Boo by Manto – ایک عورت کی بو دیوانہ کر گئی- Story of Smell & Desire

हेलो बुकबॉडीज, कैसे हैं आप लोग सब? आई होप ऑल ऑफ यू आर डूइंग ग्रेट। मंटो के अफसानों को आप लोगों ने बहुत पसंद किया है। हमारी पिछली कुछ बैठकों में मैंने मंटो के कुछ दिल दहला देने वाले अफसाने आपको सुनाए थे। जिसमें एक था ठंडा गोश्त। फिर हमने कवर किया था काली शलवार और उसके बाद खोल दो। आज फिर मंटो के एक और जबरदस्त अफसाने के साथ आपके सामने हाजिर हूं। और इस अफसाने का टाइटल है ब। मंटो का यह जो अफसाना है ना यह भी इंसान को सोचने पर मजबूर कर देता है। इसको जरा सुने लेकिन इसका असल मजा तब आएगा जब मैं आपके लिए इसको डिकोड करूंगा। बरसात के यही दिन थे।

खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते इसी तरह नहा रहे थे। सागवान के स्प्रिंगदार पलंग पर जो अब खिड़की के पास से थोड़ा इधर सरका दिया गया था। एक घाटन लौंडिया रंधीर के साथ चिपटी हुई थी। खिड़की के पास बाहर पीपल के नहाए हुए पत्ते रात के दूदिया अंधेरों में झूमरों की तरह थरथरा रहे थे। [संगीत] शाम के वक्त जब दिन भर एक अंग्रेजी अखबार की सारी खबरें और इश्तहार पढ़ने के बाद कुछ सुनाने के लिए वह बालकनी में आकर खड़ा हुआ था तो उसने इस घाटन लड़की को जो साथ वाले रस्सियों के कारखाने में काम करती थी और बारिश से बचने के लिए इमली के पेड़ के

नीचे खड़ी थी खांस खांस कर अपनी तरफ मुतवज्जा कर लिया था और इसके बाद हाथ के इशारे से ऊपर बुला लिया था। वो कई दिन से शदीद किस्म की तन्हाई से उगता गया था। जंग के बायस बंबई की तकरीबन तमाम क्रिश्चियन छोकरियां जो सस्ते दामों मिल जाया करती थी औरतों की अंग्रेजी फौज में भर्ती हो गई थी। इनमें से कई एक ने फोर्ट के इलाके में डांस स्कूल खोल लिए थे। जहां सिर्फ फौजी गोरों को जाने की इजाजत थी। रणधीर बहुत उदास हो गया था। इसकी उदासी की एक वजह तो यह थी कि क्रिश्चियन छोकरियां नायाब हो गई थी। दूसरी वजह यह भी थी कि रणधीर जो फौजी गोरों के मुकाबले में कई ज्यादा मुहज्जब,

तालीम याफ्ता, सेहतमंद और खूबसूरत था। सिर्फ इसलिए इस पर फोर्ट के अक्सर क्लबों के दरवाजे बंद कर दिए गए थे कि इसकी चमड़ी सफेद नहीं थी। जंग से पहले रणधीर नागपाड़ा और ताजमहल होटल की कई मशहूर और मारूफ क्रिश्चियन लड़कियों से जिस्मानी ताल्लुकात कायम कर चुका था। रणधीर ने बस यूं ही हेजल से बदला लेने की खातिर इस घाटन लड़की को इशारे पर बुलाया था। हेजल इसके फ्लैट के नीचे रहती थी और हर रोज सुबह वर्दी पहनकर कटे बालों पर खाकी रंग की टोपी तिरछे जाविए से जमाकर बाहर निकलती थी और लड़कपन से चलती थी जैसे फुटपाथ पर चलने वाले सभी लोग टाट की तरह इसके रास्ते

में बिछे चले जाएंगे। रणधीर सोचता था कि आखिर क्यों वो इन क्रिश्चियन छोकरियों की तरफ इतना ज्यादा मायल है। इसमें कोई शक नहीं कि वो अपने जिस्म की तमाम दिखाई जा सकने वाली अशिया की नुमाइश करती थी। किसी किस्म की झिझक महसूस किए बगैर अपने कारनामों का जिक्र किया करती थी। यह सब तो ठीक है, लेकिन किसी दूसरी लड़की में भी तो यह खासियतें हो सकती हैं। रणधीर ने जब घाटन लड़की को इशारे से ऊपर बुलाया तो इसे किसी भी तरह इस बात का यकीन नहीं था कि वो इसे अपने साथ सुला लेगा। लेकिन थोड़ी ही देर के बाद उसने उसके भीगे हुए कपड़े देखकर यह सोचा था कि कहीं ऐसा ना हो कि

बेचारी को नमूिया हो जाए। लिहाजा उसने उससे कहा यह कपड़े उतार दो सर्दी लग जाएगी। वो रणधीर की इस बात का मतलब समझ गई थी क्योंकि इसकी आंखों में शर्म के लाल डोरे तैर गए थे। लेकिन बाद में जब रणधीर ने इसे अपनी धोती निकाल कर दी तो इसने कुछ देर सोचकर अपना लहंगा उतार दिया जिस पर मैल भीगने की वजह से और भी नुमाया हो गया था। लहंगा उतार कर इसने एक तरफ रख दिया और जल्दी से धोती अपनी रानों पर डाल ली। फिर इसने अपनी तंग चोली उतारने की कोशिश की जिसके दोनों किनारों को मिलाकर इसने गांठ दे रखी थी। वह गांठ उसके तंदुरुस्त सीने के नन्हे लेकिन समीले घड़े में छुप गए थे।

देर तक वह अपने घिसे हुए नाखनों की मदद से चोले की गांठ खोलने की कोशिश करती रही जो भीगने की वजह से बहुत ज्यादा मजबूत हो गई थी। जब थक हार कर बैठ गई तो उसने मराठी जबान में रणधीर से कुछ कहा जिसका मतलब यह था मैं क्या करूं नहीं निकलती। रणधीर इसके पास बैठ गया और गांठ खोलने लगा। जब नहीं खुली तो उसने चोली के दोनों सिरों को दोनों हाथ में पकड़ कर इस जोर से झटका दिया कि गांठ सरासर फैल गई और इसके साथ ही दो धड़कती हुई छातियां एकदम से नुमाया हो गई। लम्हा भर के लिए रणधीर ने सोचा कि इसके अपने हाथों ने इस घाटन लड़की के सीने पर नरमन-नरम गूदी हुई मिट्टी को माहिर

कुम्हार की तरह दो प्यालों की शक्ल बना दी है। इसकी सेहतमंद छातियों में वही गुदगुदाहट वही धड़कन वही गुलाई वही गरमगरम ठंडक थी जो कुम्हार के हाथों से निकले हुए ताजा बर्तनों में होती है। मटमीले रंग की जवान छातियों में जो बिल्कुल कवारी थी एक अजीबोगरीब किस्म की चमक पैदा करती थी। जो चमक होते हुए भी चमक नहीं थी। उसके सीने पर यह ऐसे दिए मालूम होते थे जो तालाब के गदले पानी पर जल रहे थे। बरसात के यही दिन थे। खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते इसी तरह कप-कपा रहे थे। लड़की के दोनों कपड़े जो पानी में शराबूर हो चुके थे। गदले ढेर की

सूरत में पड़े थे और वो रणधीर के साथ चिपटी हुई थी। इसके नंगे बदन की गर्मी इसके जिस्म में ऐसी हलचल पैदा कर रही थी जो सख्त जाड़े के दिनों में नाइयों के गर्म हमामों में नहाते वक्त महसूस हुआ करती है। दिन भर वो रणधीर के साथ चिपटी रही। उन्होंने बम मुश्किल एक दो बातें ही की होंगी क्योंकि जो कुछ भी हो रहा था सांसों, होठों और हाथों से तय हो रहा था। रणधीर के हाथ उसकी छातियों पर हवा के झोंकों की तरह फिरते रहे। छोटी-छोटी चूंचियां और मोटे-मोटे गोल दाने जो चारों तरफ एक स्याह दायरे की शक्ल में फैले हुए हवाई झोंकों से जाग उठते और

इस घाटन लड़की के पूरे बदन में एक सरसराहट पैदा हो जाती कि खुद रणधीर भी कपकपा उठता। ऐसी कपकपाहटों से रणधीर का सैकड़ों बार वास्ता पड़ चुका था। वो इनको बखूबी जानता था। कई लड़कियों के नरमो नाजुक और सख्त सीनों से अपना सीना मिलाकर कई-कई रातें गुजार चुका था। वो ऐसी लड़कियों के साथ भी रह चुका था जो बिल्कुल उसके साथ लिपट कर घर की वो सारी बातें सुना दिया करती थीं जो किसी गैर के लिए नहीं होती। वह ऐसी लड़कियों से भी जिस्मानी ताल्लुक कायम कर चुका था जो सारी मेहनत करती थी और उसे कोई तकलीफ नहीं देती थी। लेकिन यह घाटन लड़की

जो पेड़ के नीचे भीगी हुई खड़ी थी और जिसे इसने इशारे से ऊपर बुला लिया था मुख्तलिफ किस्म की लड़की थी। सारी रात रणधीर को उसके जिस्म से एक अजीब किस्म की ब आती रही। ऐसी ब जो बेवक़ खुशबू भी थी और बदबू भी। इसके बगलों से, इसकी छातियों से, इसके बालों से, इसके पेट से जिस्म के हर हिस्से से यह जो बदबू भी थी और खुशबू भी रणधीर के पूरे सरापे में बस गई थी। सारी रात वो सोचता रहा कि ये घाटन लड़की बिल्कुल करीब होने पर भी हरगिज़ इतने करीब ना होती अगर इसके जिस्म से यह बू ना उड़ती। यह ब इसके दिलो दिमाग की हर सिलवट में रेंग रही थी।

इसके तमाम नए पुराने महसूसात में रच गई थी। इस बू ने इस लड़की और रधीर को जैसे एक दूसरे से जोड़ दिया था। वह दोनों ऐसी गहराइयों में उतर गए थे जहां पहुंचकर इंसान एक खालिस इंसानी तस्कीन से महसूस होता है। जिस तरह कभी मिट्टी पर पानी छिड़कने से सौदीसदी ब निकलती है। लेकिन नहीं वो ब कुछ और ही तरह की थी। इसमें लवेंडर और इत की अमेजिश नहीं थी। वो बिल्कुल असली थी। औरत और मर्द के जिस्मानी ताल्लुकात की तरह असली और मुकद्दस। रणधीर को पसीने की बू से सख्त नफरत थी। नहाने के बाद वह हमेशा बगलों वगैरह में पाउडर छिड़कता था या कोई ऐसी दवा इस्तेमाल

करता था जिससे वह बदबू जाती रहे। लेकिन ताज्जुब है कि इसने कई बार हां, कई बार इस घाटन लड़की की बालों भरी बगलों को चूमा और इसे बिल्कुल घिन नहीं आई। बल्कि अजीब किस्म की तस्कीन का एहसास हुआ। रणधीर को ऐसा लगता था कि वो इसे पहचानता है। इसके मानी भी समझता है लेकिन किसी और को नहीं समझा सकता। बरसात के यही दिन थे। यूं ही खिड़की के बाहर जब उसने देखा तो पीपल इसी तरह नहा रहे थे। हवा में सरसराहटें और फड़फड़ाहटें घुली हुई थी। इसमें दबीदबी धुंधली सी रोशनी समाई हुई थी। जैसे बारिश की बूंदों का हल्काफुल्का गुबार नीचे उतर आया हो।

बरसात के यही दिन थे। जब मेरे कमरे में सागवान का सिर्फ एक ही पलंग था। लेकिन अब इसके साथ एक और पलंग भी था। और कोने में एक नई ड्रेसिंग टेबल भी मौजूद थी। दिन लंबे थे। मौसम भी बिल्कुल वैसा ही था। दूसरा पलंग खाली था। इस पलंग पर रणधीर ओंधे मुंह लेटा। खिड़की के बाहर पीपल के पत्तों पर बारिश की बूंदों का रक्स देख रहा था। एक गोरी चिट्टी लड़की जिस्म को चादर में छुपाने की नाकाम कोशिश करते-करते करीब सो गई। इसकी सुर्ख रेशमी सलवार दूसरे पलंग पर पड़ी थी। पलंग पर इसके दूसरे उतारे कपड़े भी पड़े थे। सुनहरे फूलदार जंपर अंगिया झांगिया और दुपट्टा सुर्ख था। गहरा सुर्ख

और इन सब में हिना के इत्र की तेज खुशबू बसी हुई थी। लड़की के स्या बालों में मुकेश के जर्रे धूल के जर्रों की तरह जमे हुए थे। चेहरे पर पाउडर, सुर्खी और मुकेश के इन जर्रों ने मिलजुलकर एक अजीब रंग बिखेर दिया था। बेनाम सा उड़ाउड़ा रंग और इसके गोरे सीने पर कच्चे रंग ने जगह-जगह सुर्ख धब्बे बना दिए थे। छातियां दूध की तरह सफेद थी। इनमें हल्का-हल्का नीलापन भी था। बगलों के बाल मुंडे हुए थे जिसकी वजह से वहां सुरमई गुबार सा पैदा हो गया था। रणधीर इस लड़की की तरफ देख देख कर कई बार सो चुका था। क्या ऐसा नहीं लगता जैसे मैंने अभी-अभी कीलें उखेड़ कर इसको लकड़ी

के बंद बक्स में से निकाला हो। जब रणधीर ने इसकी तंग और चुस्त अंगिया की डोरियां खोली थी तो इसकी पीठ पर और सामने सीने पर नरमनरम गोश्त पर झुर्रिया सी बनी हुई थी और कमर के चारों तरफ कसकर बांधे हुए जारबंद का निशान बरसात के वही दिन थे। पीपल के नरमनरम पत्तों पर बारिश की बूंदे गिरने से वैसी ही आवाज पैदा हो रही थी जैसी रणधीर उस दिन सारी रात सुनता रहा था। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी लेकिन इसमें हिना के इत्र की तेज खुशबू घुली हुई थी। रणधीर के हाथ बहुत देर तक इस गोरी चिट्टी लड़की के कच्चे दूध की तरह सफेद सीने पर हवा के झोंकों की तरह फिरते रहे थे। इसकी

उंगलियों ने इस गोरे-गोरे बदन में कई चिंगारियां दौड़ती हुई महसूस की थी। इस नाजुक बदन में कई जगहों पर सिमटी हुई कपकपाहटों का भी इसे पता चला था। जब इसने अपना सीना इसके सीने के साथ मिलाया तो रणधीर के जिस्म के हर रोंगटे ने इस लड़की के बदन के छिड़े हुए तारों की भी आवाज सुनी थी। मगर वो आवाज कहां थी? वो पुकार जो उसने घाटन लड़की के बदन में देखी थी। वो पुकार जो दूध के प्यासे बच्चे के रोने से ज्यादा होती है। वो पुकार जो हल्का-ए ख्वाब से निकल कर बेआज हो गई थी। रणधीर खिड़की से बाहर देख रहा था। इसके बिल्कुल करीब ही पीपल के नहाते हुए पत्ते

थरथरा रहे थे। रणधीर के पहलू में एक गोरी चिट्टी लड़की जिसका जिस्म दूध और घी में गुंदे हुए मैदे की तरह मुलायम था। लेटी थी। इसके बदन से हिना की इतर इथर की खुशबू आ रही थी जो अब थकी थकी सी मालूम होती थी। रणधीर को यह दम तोड़ती खुशबू बहुत बुरी मालूम हुई। इसमें कुछ खटास थी। एक अजीब किस्म की जैसे बदहजमी के डकारों में होती है। उदास, बेरंग, बेचैन। रणधीर ने अपने पहलू में लेटी हुई लड़की की तरफ देखा। उसके दिलो दिमाग में वही बसी हुई थी जो उस घाटन लड़की के जिस्म से बिना किसी कोशिश के अस खुद निकल रही थी। वो ब जो हिना के इत्र से कई ज्यादा हल्की

फुल्की और दबी हुई थी। जिसमें सूंघे जाने की कोशिश शामिल नहीं थी। वह खुद ब खुद नाक के अंदर घुसकर अपनी सही मंजिल पर पहुंच जाती थी। रणधीर ने आखिरी कोशिश के तौर पर इस लड़की के दूदिया जिस्म पर फिर हाथ फेरा लेकिन कपकपी महसूस ना हुई। इसकी नई नवेली बीवी जो एक फर्स्ट क्लास मैजिस्ट्रेट की बेटी थी जिसने बीए तक तालीम हासिल की थी और जो अपने कॉलेज के सैकड़ों लड़कों के दिलों की धड़कन थी रणधीर की किसी भी हिस्स को ना छू सकी। वो हिना की खुशबू में उसी बू को तलाश कर रहा था जो इन्हीं दिनों में जब कि खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते बारिश

में नहा रहे थे। इस घाटन लड़की के मैले बदन से आई थी। वाह क्या कहानी थी। देखिए दोस्तों अगर एक नॉर्मल शख्स अफसाने को पड़ेगा ना तो उसके लिए एक बहुत ही सिंपल स्टोरी है कि रणधीर एक प्लेबॉय शख्स है। वो एक लड़की के साथ हमबिस्तरी करता है। उसे बहुत मजा आता है ब होने के बावजूद। फिर जब वो अपनी बीवी के साथ है तो बीवी से सेटिस्फाइड ही नहीं है। उसे उस लड़की की याद आती रहती है। लेकिन मंटो के अफसानों को ना आप इस तरह पढ़ नहीं सकते। इसके अंदर लेयर्स एंड लेयर्स मौजूद होती है इंसान की साइकोलॉजी की। देखिए ये जो रणधीर है जो घाटन लौंडिया है या रणधीर की जो बीवी है

ये कोई रियल लाइफ कैरेक्टर्स नहीं है। बल्कि ये सिंबल्स हैं उस मैसेज के जो मंटो इस अफसाने के जरिए देना चाहता है। मंटो को अगर आप सतई लेवल पर पड़ जाएंगे ना तो आपको बिल्कुल मजा नहीं आएगा। यू नीड टू अंडरस्टैंड व्हाट साइकोलॉजिकल कॉम्प्लेक्सेस इज ही ट्राइंग टू सॉल्व। वो इंसान की नफसियात की गिरें किस तरीके से खोलना चाहता है। इस अफसाने ब में भी उसने कुछ ऐसे ही पावरफुल मैसेजेस दिए हैं। अब इस कहानी का असल निचोड़ यह है कि इंसान का असल ताल्लुक फितरत से होता है। बनावट से नहीं। रणधीर की बीवी बहुत खूबसूरत थी। उसने बहुत बनाओ श्रृंगार किया हुआ था।

लेकिन उसका कनेक्शन उसी लड़की से बना क्योंकि वो जैसी थी वो वैसी ही थी। मंटो दिखाना यह चाहता था कि फितरत की मासूमियत हमेशा बनावट पर गालिब आती है। इसी तरह इस कहानी की एक और थीम है इंसान की याददाश्त और उसका सबकॉन्शियस यानी कि लाशूर। एक सादा सी खुशबू लाशूर को झंझोड़ देती है और पुरानी यादों को ताजा कर देती है। आपने शायद यह चीज नोटिस की हो अपनी जिंदगी में कि कोई एक स्पेसिफिक परफ्यूम आपकी जिंदगी की मेमोरी से एसोसिएटेड हो जाता है। रणधीर के साथ भी ऐसा ही हुआ था। लिहाजा इंसान की जिंदगी में खुशबू की भी बहुतेंस है। मंटो

के इस अफसाने ब की एक और थीम है क्लास कंट्रास्ट यानी कि समाजी तजाद। कहानी में एक तरफ रणधीर की दौलतमंद बीवी है जो बहुत खूबसूरत है और दूसरी तरफ है एक सादा लॉ लड़की। मंटो इस अफसाने के जरिए साबित यह करना चाहता था कि इंसान की कशिश तबकाती इम्तियाज में नहीं बल्कि सिर्फ इंसानी फितरत से है। इसके अलावा एक और बात ये कि इंसान के अंदर ना एक लाशूरी मिलान है जो बनावट से बचकर सच्चाई की तरफ खींचता है। ये जिबिल्लत, दौलत और जिबाइश को रद्द करके फितरी हकीकत को चुनती है। कहानी इस सवाल को उठाती है कि इंसान को असल में किस चीज से कशिश होती है। नतीजा यह निकलता है कि

कशिश और मोहब्बत की बुनियाद फितरत और खुलूस में है। ना के हुस्नो दौलत में। मंटो ने ये दिखाया है कि आपकी बनावट, आपकी दौलत, आपकी ऐशो इशरत इंसान के अंदर वक्त तौर पर तो एक हवस प्रोड्यूस कर सकती है। लेकिन हकीकी सुकून सिर्फ सादगी में मौजूद है। ऐसे अफसानों को पढ़कर अक्सर लोग ये कहते हैं कि यार ये क्या बकवास है? क्या फ़हाशी है? ऐसे लोगों के लिए नदीम अहमद नदीम ने जबरदस्त बात लिखी है। ये मैं आपको पढ़ के सुनाता हूं। वो लिखते हैं कि इन अफसानों को पढ़कर अगर आपका वजू टूटता है तो आपको परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं बल्कि बेहतरीन दर्जे के एक मुलज की

जरूरत है। मंटो साहब को अगर आपने ऐसे ही पढ़ा ना तो आप कभी भी उनके अफसानों की गहराई को नहीं पहुंच पाएंगे। और अगर आप मंटो को समझ गए तो आप अपने समाज की असल हकीकत असल रियलिटी को पा जाएंगे।


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