अगर मेरी तहरीरों से मुआशरे में फहाशी और बेहयाई फैलती है तो ऐसा होने दो। [संगीत] दोस्तों उर्दू अदब की तारीख में एक ऐसा कमाल का अफसाना निगार गुजरा जो अपनी सोच और नजरियात के जुर्म में छह मर्तबा फहाशी और बेहयाई के इल्जाम में अदालतों के चक्कर लगाता रहा। लेकिन फिर भी वो मुआशरे की सच्चाई लिखने से बाज ना आया। उसने हमें सोसाइटी का वो चेहरा दिखाया जो कोई देखना नहीं चाहता था। उसके अफसाने बाजार की हकीकत बयान करते थे। लोगों की मुनाफिकत सामने लाते थे। उसने जिस अंदाज में औरतों की जिंदगी स्पेशली तवाइफों की जिंदगी के बारे में लिखा वैसा आज तक कोई नहीं लिख
सका। वो लिखता चला गया। चाहे उसके ऊपर जितने भी इल्जामात लगे या मुकदमे चले। क्योंकि उसका मानना था कि अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि यह जमाना नाकाबिले बर्दाश्त है। मुझ में जो बुराइयां है वो इस अहद की बुराइयां है। मेरी तहरीर में कोई नुक्स नहीं। जिस नुक्स को मेरे नाम से मंसूब किया जाता है। दरअसल वो मौजूदा निजाम का नुक्स है। और इस समाज के गंदे चेहरे को बेनकाब करने वाले अफसाना निगार का नाम था सादत हसन मंटो। मंटो 11 मई 1912 को समराला पंजाब जो उस वक्त ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था में पैदा हुए। उनके काम ने उस
दौर के बड़े-बड़े अदबी कुतों को झंझोड़ के रख दिया। मंटो के दौर के अदीबों ने मुआशरे का चेहरा ही बदल कर रख दिया। लेकिन मंटो उन सबसे मुख्तलिफ था। उसने वो मौजात चुने जो बाकी लोग चुनने से घबराते थे। उसने उन हकायक पर से पर्दा उठाया जिसको लोग नजरअंदाज कर दिया करते थे। उसने बाजार की उस हकीकत को बयान किया जिसको लोग बयान करने से शर्माते थे। मंटो ने साबित किया कि उसके पास लिखने का एक अनोखा अंदाज और नजरिया था। ऐसी सोच जो बगावत से भरी हुई थी। लेकिन जो लिखने के फन को नए अंदाज में समझती और मुआशरे में असर छोड़ने की ताकत रखती थी। अपने बारे में वो कुछ यह कहा
करते थे। मैं तहजीब और तमद्दुन और सोसाइटी की चोली क्या उतारूंगा जो है ही नंगी। मैं उसे कपड़े पहनाने की कोशिश भी नहीं करता। इसलिए कि यह मेरा काम नहीं दर्जियों का है। लोग मुझे स्याह कलम कहते हैं। मैं तख्ता स्याह पर काली चौक से नहीं लिखता। सफेद चौक इस्तेमाल करता हूं ताकि तख्त स्याह की स्याही और भी ज्यादा नुमाया हो जाए। मेरा खास तर्ज है जिसे फौश निगारी, तरक्की पसंदी और जाने क्या-क्या कहा जाता है। लानत सादत हसन मंटो पर। कमबख्त को गाली भी सलीके से नहीं दी जाती। उफ! आपने कलम की ताकत देखी है, अग्रेशन देखी है? यही वजह है कि मंटो के जो अफसाने है ना
उन्होंने असर पूरी दुनिया पर छोड़ा है। बेशक मंटो का कलम एक शोला था। उसने किसी भी वाक्य को लिखने से पहले कभी खौफ को करीब से गुजरने भी ना दिया। उसके अंदर एक शिद्दत भरा ज़हनी तूफान था। जो किसी आग उगलते आतिश की तरह उबल रहा था। मंटू एक रेबल था। वो एक बागी था जो मुआशरे की सारी हथकड़ियों को तोड़ देना चाहता था। उसने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ, अपने लोगों और रहनुमाओं की रियाकारी के खिलाफ भी बहुत से मजमून लिखे। मंटो ने तकसीम हिंद के दौरान हर चीज को गहराई से ऑब्जर्व किया और समझा। उसने औरतों, बच्चों, हत्ता के लाशों तक पर होने वाले तशद्दुद के बारे में लिखा। उसके
जज्बाती और डिप्रेस्ड हालात ने उसे वह अफसाने लिखने पर मजबूर कर दिया जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं। उसके अफसाने सिर्फ कहानियां नहीं बल्कि तारीख का जिंदा हवाला है। आज हमारे पास मंटो के सफर के बारे में, उनकी जिंदगी के बारे में, उनकी लिखाई के बारे में बहुत सी किताबें मौजूद है। लेकिन इन सबके बावजूद अक्सर मंटो को गलत ही समझ लिया जाता है। मंटो ने जंगों, तबाही, बेहयाई और जिनसी ख्वाहिशात और उन लोगों के जेहनी गंदगी के बारे में लिखा जो एब्सोल्यूटिज्म का दावा करते थे। वो कभी ज्यादा बोलता नहीं था। लेकिन जब वो लिखता तो उसकी लिखाई लोगों को बेचैन करने के लिए
काफी थी। उसके अल्फाज़ में ऐसी शिद्दत थी कि लोगों के दिलों को चीर के रख दे। एक वक्त था जब मंटो फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखा करते थे। बॉम्बे के शहर में शोहरत और पैसा दोनों उसके पास थे। मगर 1947 में तकसीम के बाद जब वो पाकिस्तान आया तो सब कुछ छूट गया। बॉम्बे दोस्त काम सब बदल गया। तकसीम हिंद ने ना सिर्फ हजारों लोगों से उनका सब कुछ छीन लिया बल्कि कई लोगों कीिंदगियां पलट कर रख दी। किसी के लिए यह आजादी थी। लेकिन कई लोग इस आजादी में घुटन का शिकार बन गए। मंटो भी उन्हीं में शामिल थे। वो बॉम्बे कभी भी छोड़ना नहीं चाहते
थे। लेकिन आजादी के नारों के दरमियान हिंदुस्तान की तंग गलियों से गुजर कर उन्हें भी मुल्क छोड़ना पड़ा। मैंने मंटों के बेतहाशा अफसाने पढ़े हैं। और स्पेशली उनके अफसानों की जो खास बात है ना वो है उसकी सडन एंडिंग्स जो इंसान को हिला के रख देती हैं। आज ऐसे ही एक कमाल के अफसाने के बारे में बात करेंगे जिसका टाइटल है ठंडा गोश्त। ठंडा गोश्त सबसे पहली बार पाकिस्तान के एक अदबी रिसाले जावेद में 1950 में शाया हुआ। हुकूमत पंजाब ने इस अफसाने के पब्लिश होते ही इस रिसाले पर पाबंदी लगा दी। लेकिन बिलिखिर जब मंटो को बाइजत बरी कर दिया गया तो इस अफसाने को
दोबारा शाया किया गया। यह वो कहानी है जिसको लिखने की वजह से मंटो के ऊपर फाशी का पर्चा कटा। लोगों ने कहा कि इसने एक फश कहानी लिखी है। जबकि दरअसल यह अफसाना रेप जैसे जुल्म की मंज़र कशी करता है। दोस्तों ठंडागश्त की कहानी की जो सेटिंग है ना वो कम्युनल वायलेंस है 1947 की। यह वह वक्त था जब पाकिस्तान और भारत को आजादी मिली। ठंडा गोश्त की कहानी हमें यह बताती है कि किस तरह बंटवारे के वक्त इख्तियारात का गलत इस्तेमाल किया गया। यह कहानी है ईश्वर सिंह की जो कि एक नामर्द था लेकिन उसके पीछे की कहानी इंसान की रूह को हिला के रख
देती है। अच्छा दोस्तों, यह एक छोटा सा अफसाना है जो अब मैं आपको पढ़ के सुनाऊंगा। मुझे सिर्फ 10 से 15 मिनट लगेंगे। अपनी चाय बनाएं और मेरे साथ आकर बैठ जाए और इस कहानी को एंजॉय करें। ईश्वर सिंह जू ही होटल के कमरे में दाखिल हुआ कलवंत कौर पलंग से उठी अपनी तेज तेज आंखों से उसकी तरफ घूर के देखा और दरवाजे की चिटकनी बंद कर दी। रात के 12:00 बज चुके थे। शहर का मजाफात एक अजीब पुरसरार खामोशी में गर्क था। कलवंत कौर पलंग पर आलती पालती मारकर बैठ गई। ईश्वर सिंह कृपान को लिए एक कोने में खड़ा था। चंद लम्हात इसी तरह खामोशी में गुजर गए। कलवंत कौर को थोड़ी देर बाद अपना
आसन पसंद आया और दोनों टांगे पलंग से नीचे लटका कर हिलाने लगी। ईश्वर सिंह फिर भी कुछ ना बोला। कलवंत कौर भरेभरे हाथ पैरों वाली औरत थी। चौड़े कूल्हे थल करने वाला गोश्त से भरपूर कुछ ज्यादा ही ऊपर को उठा हुआ सीना, तेज आंखें, बालाई होठों पर बालों का सुरमई गुबार। थोड़ी ही साख से पता चलता था कि बड़े धड़ल्ले की औरत है। चंद और लम्हात जब इसी तरह खामोशी में गुजर गए तो कलवंत कौर छलक पड़ी लेकिन तेज-तेज़ आंखों को नचाकर वो सिर्फ इस कदर ही कह सकी ईशरेया ईश्वर सिंह ने गर्दन उठाकर कलवंत कौर की तरफ देखा मगर इसकी निगाहों की ताब ना लाकर मुंह दूसरी तरफ मोड़ लिया। कलवंत
कौर चिल्लाई और पलंग से उठकर इसकी जानिब जाते हुए बोली कहां रहे तुम इतने दिन? ईश्वर सिंह ने खुश होठों पर जुबान फेरी। मुझे मालूम नहीं। कलवंत कौर भुना गई। यह भी कोई जवाब है? ईश्वर सिंह ने कृपान एक तरफ फेंक दी और पलंग पर लेट गया। ऐसा मालूम होता था वह कई दिन का बीमार है। कलवंत कौर ने पलंग की तरफ देखा जो अब ईश्वर सिंह से लबालब भरा था। उसके दिल में हमदर्दी का जज्बा पैदा हो गया। चुनाचा उसके माथे पर हाथ रखकर उसने बड़े प्यार से पूछा। जॉनी क्या हुआ है तुम्हें? ईश्वर सिंह छत की तरफ देख रहा था। उससे निगाहें हटाकर उसने कलवंत कौर के मानूस
चेहरे को टटोलना शुरू किया। ईश्वर सिंह ने पगड़ी उतार दी। कलवंत कौर को सहारा लेने वाली निगाहों से देखा। इसके गोश भरे कूले पर जोर से धप्पा मारा और सर को झटका कर अपने आप से कहा। यह कुड़ी का दिमाग खराब है। झटका देने से इसके केस खुल गए। कलवंत कौर उंगलियों से इनमें कंघी करने लगी। ऐसा करते हुए उसने बड़े प्यार से पूछा। ईश्वर्या, कहां रहे तुम इतने दिन? बरे की मां के घर ईश्वर सिंह ने कलवंत कौर को घूर कर देखा और दफतन दोनों हाथों से उसके उभरे हुए सीने को मसलने लगा। कसम वाह गुरु की बड़ी जानदार औरत हो। कलवंत कौर ने उससे फिर पूछा, तुम्हें मेरी कसम बताओ कहां
रहे? शहर गए थे? ईश्वर सिंह ने कहा, नहीं। कलवंत कौर चिढ़ गई। नहीं, तुम जरूर शहर गए थे और तुमने बहुत सा रुपया लूटा है जो मुझसे छुपा रहे हो। कलवंत कौर थोड़ी देर के लिए खामोश हो गई लेकिन फौरन ही भड़क उठी। लेकिन मेरी समझ में नहीं आता उस रात तुम्हें हुआ क्या था। अच्छे भले मेरे साथ लेटे थे। मुझे तुमने वो सारे गहने पहना रखे थे जो तुम शहर से लूट कर लाए थे। पर जाने एकदम तुम्हें क्या हुआ। उठे कपड़े पहन कर बाहर निकल गए। ईश्वर सिंह का रंग जर्द हो गया। कलवंत कौर ने यह तब्दीली देखते ही कहा, देखा कैसे रंग नीला पड़ गया। ईश्वर्या कसम वाहेगुरु
की जरूर कुछ दाल में काला है तेरी जान की कसम कुछ भी नहीं ईश्वर सिंह की आवाज बेजान थी कलवंत कौर का शुभा और ज्यादा मजबूत हो गया उसने फिर कहा ईश्वर्या क्या बात है तुम वो नहीं जो आज से आठ रोज पहले थे तुम मुझे बताते क्यों नहीं कि उस रात तुम्हें हुआ क्या था कोई बात हो तो बताऊं ईश्वर ने जवाब दिया ईश्वर सिंह ने अपने बाजू उसकी गर्दन में डाल दिए और होंठ उसके होठों में गाड़ फाड़ दिए। मूछों के बाल कलवंत कौर के नथरों में घुसे तो उसे छींक आ गई। दोनों हंसने लगे। ईश्वर सिंह ने अपनी सदरी उतार दी और कलवंत कौर को शहवानी नजरों से देखकर
कहा, “आ जाओ एक बाजी ताश की हो जाए।” ईश्वर सिंह ने उसके भरे हुए कूले पर जोर से चुटकी भरी। कलवंत कौर तड़प कर एक तरफ हट गई। ना कर ईश्वर्या। मेरे दर्द होता है। ईश्वर सिंह ने आगे बढ़कर कलवंत कौर का बालाई होंठ अपने दांतों तले दबा लिया और कचकचाने लगा। कलवंत कौर बिल्कुल पिघल गई। ईश्वर सिंह ने अपना कुर्ता उतार के फेंक दिया और कहा लो फिर हो जाए तुर्प की चाल। कलवंत कौर का बालाई होंड कपकपाने लगा। ईश्वर सिंह ने दोनों हाथों से कलवंत कौर की कमीज का घेरा पकड़ा और जिस तरह बकरे की खाल उतारते हैं इसी तरह इसको उतार कर एक तरफ रख दिया। फिर उसने घूर कर इसके नंगे
बदन को देखा और जोर से बाजू पर चुटकी लेते हुए कहा कलवंत कसम वाह गुरु की बड़ी करारी औरत है तू कलवंत कौर ने कहा बड़ा जालिम है तू ईश्वर सिंह मुस्कुराया और उसने कहा होने दे आज जुल्म और यह कहकर उसने मजीद जुल्म ढने शुरू किए कलवंत कौर का बालाई होंठ दांतों तले दबाया कानों की लौ को काटा उभरे हुए सीने को भोड़ा भरे हुए कूलों पर आवाज पैदा करने वाले चांटे मारे गालों के मुंह भरभ के बोसे लिए। चूस-चूस कर उसका सारा सीना थूकों से लथेड़ दिया। लेकिन ईश्वर सिंह इन तमाम हेलों के बावजूद खुद में हरारत पैदा ना कर सका। जितने गुर और जितने दाव उसे याद थे सब के
सब उसने पिट जाने वाले पहलवान की तरह इस्तेमाल कर दिए। पर कोई कारगर ना हुआ। कलवंत कौर ने गैर जरूरी छेड़छाड़ से तंग आकर कहा, ईशरिया काफी फेंट चुका। अब पत्ता फेंक। यह सुनते ही ईश्वर सिंह के हाथ से जैसे ताश की सारी गड्डी नीचे फिसल गई। हांपता हुआ वो कलवंत कौर के पहलू में लेट गया और उसके माथे पर सर्द पसीने की लेप होने लगी। कलवंत कौर ने उसे गमाने की बहुत कोशिश की मगर नाकाम रही। कलवंत कौर ने चिड़चिड़ाकर कहा ईशरिया वो कौन हरामजादी है जिसके पास तू इतने दिन रहकर आया और जिसने तुझको निचोड़ डाला है ईश्वर सिंह पलंग पर लेटा हांपता रहा और इसने कोई जवाब ना दिया
कुलवंत कौर ने बार-बार पूछा और ईश्वर ने बार-बार यही जवाब दिया कि कोई भी नहीं। ईश्वर सिंह ने कुछ कहना चाहा मगर कलवंत कौर ने इसकी इजाजत ना दी। कसम खाने से पहले सोच ले कि मैं भी सरदार निहाल सिंह की बेटी हूं। तिक्का बोटी कर दूंगी अगर तूने झूठ बोला। ले अब खा वाहेगुरु की कसम। क्या इसकी तह में कोई औरत नहीं? ईश्वर सिंह ने बड़े दुख के साथ असबात में सर हिलाया। कलवंत कौर बिल्कुल दीवानी हो गई। लपक कर कोने में से कृपान उठाया। मयान को केले के छिलके की तरह उतार कर एक तरफ फेंका और ईश्वर सिंह पर वार कर दिया। आन की आन में लहू के फवारे छूट पड़े। कलवंत
कौर को इससे भी तसल्ली ना हुई तो उसने वैशी बिल्लियों की तरह ईश्वर सिंह के केस नोचने शुरू कर दिए। खून ईश्वर सिंह के गले से अड़-अढ़ कर उसकी मूछों पर गिर रहा था। ईश्वर सिंह बोला मेरी जान तुमने बहुत जल्दी की। लेकिन जो हुआ ठीक है। कलवंत कौर का हसद फिर भड़का। मगर वो है कौन? तुम्हारी मां कलवंत कौर के दिमाग में सिर्फ दूसरी औरत थी। मैं पूछती हूं कौन है वह हरामजादी? ईश्वर सिंह की आंखें धुंधला रही थी। एक हल्की सी चमक इनमें पैदा हुई और उसने कलवंत कौर से कहा गाली ना दे इस [ __ ] को। कलवंत चिल्लाई मैं पूछती हूं वो है कौन? ईश्वर सिंह बोला बताता हूं।
[संगीत] कलवंत मेरी जान मैं तुम्हें नहीं बता सकता मेरे साथ क्या हुआ। शहर में लूट मची थी तो सब की तरह मैंने भी इसमें हिस्सा लिया। लेकिन एक बात तुम्हें ना बताई। ईश्वर सिंह ने घाव में दर्द महसूस किया और कराने लगा। कलवंत कौर ने इसकी तरफ तवज्जो ना दी और बड़ी बेरहमी से पूछा कौन सी बात? जिस मकान पर मैंने दावा बोला था इसमें सात आदमी थे। छह मैंने कत्ल कर दिए। इसी कृपान से जिसने तूने मुझे मारा। एक लड़की थी बहुत सुंदर। उसको उठाकर मैं अपने साथ ले आया। कलवंत कौर खामोश सुनती रही। कलवंत जानी मैं तुमसे क्या कहूं कितनी सुंदर थी। मैं इसे
भी मार डालता। पर मैंने कहा नहीं ऐशिया कलवंत कौर के तो तू हर रोज मजे लेता है। यह मेवा भी चख देख। इसे मैं कंधे पर डालकर चल दिया। रास्ते में नहर के पास झाड़ियों तले मैंने इसे लिटा दिया। पहले सोचा कि फेंटूं लेकिन फिर ख्याल आया कि नहीं। यह कहते कहते ईश्वर की जुबान सूख गई। कलवंत कौर ने थूक निगल कर अपना हल्क तर्क किया और पूछा फिर क्या हुआ? ईश्वर सिंह के हलक से बमुश्किल यह अल्फाज़ निकले। मैंने पत्ता फेंका लेकिन इसकी आवाज डूब गई। कलवंत कौर ने इसे झंझोड़ा। फिर क्या हुआ? ईश्वर सिंह ने अपनी बंद होती हुई आंखें खोली और कलवंत
कौर के जिस्म की तरफ देखा। वो मरी हुई थी। लाश थी बिल्कुल ठंडा गोश्त। जानी मुझे अपना हाथ दे। कलवंत कौर ने अपना हाथ ईश्वर सिंह के हाथ पर रखा जो बर्फ से भी ज्यादा ठंडा था। देखा दोस्तों मैंने आपको कहा था ना कि मंटो के अफसानों की जो सडन एंडिंग्स होती है ना वो इंसान का दिल चीर कर रख देती है। ईश्वर सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी है जो उस वक्त के मुआशरे की सही तरीके से अकासी करती है। मंटो ने अपनी कहानी में ईश्वर सिंह की बेमानी जातियात के जरिए उस खतरनाक मर्दाना गुरूर को बेनकाब किया जो उस दौर में आम था। बाय द वे यह बात कहना भी गलत
नहीं कि यह आज भी आम है। ईश्वर सिंह की एक मुर्दा जिस्म के साथ जिनसी ज्यादती करने की कोशिश उसे नामर्द बना देती है। दैट इज द साइकोलॉजिकल इंपैक्ट ऑफ दिस इंसिडेंट। जब ईश्वर सेन गम और बेचैनी में डूबा उस मुर्दा जिस्म का हाल बयान करता है ना उसे ठंडा गोश्त कहकर पुकारता है तो यह अल्फाज उसके दिल में छुपे हुए गिल्ट का आखरी कनंफेशन है। मंटू ऐसे ही मुआशरे की दर्दनाक और डार्क कहानियां उठाता था और अपनी तहरीरों के जरिए लोगों तक पहुंचा दिया करता था। शायद कुछ लोगों को मंटो की कहानियां उसके अफसाने फोश लगे। लेकिन मेरे ख्याल से मंटो एक जीनियस था जिसके लफ्जों
में ऐसी ताकत थी जो शायद दोस्त्स की और टॉलस्टॉय की राइटिंग में ना हो। आप मुझे अपना फीडबैक जरूर दीजिएगा कि आपको यह कहानी ठंडागश कैसे लगी और क्या आप फ्यूचर में चाहते हैं कि मैं मंटो की कहानियों को इसी तरह से कवर करूं। वीडियो पसंद आई हो तो लाइक बटन जरूर प्रेस कीजिएगा। एंट नेक्स्ट टाइम गुड बाय।