिटी से ज्यादा सोशल और कल्चरल रियलिटी है। सिमोन इस बुक में लिखती है कि हिस्ट्री में औरत को हमेशा सेकंड सेक्स बनाया गया है। मैन इज कंसीडर्ड द डिफॉल्ट ह्यूमन एंड वुमेन इज कंसीडर्ड द सेकंड सेक्स। मर्द को हमेशा एक ह्यूमन बीइंग एक
एक्चुअल इंसान समझा गया है और औरत को हमेशा उसके मुकाबले में दूसरा दर्जा दिया गया है। इस बुक का सेंट्रल आईडिया यह है कि जेंडर एक सोशल कंस्ट्रक्ट है। यानी कि सोसाइटी और कल्चर डिसाइड करते हैं कि औरत को कैसे रहना चाहिए, कैसे कपड़े पहनने चाहिए, सोसाइटी में कैसा बिहेव करना चाहिए। इस बुक में ना सिमोन डिबेवार ने कुछ बहुत ही पाथ ब्रेकिंग और कंट्रोवर्शियल बातें लिखी हैं। वो कहती है कि सोसाइटी ने ना औरत को घर तक ही लिमिटेड कर दिया है। औरत का रोल सिर्फ मां, बीवी और केयरटेकर तक लिमिट कर दिया गया है और उसे इकोनॉमिक इंडिपेंडेंस से हमेशा दूर
रखा गया है। उसकी आइडेंटिटी को ना हमेशा मर्द की आइडेंटिटी से जोड़ा गया है। सिमोन डिबोर कहती है कि औरत के ऊपर ये जो सारे रूल्स इंपोज किए गए ना इसकी वजह यह है ताकि औरत को घर तक ही लिमिटेड कर दिया जाए। उसे कहा जाए कि भाई तू घर पे रह घर संभाल ताकि मर्दों की इकॉनमी के अंदर कंट्रोल बरकरार रहे। सिमोन डिबोआर की ब्रिलियंस यह है कि उसने फिलॉसफी और साइकोलॉजी का कमाल इस्तेमाल किया है इस किताब द सेकंड सेक्स में। वो लिखती है कि बचपन से ही लड़कियों को अलग ट्रीट किया जाता है। छोटी लड़कियों को डॉल्स और किचन सेट्स दिए जाते हैं। और लड़कों को कार्स
और टूल्स। यह छोटी-छोटी चीजें उनके दिमाग में जेंडर रोल्स को रिइंफोर्स करती हैं। लड़कियों को कहा जाता है कि तुम्हें जेंटल, ओबिडिएंट और डिपेंडेंट बनना है और लड़कों को कहा जाता है कि तुम स्ट्रांग, इंडिपेंडेंट और लीडर हो। ऐसे ही आहिस्ता-आहिस्ता औरत एक कंस्ट्रक्टेड जेंडर आइडेंटिटी बन जाती है। द सेकंड सेक्स ने सेकंड वेव ऑफ़ फेमिनिज्म को डायरेक्टली इंस्पायर किया। यह मूवमेंट चली थी 60 और 70ज में जिसमें औरतों ने ना सिर्फ वोटिंग राइट्स मांगे बल्कि इक्वल पे, रिप्रोडक्टिव राइट्स और पर्सनल फ्रीडम के लिए भी स्ट्रगल किया। इस किताब ने
औरतों को समझाया कि इनक्वटीलिटी सिर्फ लॉ की वजह से नहीं बल्कि कल्चर, ट्रेडिशन और हर रोज के जेंडर नॉर्म्स की वजह से है। यही वजह है कि खवातीन की जो लिबरेशन मूवमेंट्स थी ना उन्होंने इस किताब से बहुत इंस्पिरेशन ली। हर ग्रेट किताब की तरह इस बुक के ऊपर भी बहुत क्रिटिसिज्म हुआ है। कुछ लोग कहते हैं कि सिमोन लिबुआर ने मदरहुड को बहुत डाउन प्ले किया है। कुछ लोग कहते हैं कि यह बुक बहुत ज्यादा फिलॉसोफिकल है जिसकी वजह से आम औरत को इसकी समझ ही नहीं आती। लेकिन कुछ भी हो द सेकंड सेक्स जैसी किताबें सदियों में एक ही दफा लिखी जाती हैं। फिफ्थ जो बुक है ना
उसमें मैं थोड़ा सा कंफ्यूज हूं। उसकी वजह यह है कि यह दोनों किताबें लिखी हैं एक ऐसे फिलॉसफर ने हु इज एब्सोलुटली ब्रेथ टेकिंग एंड माय पर्सनल फेवरेट ऑफ ऑल टाइम। इस शख्स का नाम है फ्रीड्रिक विलहम नीचा। आप सब लोग जानते हैं माय लव फॉर द ग्रेट फिलॉसफर। नीचा जैसा कोई फलसफी आ ही नहीं सकता। उसकी सोच अर्थ शैटरिंग थी जो इंसान को हमेशा के लिए ट्रांसफॉर्म कर सकती है। सो मेरे पास ऑप्शन था कि मैं उसकी बेहतरीन किताब थस्पोक जरासरा को सेलेक्ट करूं या बिय्ड गुड एंड इविल को। थस्पोक के ऊपर मैं बहुत बात कर चुका हूं। लिहाजा फिफ्थ प्लेस
पे आज मैं प्लेस करता हूं बिय्ड गुड एंड इविल को। नीचा की ये जो किताब है ना बिय्ड गुड एंड इविल इट इज़ वन ऑफ़ हज़ मोस्ट चैलेंजिंग वर्क्स। यह बुक 1886 में पब्लिश हुई और उस वक्त से लेकर आज तक फिलॉसफी, साइकोलॉजी और इवन आर्ट में भी बहुत इन्फ्लुएंस रखती है। मीचा ने बेसिकली इस बुक में ट्रेडिशनल मोरालिटी और रिलजन के अगेंस्ट अपना एक चैलेंज रखा है। उसने सवाल उठाया कि क्या हमारी अच्छाई और बुराई का कांसेप्ट एक्चुअल में सच है या सिर्फ एक सोशल कंस्ट्रक्ट है जो सोसाइटी और रिलजन ने हमारे ऊपर थोप दिया है। नीचा अपने पाथ ब्रेकिंग आइडियाज बताते हुए लिखता है कि
लोग जो मोरालिटी फॉलो करते हैं ना वो दरअसल हर्ड मेंटालिटी है। भेड़ बकरियों की सोच है। यानी कि ज्यादातर लोग ब्लाइंडली वही फॉलो करते हैं जो सब कर रहे होते हैं। कोई भी अपने अंदर की सच्चाई या इंडिविजुअलिटी को समझने की कोशिश ही नहीं करता। नीचा के नजदीक ये जो हर्ड मोरालिटी है ना ये इंसान की फ्रीडम और उसकी ग्रोथ की सबसे बड़ी दुश्मन है। इस बुक का जो सेंट्रल आईडिया है ना वो नीचा की फिलॉसफी का एक कॉर्नर स्टोन है। एक फाउंडेशनल पिलर है। और इस आईडिया को कहते हैं वेल डूड पावर। नीचा कहता है कि इंसान की असल फोर्स या एनर्जी सर्वाइवल नहीं बल्कि अपनी पावर,
क्रिएटिविटी और इंडिविजुअलिटी को असर्ट करना है। यह विल टू पावर इंसान को मोटिवेट करती है कि वो अपना यूनिक पाथ चूज़ करे। अपनी वैल्यू्यूज खुद डिफाइन करे और अपनी जिंदगी का मतलब खुद क्रिएट करे। नीचा ना मजहब और ट्रेडिशनल मोरालिटी के बहुत अगेंस्ट था। वो कहता था कि मजहब ना इंसान को भेड़ बकरियां बना देता है। उसकी सोच को मार देता है। उसे ओबिडिएंट बना देता है। सबमिसिव बना देता है। जिसके बाद इंसान के अंदर सवाल करने की जुस्तजू ही नहीं रहती। और यही ओबिडियंस बिल आखिर इंसान के अंदर स्लेव मोरालिटी को जन्म देती है। और यहीं से इंसान की डेथ हो जाती है। लिहाजा नीचा
कहता था कि ऐसे में इंसान को जरूरत है ट्रांसवैल्यूएशन और वैल्यूस की। यानी कि जो सारा मोरल फ्रेमवर्क है, यह जो सारा मोरल कोड है ना, इसको तबाह बर्बाद करके इंसान ने अपना मोरल कोड बनाना है। यही वजह है कि नीचा को अक्सर एक्सिस्टेंशियलिज्म के पाइनियर्स में देखा जाता है। क्योंकि यॉन पॉल, साटो और अल्बर्ट के मुंह की तरह उसका भी मानना यही था कि इंसान ने अपनी लाइफ को खुद मकसद देना होता है। बियों्ड गुड एंड इवल के ऊपर भी मैंने डिटेल्ड वीडियो बनाई हुई है। उसको भी जरूर व्यू कीजिएगा। जो हमारी छठी किताब है वो भी लिखी है मेरे सबसे फेवरेट साइकोलॉजिस्ट ने
जिसका नाम है सिगमंड फ्रॉयड। एंड द नेम ऑफ द बुक इज द इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स। सिगमंड फ्रॉयड की किताब द इंटरप्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम साइकोलॉजी की हिस्ट्री की शायद सबसे ज्यादा इन्फ्लुएंशियल टेक्स्ट है। यह वो किताब है जिसने मॉडर्न साइको एनालिसिस की बेस बनाई। लेकिन मजे की बात देखें कि अपने पब्लिश होने के 10-15 साल तक ना इसकी 100 50 कॉपीज़ ही बिकी। लेकिन आज द इंटरप्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम्स इज कंसीडर्ड अ ग्रेट टेक्स्ट। दुनिया की कई जुबानों में इस बुक की ट्रांसलेशन हो चुकी है। एंड इट हैज़ बिकम अ स्टैंडर्ड टेक्स्ट व्हेन इट कम्स टू साइको एनालिसिस। यह बुक आपको
इंसान के अनकॉन्शियस की डार्क रियलिटीज के बारे में बताती है। फ्रॉयड लिखता है कि ड्रीम्स आर रॉयल रोड टू द अनकॉन्शियस। यानी इंसान के अनकॉन्शियस माइंड को समझने का बेहतरीन तरीका यह है कि उसके ड्रीम्स का एनालिसिस किया जाए। मतलब अगर आपको अपने अंदर सीक्रेट, डिजायर्स, फियर्स और कॉन्फ्लिक्ट्स को समझना है तो आपको अपने ड्रीम्स को एनालाइज करना पड़ेगा। ये आईडिया ना उस वक्त रेवोल्यूशनरी था। क्योंकि उस वक्त की साइकोलॉजी यूजुअली इंसान के कॉन्शियस माइंड को डिस्कवर कर रही थी। फ्रॉयड ने पहली दफा यह बात अपनी इस किताब में कही कि इंसान का असल कंट्रोल
उसके अनकॉन्शियस माइंड के पास होता है। इसी के थ्रू उसने साइको एनालिसिस के की कॉन्सेप्ट्स जैसे कि इडपस कॉम्प्लेक्स और फ्री एसोसिएशन को डिटेल में एक्सप्लेन किया। फ्रॉयड ने ना इंसान के ख्वाबों को दो हिस्सों में डिवाइड किया। एक को उसने कहा मैनिफेस्ट कंटेंट और दूसरे को लेटेंट कंटेंट। मैनिफेस्ट कंटेंट ख्वाब का वो हिस्सा है जो आपको याद रहता है। यानी वो मनाज़िर, किरदार या वाक्यात जो आपने बरा देखे। सिंपल जबान में ख्वाब की वो कहानी जो आप सुबह बता सकते हैं। लेकिन जो लेटेंट कंटेंट है वो ख्वाब में छुपा हुआ पैगाम है। लेटेंट कंटेंट का ताल्लुक होता है
आपके दिल के जज्बात से, दबी हुई ख्वाहिशात से और ख्यालात से। यानी जो मैनिफेस्ट कंटेंट है वो हमारी एक्चुअल विश का ना एक डिस्टोर्टेड और ट्विस्टेड वर्जन है। जबकि लेटेंट कंटेंट एक्चुअल विश होती है। लेकिन हमारा अनकॉन्शियस माइंड अक्सर ड्रीम का ट्रू या एक्चुअल मीनिंग को डिस्टोर्ट कर देता है। ताकि वो हमारे लिए ज्यादा डिस्टर्बिंग और एंबरेसिंग ना हो। इस प्रोसेस को ड्रीम वर्क कहते हैं। और इन्हीं ड्रीम्स को डिकोड करने के लिए फ्रॉयड ने एक जबरदस्त टेक्निक का इस्तेमाल किया जिसे फ्री एसोसिएशन कहते हैं। सिगमंड फ्रॉयड इस किताब और ड्रीम्स के बारे में
अगर आप डिटेल में जानना चाहते हैं तो मेरे आर्काइव्स में इसकी वीडियो जरूर देखिएगा। हमारी जो सातवीं बुक है वो लिखी है द ग्रेट रशियन राइटर फोदर दोस्तकी ने और इसका नाम है क्राइम एंड पनिशमेंट। क्राइम एंड पनिशमेंट दोस्त्सकी का मास्टर पीस है। इस नवेल का मेन कैरेक्टर एक गरीब फॉर्मर स्टूडेंट है रस्कॉल निकोफ। उसकी थ्योरी यह थी कि वो एक एक्स्ट्राऑर्डिनरी शख्स है जो इंसानियत के फायदे के लिए ईवल मींस को खत्म करने की जिम्मेदारी उठा सकता है। इसी सोच की वजह से वो एक बूढ़ी औरत का कत्ल कर देता है। वो बूढ़ी औरत एक पोर्नर्न ब्रोकर
थी। पोर्न ब्रोकर वह शख्स होता है जो आपकी चीजें अपने पास गिरवी रखता है और आपको इंटरेस्ट पे पैसे देता है। रस्कॉलिकॉफ के नजदीक वो एक यूज़लेस औरत है जो गरीब लोगों का फायदा उठाती है और अगर वो उसको मार के उसकी दौलत लूट ले और फिर उस दौलत से कोई अच्छे काम करे तो उसके अकॉर्डिंग यह मोरली जस्टिफाइड है। लेकिन यह सब करने के बाद रस्कलनिकॉफ को गिल्ट होने लगता है। उसे हेलुसिनेशंस होने लगते हैं। उसे ड्रौने ख्वाब आने लगते हैं और उसे महसूस होता है कि जो उसने किया वो गलत था। रस्कलनिकोफ के कैरेक्टर और क्राइम एंड पनिशमेंट के जरिए
दोस्तकी ने गिल्ड की साइकोपैथोलॉजी हमें क्या कमाल समझाई है। यही वजह है कि क्राइम एंड पनिशमेंट आज भी लोगों के दिलों पे राज करती है। आठवीं जो किताब है वो दिमाग को पागल कर देने वाली बुक है। एंड इट इज़ वन ऑफ द ग्रेटेस्ट वर्क्स ऑफ फिलॉसफी। इस बुक का नाम है क्रिटिक ऑफ प्योरिज्म। और इसे लिखा था द मास्टर इमैनुअल कांट ने। यह बुक पब्लिश हुई थी 1781 में। फिलॉसोफी में अगर किसी किताब को कपर्निकन रेवोल्यूशन कहा जाए ना तो वह क्रिटिक ऑफ प्योर रीजन ही होगी। कांट ने ना इस किताब में दो स्कूल ऑफ थॉट्स को रिकंसाइल करने की कोशिश की
है। जिसमें एक है रैशनलिज्म और दूसरा है इंपेरसिज्म। रैशनलिज्म यह कहती है कि नॉलेज रीजन और अकल से आती है। और इंपेरसिज्म यह कहता है कि नॉलेज सिर्फ एक्सपीरियंस से आती है। जबकि कांड के मुताबिक नॉलेज सिर्फ एक तरफ से नहीं आती बल्कि नॉलेज रीजन और एक्सपीरियंस दोनों का सिंथेसिस है। इस आईडिया को उसने कहा ट्रांसिडेंटल आइडियलिज्म। पागल कर देने वाली किताब इसलिए मैंने इसको कहा क्योंकि इट इज़ वेरी डिफिकल्ट। इसके जो फिलॉसोफिकल आइडियाज हैं उनको समझना बहुत मुश्किल है। मैंने तकरीबन 3 साल लगाए थे इस किताब को समझने के लिए। इसी की बेसिस पर मैंने इसके
ऊपर डिटेल वीडियो भी बनाई हुई है। आप जरूर इसे देखिएगा। इसमें जो द आईडिया ऑफ़ नॉमिनर फिनोमिना है ना और जो ए प्रारे नॉलेज का कांसेप्ट है दैट विल ब्लो योर माइंड। नौवें नंबर पर जो सबसे इन्फ्लुएंशियल किताब है वो है द वेल्थ ऑफ नेशंस जिसको लिखा था एडम स्मिथ ने। एनलाइटनमेंट के लीडिंग थिंकर्स की लिस्ट में से एक हैं एडम स्मिथ। और उनकी यह किताब 1776 में पब्लिश हुई जो डिटेल में इस बात का एनालिसिस करती है कि इकॉनमीज़ कैसे काम करती हैं। वेल्थ कैसे जनरेट और सर्कुलेट होती है। इस किताब में एडम स्मिथ ने क्या ही वास्ट टॉपिक्स को डिस्कस किया है।
डिवीज़न ऑफ़ लेबर से लेके प्राइस कॉम्पोनेंट से लेके स्टॉक से लेके गोल्ड और प्राइसेस के फ्लक्चुएशन से लेके मर्केंटाइल सिस्टम कैसे काम करता है? गवर्नमेंट के रेवेन्यूज़ कैसे मैनेज होते हैं? और इकॉनमी को चलाने में स्टेट का क्या रोल होना चाहिए? ऑल ऑफ़ दीज़ हैव बीन डिस्कस्ड। लेकिन इस बुक का जो सेंट्रल आईडिया है ना वह बहुत ही यूनिक है। एडम स्मिथ के मुताबिक जब लोग अपने जाती फायदे के लिए आजादाना तौर पर कारोबार करते हैं ना तो पूरे मुआशरे की दौलत और खुशहाली इसी से बढ़ती है। यानी कि मंडियों को आजाद होना चाहिए और किसी भी शख्स को इस
बात की आजादी होनी चाहिए कि वो अपने जाती मफाद को पर्सू कर सके। ऐसे ही इकॉनमीज़ ग्रो करती हैं। दिस बुक कैन बी कंसीडर्ड अ बाइबल फॉर द कैपिटलिस्टिक वर्ल्ड। अब दोस्तों जो हमारी 10वीं और आखिरी किताब है वो है लियो टॉलस्टॉय का मास्टर पीस। यानी कि वारेन पीस। इस किताब की ना रेपुटेशन थोड़ी स्केरी है क्योंकि इस किताब के 1000 से ऊपर पेजेस हैं। लेकिन इसके बावजूद दिस बुक एंजॉयस अ कल्ट स्टेटस। वॉर एंड पीस का मेन फोकस है नेपोलियन का 1812 में रशिया पर इन्वज़। इसी सिचुएशन को टॉलस्टॉय ने नवेल में कन्वर्ट करके प्रेजेंट किया है।
जब नेपोलियन की फौज रशिया को इनवेड करती है। टॉलस्टॉय बहुत ही ब्रिलियंट तरीके से अलग-अलग बैकग्राउंड्स के कैरेक्टर्स को फॉलो करता है। जैसे कि पेजेंट्स, नोबल्स, सिविलियंस और सोल्जर्स। यह सब लोग अपने वक्त, हिस्ट्री और कल्चर के यूनिक प्रॉब्लम्स का सामना करते हैं। जैसे-जैसे नौवेल आगे बढ़ता है, यह कैरेक्टर्स अपने पर्सनल कहानियों से निकल कर यूनिवर्सल बन जाते हैं। अपने कैरेक्टर्स के जरिए टॉलस्टो ने यह बताने की कोशिश की कि सिर्फ जिंदा रहना ही कितनी खूबसूरत चीज है। आज की दुनिया में अगर आपने वॉर एंड पीस पढ़नी है तो इसकी आपको एक वजह देता हूं। इट विल
मेक यू फील बेटर अबाउट बीइंग अलाइव। सो दोस्तों, यह थी मेरी टॉप 10 बुक्स ऑफ ऑल टाइम। आपने मुझे कमेंट सेक्शन में जरूर बताना है कि आपने इनमें से कितनी किताबों को पढ़ा है और इनमें से कौन सी बुक्स हैं जो आपकी भी टॉप 10 लिस्ट का हिस्सा है। इस वीडियो को अपने दोस्तों के साथ, फैमिली के साथ जरूर शेयर कीजिएगा। अंटिल नेक्स्ट टाइम, गुड बाय।
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